मस्जिद को भूलकर स्कूल-कॉलेज की बात करें मुस्लिम
देश को शिक्षा की अहमियत बताने वाले maulana abul kalam azad आज जिंदा होते तो ये देखकर बहुत अफसोस करते कि देश का वो वर्ग जो शिक्षा से कोसों दूर है वो मुसलमान ही हैं. अयोध्या फैसले (Ayodhya verdict) के बाद देश की सरकार और मुसलमानों को इस पहलू पर फिर से सोचने की जरूरत है.
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अयोध्या के फैसले (Ayodhya verdict) ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Mandir-Babri Masjid dispute) का निपटरा कर दिया. हिंदू-मुसलमानों (Hindu-Muslims) की धार्मिक आस्थाओं से जुड़े इस मामले के खत्म हो जाने से अभी वो रास्ता खुलना बाकी है, जिसका फायदा समाज को मिले. अयोध्या पर फैसला आने के बाद इस ओर सबसे पहले इशारा फिल्म पटकथा लेखक और सलमान खान के पिता सलीम खान ने किया. खासतौर पर मुसलमानों की शिक्षा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि 'मस्जिद से ज्यादा जरूरत कॉलेज की है.' 11 नवंबर 1888 यानी आज ही जन्मे स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) के जन्मदिन ने इस दिशा की ओर देखने का दोबारा मौका दिया है. पूरा देश मौलाना के आजाद की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाता है. मौलाना अबुल कलाम आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री थे. और उन्हीं ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की स्थापना की थी. UGC और IIT की स्थापना करने वाले भी मौलाना अबुल कलाम आजाद ही थे. इस देश की शिक्षा नीति बनाने वाला वो शख्स एक मुस्लिम (muslim) था. देश को शिक्षा (education) की अहमियत बताने वाले अबुल कलाम आज जिंदा होते तो ये देखकर बहुत अफसोस करते कि देश का वो वर्ग जो शिक्षा से कोसों दूर है वो मुसलमान ही हैं.
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद vs राष्ट्रीय शिक्षा नीति की स्थापना की थी
धर्म आधारित साक्षरता दर में में मुसलमान सबसे पीछे
2011 के सेंसेक्स डेटा के मुताबिक भारत में 42.7% मुस्लिम अशिक्षित हैं. देश के किसी भी धार्मिक समुदाय में यह सर्वोच्च निरक्षरता दर है. आंकड़ों के अनुसार, निरक्षरों का प्रतिशत हिंदुओं के लिए 36.4, सिखों के लिए 32.5, बौद्धों के लिए 28.2 और ईसाइयों के लिए 25.6 है. यानी पढ़े-लिखों की बात की जाए तो मुस्लिम सबसे पीछे नजर आते हैं. वहीं अगर मुस्लिम समाज में महिला और पुरुषों की शिक्षा के बारे में बात की जाए तो ये आंकड़े बताते हैं कि 48.1% मुस्लिम महिलाएं अशिक्षित हैं जबकि 37.59% मुस्लिम पुरुष अशिक्षित.
मुस्लिमों की उच्च शिक्षा शर्म करने लायक
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 2017-18 में 14% मुस्लिम जनसंख्या के अनुपात में मुस्लिम छात्रों का अनुपात केवल 4.9- 5.0% था. ये भी आश्चर्य की ही बात है कि इस समुदाय से केवल 4.9% शिक्षक ही उच्च शिक्षित हैं. उत्तर भारत में गैर मुस्लिम विश्वविद्यालयों में केवल 1-3% मुस्लिम ही इनरॉल होते हैं. जबकि जामिया मिलिया इस्लामिया में 50% और अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में 75% है.
सचर कमेटी की रिपेर्ट बताती है कि भारत भर में आधे मुस्लिम बच्चे, जो मिडिल स्कूल पूरा कर लेते हैं वो सेकेंड्री स्कूल में पढ़ाई छोड़ देते हैं. 2005-06 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के शोध के अनुसार मुस्लिमों के बीच ये ड्रॉपआउट रेट 17.6% है जो पूरे भारत के ड्रॉपआउट रेट 13.2% से ज्यादा है.
ऐसी तमाम रिपोर्ट्स मौजूद हैं जो भारत में मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक पिछड़ेपन की कहानी कहती हैं.
शिक्षा में पिछड़े तो हर जगह पिछड़े
और पढ़े-लिखे न होने की वजह से राजनीति और सरकारी नौकरी में भी मुसलमानों की भागीदारी कम होना स्वाभाविक सी बात है. ज्यादातर मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई के लिए मदरसों की शिक्षा पर ही भरोसा करते हैं. बच्चों को स्कूलों के बजाए मदरसों में भेजा जाता है. ये बहुत पुरानी शिक्षा पद्धति है जो आधुनिक शिक्षा से कोसों दूर है. मदरसों में Science technology, Maths, English और Social science जैसे विषयों पर बात ही नहीं होती. और इसीलिए मुस्लिम आधुनिक शिक्षा में पिछड़ जाते हैं. जब नींव हा मजबूत नहीं होगी तो पढ़ने में न मजा आएगा और न आगे पढ़ने की इच्छा. व्यक्ति का आत्मविश्वास सीधा उसकी शिक्षा से जुड़ा होता है और इसीलिए मुस्लिम शिक्षित होने के बजाए हाथ के काम पर ज्यादा जोर देते हैं.
ये जानकर आशचर्य होगा कि देश में कुल भिखारियों की संख्या में से हर चौथा मुसलमान है. इस प्रकार से इनकी 25% जनसंख्या भीख मांग कर ही अपना जीवन-यापन कर रही है. मुस्लिम इलाकों के हर मोहल्ले में कोई स्कूल मिले न मिले लेकिन एक मस्जिद जरूर मिलती है. यानी मुस्लिम समाज धर्म को लेकर इतना संजीदा है कि वो शिक्षा और उसके महत्व को समझना ही नहीं चाहता.
मदरसों का मोह त्यागना होगा
मुसलमानों को मस्जिद से ज्यादा कॉलेज की जरूरत
9 नवंबर 2019 को अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला (Ayodhya verdict) सुनाते हुए विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक बताया और मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकढ़ जमीन देने का फैसला सुनाया था. इसपर मुस्लिम पक्ष संतुष्ट नहीं था. राजनीति के धुरंधरों ने एक बार फिर अपनी कौम को ये बताने की कोशिश की कि मस्जिद उनके लिए कितनी मायने रखती है.
जबकि बहुत से समझदार लोगों ने इस तरफ इशारा किया कि मुसलमानों को मस्जिद नहीं बल्कि स्कूलों की जरूरत है. सलमान खान के पिता सलीम खान ने कहा कि 'मस्जिद की जगह मुसलमानों को बुनियादी समस्याओं की चर्चा करनी चाहिए और उसे हल करने की कोशिश करनी चाहिए. हमें स्कूल और अस्पताल की जरूरत है. अयोध्या में मस्जिद के लिए मिलने वाली पांच एकड़ जगह पर कॉलेज बने तो ज्यादा अच्छा होगा. हमें मस्जिद की जरूरत नहीं है. जहां तक रही नमाज पढ़ने की बात वो तो हम कहीं भी पढ़ सकते हैं. लेकिन इस समय हमें बेहतर स्कूल की जरूरत है. देश के 22 करोड़ मुस्लिम को शिक्षा अच्छी मिलेगी तो देश की बहुत सी कमियां दूर हो जाएंगी.'
आज हर कोई शिक्षा की अहमियत जानता है. कलम के सिपाही कहे जाने वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद सालों पहले भी जानते थे. देश को IIT और UGC देने वाले मौलाना को मुस्लिम समाज का शैक्षिण स्तर आज ऊपर भी चैन से सोने नहीं देता होगा. भारत के मुसलमानों को अब नींद से जागने की जरूरत है.
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