लड़की पैदा होने पर एक समुदाय की खुशी शर्मसार करने वाली है
मध्यप्रदेश का बांछड़ा समुदाय लड़कियों के पैदा होने पर खुशियां मनाता है क्योंकि इस समुदाय के लोग जिस्मफरोशी के धंधे से अपना घर चलाते हैं. लड़की पैदा होने का मतलब है एक और इंसान हो जाएगा घर चलाने के लिए.
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भारत में बेटियों के लिए और महिलाओं के लिए कई सरकार द्वारा कई स्कीम चलाई गई हैं. उज्जवला योजना से लेकर विधवा पेंशन तक ऐसा बहुत कुछ है जो महिलाओं की भलाई के लिए किया गया है, लेकिन फिर भी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले इस देश में बच्चियों का गर्भपात करवाया जाता है और पुरुष और महिलाओं की संख्या में बहुत बड़ा फर्क है. पर देश का एक समुदाय ऐसा है जो बेटी के पैदा होने पर खुशियां भी मनाता है और उन्हें बहुत अच्छे से पालता भी है. उन्हें काम भी करने देता है पर काम क्या है ये जानकर कोई भी समाज या सरकार चिंता में पड़ जाएगी!
मध्यप्रदेश का बांछड़ा समुदाय लड़कियों के पैदा होने पर खुशियां मनाता है क्योंकि इस समुदाय के लोग जिस्मफरोशी के धंधे से अपना घर चलाते हैं. लड़की पैदा होने का मतलब है एक और इंसान हो जाएगा घर चलाने के लिए.
यहां लड़कियों को प्यार, इश्क, मोहब्बत या एक इज्जतदार जिंदगी जीने के सपने देखने की कोई इजाजत नहीं. लड़की जब तक डिमांड में रहती है तब तक उससे धंधा करवाया जाता है और फिर उसके बाद शादी कर दी जाती है ताकि और लड़कियां पैदा हो सकें.
इस समुदाय में मां अपनी बेटी को खुद ये सिखाती है कि जिस्मफरोशी कैसे की जाती है, इसके अलावा, कई बार तो मां अपनी बेटी के लिए ग्राहक भी लेकर आती है. और तो और इस समुदाय में लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए एक नया तरीका निकाला गया है. तरीका ये कि गरीब परिवारों की लड़कियां खरीद लो और फिर उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करो और जिस्मफरोशी करवाओ.
कहां बसता है ये समुदाय..
बांछड़ा समुदाय मूलत: मध्यप्रदेश का है. ये रतलाम, मंदसौर, नीमच इलाके के लोग हैं जो अफीम की खेती के साथ-साथ देहव्यापार में लिप्त है. इसी जाति की महिलाओं की भलाई के लिए काम करने वाले एनजीओ नारी आभा सामाजिक चेतना समिति के संयोजक आकाश चौहान का कहना है कि मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले में 75 गांवों में बांछड़ा समुदाय की 23,000 की आबादी रहती है. इनमें से करीब 2000 से अधिक महिलाएं हैं जो इसी धंधे में लिप्त हैं. बांछड़ा समुदाय में महिलाओं की संख्या ज्यादा है.
महिला सशक्तिकरण विभाग के वर्ष 2015 में किए गए सर्वे के हिसाब से 38 गांवों में 1047 बांछड़ा परिवार में इनकी कुल आबादी 3435 थी. इनमें 2243 महिलाएं और महज 1192 पुरुष थे, यानी पुरूषों के मुकाबले दो गुनी महिलाएं. वहीं नीमच जिले में वर्ष 2012 के एक सर्वे में 24 बांछड़ा बहुल गांवों में 1319 बांछड़ा परिवारों में 3595 महिलाएं और 2770 पुरुष थे.
कारोबार कुछ और ही...
बांछड़ा समुदाय सिर्फ जिस्मफरोशी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहां तो काफी कुछ और भी होता है. यहां बच्चियों की खरीदफरोख्त बाकायदा बिचौलियों की मदद से की जाती है. गरीब परिवारों की बच्चियों को 2000 से लेकर 10 हज़ार तक देकर खरीद लिया जाता है और इन बच्चियों को खरीद लिया जाता है और इसके बाद उन्हें बड़ा होने पर जिस्मफरोशी के धंधे में ढकेल दिया जाता है. आरटीआई कार्यकर्ता एड्वोकेट अमित शर्मा के अनुसार ये पूरी तरह सुनियोजित कारोबार है और लड़कियों को खरीदने-बेचने के लिए बाकायदा रजिस्ट्री भी होती है. आलम ये है कि सिर्फ पैसे कमाने के लिए ही नहीं बल्कि बुनियादी जरूरतें जैसे रोटी और कपड़ों के लिए भी बांछड़ा समुदाय में लड़कियों को जिस्मफरोशी करनी होती है.
बांछड़ा समुदाय में बच्चियों को खरीदने का पहला मामला 2014 में नीमच जिले में सामने आया था. 15 जुलाई 2014 को नीमच पुलिस ने मौया गांव में स्थित बांछड़ा डेरे पर दबिश दी थी. वहां श्यामलाल बांछड़ा के घर 6 साल की एक बच्ची मिली थी. बाद में घर की ही एक महिला ने बताया था कि इस बच्चे को उज्जैन जिले के नागदा से 2009 में खरीद कर लाए थे. इस सौदे को करवाने वाला दलाल मानव तस्करी के मामले में 2011 से ही जेल में बंद है.
इस समुदाय में लड़कियों की संख्या ज्यादा ही ऐसे हुई है कि कई लड़कियां गरीब परिवारों से खरीद कर लाई गई हैं. कुछ परिवारों में पहली बेटी को तो कुछ में सभी बेटियों को देहव्यापार करना पड़ता है. एक रिपोर्ट के अनुसार तो यहां लड़कों को शादी करने के लिए लाखों रुपए देने पड़ते हैं, इसलिए अधिकतर लड़के कुंवारे ही रह जाते हैं. जिनकी शादी हो जाती है उनके बच्चे भी उन्हीं की तरह जिंदगी जीते हैं.
इस समुदाय में लड़कियों की भलाई करने के लिए कई एनजीओ आगे आए हैं, लेकिन देहव्यापार इस कदर यहां फैला हुआ है कि ये न तो बच पा रहे हैं और न ही इसकी बुराइयां समझ पा रहे हैं. लड़की खरीदना यहां एक निवेश माना जाता है और लड़की से देहव्यापार करवाना यहां एक जीना का एक तरीका. उम्मीद ही की जा सकती है कि शायद किसी मोड़ पर ये समुदाय समझ जाएगा कि ये अपनी बेटियों के साथ क्या कर रहा है.
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