आत्मनिर्भर 'बाबा का ढाबा' काश बिना सहानुभूति जताए हिट होता
मालवीय नगर में सड़क किनारे लगा 'बाबा का ढाबा' आज देश की सबसे चर्चित दुकान है. 80 साल के कांता प्रसाद और 75 की बदामी देवी के खाने का स्वाद चखने के लिए आज जमाना उमड़ा हुआ है. इस मायूस बुजुर्ग दंपत्ति के चेहरे पर लौटी मुस्कान संवेदना औेर सहानुभूति की मिसाल लगती है. लेकिन, इस कहानी के और भी पहलू हैं.
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80 वर्षीय कांता प्रसाद और उनकी 75 वर्षीय पत्नी बदामी देवी के लिए उनका 'बाबा का ढाबा' ट्विटर पर टॉप ट्रेंड करना क्या मायने रखता है? एक छोटी सी दुकान, जहां ये बुजुर्ग दंपति अपने ग्राहकों को रोटी-सब्जी खिलाकर गुजरा करते था, अचानक खुद को राष्ट्रीय सुर्खी में पाकर बेहद आनंदित है. कोरोना वायरस के दौर में बाबा की ढाबा जैसी कई दुकानें कराह रही हैं. दिल्ली में इस जैसी खाने पीने की दुकानों के अधिकतर ग्राहक वे प्रवासी रहे हैं जो या तो अपने घरों को लौट गए हैं या फिर कोरोना के डर से अपने घरों में दुबके रहने को मजबूर हैं. लेकिन कांता प्रसाद के तो अचानक दिन फिर गए. तपेले में उबल रही सब्जी को हिलाते हुए वे न्यूज चैनल वालों को बाइट दे रहे हैं- 'आज लगता है पूरा देश हमारे साथ है'.
बाबा का ढाबा वाले कांता प्रसाद की खुशी और गम के बीच कई सवालों की खाई है.
कांता प्रसाद और उनकी पत्नी की जिंदगी में दो दिन पहले तब ट्विस्ट आया जब मालवीय नगर इलाके के विधायक और आम आदमी पार्टी के बड़े नेता सोमनाथ भारती बाबा का ढाबा पर पहुंचे. बातों ही बातों में कांता प्रसाद का दर्द छलक आया. कई दिनों से ढाबे पर कोई ग्राहक नहीं आया था. रोज खाना बनाकर लाते थे, जो खराब हो रहा था. भला हो सोमनाथ भारती और उनकी टीम का जो उन्होंने ढाबे पर हुआ ये संवाद अपने फोन पर रिकॉर्ड कर लिया. सोशल मीडिया पर आप का नेटवर्क तो तगड़ा है ही. देखते ही देखते यह वीडियो वायरल हुआ, और लोग बाबा का ढाबा की ओर रुख करने लगे. अपनी 80 साल की जिंदगी में कांता प्रसाद ने नेता तो कई देखे होंगे लेकिन नेतागिरी को कोसने के बजाए दुआएं अब दी होंगी. दोनों पति-पत्नी बिजी हो गए हैं. ग्राहकों की कमी नहीं है. सवाल उठता है कि क्या इस ढाबे के दिन पलटने को हैप्पी एंडिंग मान लिया जाए? समाज और सियासत में संवेदना जीवित है, क्या इतना मान लेने भर का संतोष काफी है?
दिल्ली, तुसी ग्रेट हो!It was an spiritual experience to witness sea of people visiting Baba Ka Dhaba to help the elderly couple.This is y it is called " दिल्ली दिल वालों की".This is what makes us human.Let this b d beginning to ensure that no1 sleeps hungry in this city! Luv all! https://t.co/ycLyP7hjJ8 pic.twitter.com/MrDFTNYpvm
— Adv. Somnath Bharti (@attorneybharti) October 8, 2020
कांता प्रसाद और उनके बाबा का ढाबा को ख्याति मिली, उसने रानू मंडल की याद दिला दी. रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर भीख मांगते हुए जिनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, और फिर थोड़े समय के लिए ही सही, उनकी जिंदगी बदल गई. यह कांता प्रसाद और उनकी पत्नी का भाग्य ही कहा जाएगा कि उनके ढाबे पर एक ऐसा नेता आया, जिसने उनकी मुश्किल का बड़ा हल सोचा. वरना वह फौरी तौर पर वहीं कोई मदद करके भी लौट सकता था. सोमनाथ भारती ने अपने प्रभाव से बाबा का ढाबा को मदद के रूप में आने वाले कई दिनों के लिए ग्राहक दिलवा दिए. लेकिन, ऐसे बाबा का ढाबा एक नहीं, कई हैं. यह परेशानी सिर्फ खाने-पीने की दुकान चलाने वालों तक ही सीमित नहीं है. ऐसे कई कुशल लोग हैं, जिन्हें इन दुर्दिनों में ग्राहक नहीं मिल रहे हैं, काम नहीं मिल रहा है. जैसी संवेदना सोमनाथ भारती ने दिखाई है, उसी भाव से क्या देश के अलग अलग हिस्सों में रहने वाले नेता सड़कों पर निकलेंगे? क्या वे उनके लिए मार्केटिंग करेंगे? एक सिस्टम बने, जिसके तहत लोगों का कारोबार स्वत: फले फूले. इसके लिए किसी भी कांता प्रसाद के आंसू की जरूरत न पड़े. कोरोना संकट से जूझ रहे व्यवसायियों, मजदूरों को मदद चाहिए, दोबारा उठ खड़े होने के लिए. ऐसी मदद जिसमें उनका आत्म सम्मान कायम रहे.
दिल्ली: 1990 के दशक से मालवीय नगर में बाबा का ढाबा चलाने वाले बूढ़े दंपति का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद आज ढाबे के बाहर काफी लोगों की भीड़ दिखी। 80वर्षीय कांता प्रसाद ने बताया, "लॉकडाउन की वजह से बिलकुल बिक्री नहीं हो रही थी। आज पूरा हिंदुस्तान हमारे साथ है।" pic.twitter.com/c9KMAREq3Z
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 8, 2020
कांता प्रसाद की आंखों से झरझर बह रहे हैं सवाल
कांता प्रसाद 80 साल के हैं, और उनकी पत्नी 75 की. लेकिन उनके जीवट पर उम्र का कोई असर नहीं है. वे मेहनत करते हैं और उसका यथोचित फल पाने का इंतजार करते हैं. लेकिन बुनियादी सवाल ये है कि इस उम्र में उन्हें ये दिन क्यों देखना पड़ रहे हैं? कोरोना संकट तो एक हालिया चुनौती है. कांता प्रसाद और उनकी पत्नी के संघर्ष की उम्र आजाद हिंदुस्तान की उम्र के बराबर ही है. देश की राजधानी के बीच कांता प्रसाद यदि आज मजबूर हैं तो क्या इसकी जवाबदेही उन सभी सरकारों की नहीं है, जिसने उन्हें अपने जीवनयापन के लिए ताउम्र खटने को अभिशप्त किया है. कहां हैं वे सरकारी योजनाएं, जिन्हें मुसीबत के समय ऐसे बुजुर्गों का सहारा होना चाहिए? कांता प्रसाद ग्राहक पाने से खुश हो सकते हैं, लेकिन देश के करोड़ों युवाओं के सामने बेहतर भविष्य एक दूर की कौड़ी है. ये युवा कल के कांता प्रसाद न बनें, इससे पहले सरकारों और जनप्रतनिधियों को ईमानदारी से प्रयास करने होंगे. रोजगार के अवसर तो उपलब्ध कराने होंगे ही, उनका कारोबार फले-फूले इसका माहौल भी बनाना होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भर भारत अभियान की बात करते हैं. सुनने में यह सपने जैसा लगता है. लेकिन, यदि किसी युवा कारोबारी/उद्यमी को शुरुआत में सोमनाथ भारती जैसे जनप्रतिनिधि का हाथ मिल जाए तो आत्मनिर्भर होने का यह महायज्ञ निश्चित ही फलीभूत होगा.
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