कश्मीरी आतंकी की मौत पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नमाज-ए-जनाजा क्यों?
एएमयू के छात्रों द्वारा परिसर में एक आतंकी की आत्मा की शांति के लिए नमाज-ए-जनाजा आयोजित कराना ये बताता है कि राष्ट्रवाद के प्रमाण उससे बेवजह नहीं मांगे जाते.
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कभी कैम्पस में पाकिस्तान परस्त नारे. कभी वंदे मातरम और भारत माता की जय से गुरेज. कभी स्टूडेंट यूनियन हॉल से जिन्नाह की फोटो न लगाने की जिद. इन घटनाओं को देखकर यकीन हो जाता है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एक तबका ऐसा भी है, जिसे किसी तरह के विवाद की चिंता नहीं है. मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर AMU एक बार फिर चर्चा में है. वजह है, कुपवाड़ा एनकाउंटर में मारे गए हिजबुल कमांडर मन्नान बशीर वानी की मौत के बाद AMU कैम्पस में आयोजित हुई नमाज-ए-जनाजा. और इस मामले में कुछ छात्रों का निष्कासन.
आतंकी बशीर वानी की नमाज ए जनाजा के कारण एएमयू फिर चर्चा में है
बीते दिनों ही सेना ने जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में हिजबुल कमांडर मन्नान बशीर वानी को मार गिराया था. आतंकी की मौत पर अपना शोक प्रकट करने और उसकी 'आत्मा की शांति' के लिए एएमयू में पढ़ने वाले कुछ कश्मीरी छात्रों ने नियमों को दरकिनार कर एक सभा बुलाई, और परिसर के कैनेडी हॉल में नमाज-ए-जनाजा का आयोजन किया. जल्द ही आतंकी की नमाज-ए-जनाजा पढ़ने आए छात्र अनुशासनहीनता पर उतर आए.
मामले को तूल पकड़ता देख जल्द ही विश्व विद्यालय प्रशासन भी हरकत में आया और उसने एक्शन लेते हुए तीन कश्मीरी छात्रों को सस्पेंड कर दिया. इन तीन छात्रों के अलावा प्रशासन ने चार और छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. यूनिवर्सिटी ने सभी छात्रों को चेतावनी देते हुए कहा है कि कैम्पस में किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को हरगिज बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
आतंकी बशीर वानी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का ही छात्र था जिसे यूनिवर्सिटी द्वारा निकाल दिया गया
परिसर में क्यों आयोजित हुई थी एक आतंकी के लिए नमाज
इस गंभीर मामले पर अपनी सफाई देते हुए एएमयू प्रशासन का कहना है कि किसी जमाने में वानी यूनिवर्सिटी का छात्र था. यूनिवर्सिटी को जब उसकी हरकतें संदिग्ध लगी और साथ ही ये पता चला कि, वो हिजबुल से जुड़ गया है, तो उसे यूनिवर्सिटी से निष्काषित कर दिया गया. फिर उसका यूनिवर्सिटी से कोई संबंध नहीं रहा.
पीएचडी की डिग्री हासिल कर चुके वानी की मौत के बाद घाटी में सियासत ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है. हमेशा की तरह एक बार फिर घाटी के चरमपंथी नेता मीर वाइज उमर फारूक ने वानी के मौत पर विरोध की खातिर शुक्रवार को घाटी में बंद की मांग की है.
Alas! heard the tragic news of #MananWani’s Martyrdom and of his associates! Deeply pained that we lost a budding intellectual and writer like him,fighting for the of cause of self-determination.JRL appeals to people to observe a complete #Shutdown tomorrow to pay homage to him
— Mirwaiz Umar Farooq (@MirwaizKashmir) October 11, 2018
वहीं राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी आतंकी की मौत पर हमदर्दी दिखाते हुए ट्वीट कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है.
Today a PhD scholar chose death over life & was killed in an encounter. His death is entirely our loss as we are losing young educated boys everyday. 1/2
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) October 11, 2018
लेकिन, कश्मीर की सियासत के समर्थन में एएमयू कैम्पस के भीतर सिर हिलाया जाना चिंंता का विषय है. एक ऐसे वक्त में जब लगातार देशविरोधी गतिविधियों के चलते एएमयू का पूरा निजाम संदेह के घेरे में है. वहां एक आतंकी की याद में नमाज-ए-जनाजा अता की जाती है. बल्कि ये भी बताती है कि एएमयू के कुछ छात्रों की ये पाकिस्तान परस्ती पूरे विश्व विद्यालय पर बदनुमा दाग लगाकर कैम्पस का वो चेहरा हमें दिखा रही है जो कई मायनों में घिनौना है.
चूंकि मारा गया आतंकी कैम्पस का ही पूर्व छात्र था, साथ ही उसकी याद में कैम्पस के कुछ छात्रों द्वारा नमाज-ए-जनाजा का आयोजन किया गया है. अतः यूनिवर्सिटी से हमारे लिए ये पूछना जरूरी हो जाता है कि जब ये प्लानिंग हुई तो कैंपस का लोकल इंटेलिजेंस क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा तमाशा देख रहा था? चाहे ये मामला हो या इससे पूर्व के मामले, लगातार कैम्पस के छात्रों द्वारा जिस तरह देश के विरोध में काम किया जा रहा है. वो केवल और केवल कैम्पस के एडमिनिस्ट्रेशन को संदेह के घेरों में लाकर खड़ा कर रहा है.
अंत में बस इतना ही कि इस घटना के बाद अगर भविष्य में किसी के द्वारा 'राष्ट्रविरोधी' चीजों को लेकर AMU से जवाब मांगा जाता है तो उसे आहत होने के बजाए एएमयू प्रशासन को खुल कर जवाब देना चाहिए. यदि ऐसा हो गया तो ये सराहनीय है, अन्यथा कैंपस में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जिसे देखकर आज सर सैय्यद की आत्मा अपने सिर पर हाथ रखकर केवल अफ़सोस कर रही होगी. और शायद ये सोच रही हो कि उनका सपना एक ऐसी जगह का निर्माण करना नहीं था जिससे भारत की भारत की अखंडता और एकता को खतरा हो.
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