गोवा, केरल और पूर्वोत्तर के निवासियों से अन्याय नहीं कर सकते
वर्षों से बीफ कटलेट और बीफ रोलेड गोवा के भोजन का हिस्सा रहे हैं.
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गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर ने पिछले शुक्रवार को मीडिया से बताया कि कैसे वह राज्य में गोमांस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते. उन्होंने कहा कि गोवा में गोमांस पर प्रतिबंध लगाने के मतलब अल्पसंख्यकों (ईसाइयों और मुसलमानों) के आहार का एक प्रमुख स्रोत बंद कर देना है.
वर्षों से बीफ कटलेट और बीफ रोलेड गोवा के भोजन का हिस्सा रहे हैं. भारत में पुर्तगाली विरासत में इसका उल्लेख है. हकीकत में तो बीफ की जीभ खास मानी जाती है. और यह खास मौकों के दौरान बनने वाले भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है. किसी बर्बर फैसले की तरह यह एक विशेष व्यंजन के साथ छेड़छाड़ करने जैसा प्रतीत होता है जिसने खुद को स्थापित किया है. बीफ के शौकीन तर्क देते हैं कि इस पर प्रतिबंध लगा दिए जाने से हमारी रसोई का एक खास खाना कम हो जाएगा जो हमारी विरासत का अहम हिस्सा भी है.
गोवा अकेला ऐसा भारतीय राज्य नहीं है जहां के निवासी बीफ खाना पंसद करते हैं. यह देश के पूर्वोत्तर, पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों के निवासियों के लिए भी महत्वपूर्ण जगह रखना रखता है. केरल में महाराष्ट्र के बीफ बैन के खिलाफ हाल ही में गोमांस खाने का कार्यक्रम आयोजित कर विरोध प्रदर्शन किया गया. जिसमें भारतीय डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के नेतृत्व में हिंदु और मुसलमान एक साथ शामिल हुए. वो बताना चाहते थे कि उनका राज्य गोमांस खाने से किसी धर्म को नहीं जोड़ता. और न ही इसमें विश्वास रखता.
केरल में बीफ बैन के विरोध में बीफ खाते प्रदर्शनकारी |
गोवा में बीफ इस्टू और करी, केरल में भुना बीफ और यहां तक कि बीफ का अचार भी प्रचलित है. जो आम तौर पर कैथोलिक समुदाय के लिए बनाया जाता है. नगालैंड में धूम्रपान के लिए बीफ का इस्तेमाल होता है. और इसकी मसालेदार करी बनाने से पहले इसे धूप में सूखाया जाता है. बीफ बैन के पीछे केवल राज्य सरकार की मंशा धार्मिक नहीं हैं. जनता से उनके खाना पकाने की तकनीक और खानपान की आदतों को न पूछे जाना सभी समुदायों के साथ अन्याय है. जो दशकों से इसे खाते रहे हैं. इसे बनाने की कुछ रेसिपी तो पुराने दौर की किताबों में भी लिखी हैं. और उन्हें नए प्रयोग के साथ बनाना कई शौकिया लोगों को खूब पंसद है.
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