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Updated: 29 मार्च, 2016 03:54 PM
आशीष कुमार ‘अंशु’
आशीष कुमार ‘अंशु’
  @ashishkumaranshu
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एनजीओकर्मी खुर्शीद अनवर पर जब पूर्वोत्तर भारत की एक एक्टिविस्ट ने बलात्कार का आरोप लगाया था, उसी आरोप के आधार पर एक खबरिया चैनल ने खुर्शीद को अपने प्राइम टाइम के प्रसारण में ‘बलात्कारी’ कहकर संबोधित कर दिया. ‘बलात्कारी’ संबोधन से देश भर के कम्यूनिस्ट सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धीजीवी, प्रोफेसर, पत्रकार बौखला गए. उन्होंने इस घटना के बाद एक बहस छेड़ दी कि जब तक किसी पर बलात्कार साबित ना हो जाए तब तक क्या उसे बलात्कारी कहना सही होगा? इस पूरी मुहिम का नेतृत्व ‘जनसत्ता’ के पूर्व संपादक ओम थानवी ने किया. खुर्शीद वैसे कई लोगों से आपसी बातचीत में कह चुके थे कि यदि वह लड़की सामने से आकर खुद कहे कि मैंने उसके साथ बलात्कार किया है तो मैं इस अपराध को कुबूल कर लूंगा. उनको इस बात का यकिन नहीं रहा होगा कि कथित पीड़िता यह साहस कर पाएगी. वे गलत साबित हुए और एक दिन कथित पीड़िता ने मीडिया के कैमरे के सामने खड़े होकर यह बयान दे दिया कि खुर्शीद अनवर ने उसके साथ बलात्कार किया था. इस सदमे से खबर आने के अगले दिन ही खुर्शीद ने खुदकुशी कर ली. इसे कुछ बड़े पत्रकारों ने मीडिया ट्रायल का नाम दिया. कुछ एक्टिविस्ट और प्रोफेसर किस्म के लोगों ने यह भी कहा कि खुर्शीद मीडिया ट्रायल के शिकार हुए हैं. 

इन सारी बातों का जिक्र आज इसलिए कर रहा हूं कि इसी तरह का मीडिया ट्रायल कॉमरेड बेला सामरी भाटिया ने जगदलपुर से रिपोर्टिंग करते हुए किया. लेकिन किसी कम्यूनिस्ट पत्रकार, प्रोफेसर, बुद्धीजीवी को इस पर आपत्ति नहीं है. बल्कि ज्यां द्रेज को एक वेवसाइट पर अपने आलेख में बताना पड़ा कि वे और बेला नक्सलियों के लिए काम नहीं करते.

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प्रोफेसर अशोक वाजपेयी ने सहिष्णुता-असहिष्णुता की एक बहस के दौरान प्रवीण शुक्ल नाम के एक युवक को जिसने प्रोफेसर वाजपेयी से कहा था कि उसका आरएसएस से कोई संबंध नहीं है, बड़े प्यार से समझाया था- ‘जो यह कहता है कि मैं यह नहीं हूं. वह वही होता है. इस बात में संदेह करने वाली कोई बात नहीं होती.’ युवक प्रवीण शुक्ल के लिए जो फॉर्मुला प्रोफेसर अशोक वाजपेयी ने बनाया था, वह बेला भाटिया और ज्यां द्रेज पर भी लागू होता ही होगा.

अब बेला भाटिया की रिपोर्टिंग पर थोड़े विस्तार से बात करते हैं. बेला ने 40 आदिवासी महिलाओं से बातचीत के आधार पर अपने लंबे लेख में यह साबित किया है कि छत्तीसगढ़ के सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ बलात्कार किया है. जबकि अभी इस मामले की जांच पूरी नहीं हुई है. जांच तो बड़ी बात है, अभी अपराधियों की शिनाख्त होना भी शेष है. बेला की स्टोरी पढ़कर यह भी स्पष्ट नहीं होता कि क्या कथित तौर पर 40 आदिवासी बलात्कार पीड़िता महिलाओं के साथ मेडिकल के बाद बलात्कार की पुष्टि हो चुकी है या नहीं?

खुर्शीद मामले में सक्रिय ओम थानवी - तीस्ता सीतलवार - सईद नकवी - अरूंधति राय सरीखे एक्टिविस्ट-पत्रकार क्या बेला से पूछ सकते हैं कि बस्तर से बयान के आधार पर सनसनी रिपोर्टिंग का उनका मकसद क्या था? क्या वह अपनी रिपोर्टिंग से सनसनी फैलाना चाहती थीं? यदि यह मकसद था तो वह काफी हद तक इसमें सफल रही हैं. कथित बलात्कार पीड़िता महिलाओं की बात को रिकॉर्ड करके हंगामा स्टोरी बनाने की जगह बेला यदि उन अपराधियों तक पहुंचने का प्रयास करतीं, जो दोषी हैं तो उनकी कहानी मुकम्मल हो पाती. उनकी स्टोरी की हाहाकार और ललकार को पढ़कर यही समझ आता है कि उनका मकसद आदिवासी महिलाओं के दर्द को कम करना ‘कम’ था, बल्कि भारतीय सुरक्षा बल को बदनाम करना अधिक था. हजारों की संख्या में सुरक्षाकर्मी छत्तीसगढ़ की सुरक्षा में लगे हुए हैं. यदि आप चालीस पचास कथित अपराधी सुरक्षाकर्मियों की पहचान का खुलासा नहीं करतीं, इसका मतलब तो यही होगा कि आपका मकसद कथित बलात्कार पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाना नहीं बल्कि भारतीय सुरक्षा बल को बदनाम करना था. जो ईमानदारी से बस्तर में अपना फर्ज निभा रहे हैं. नक्सली हमले में जो जान देने से पीछे नहीं हटते. बीजापुर से लेकर सुकमा तक जो नक्सली हमले में जान दे रहे हैं. बेला भाटिया क्यों आपके हजारों शब्दों की स्टोरी में नक्सलियों के हाथों शहीद हुए जवानों के लिए सहानुभूति के दो शब्द भी नहीं थे.

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अब छत्तीसगढ़ और बस्तर की आम जनता भी इस खेल को भली भांति समझने लगी है, इसी का परिणाम रहा होगा कि आपके किराए के घर के बाहर इतनी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ में विरोध प्रदर्शन हुआ. बेला कभी उनका दर्द भी लिखिए जिनका नक्सलियों के हाथों बलात्कार हुआ. जिन्होंने अपना सबकुछ नक्सलियों के हाथों खो दिया लेकिन उनका दर्द ना आप देख पाती हैं बेला और ना आपकी बड़ी बहन अरूंधति. 

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