सीबीएसई स्कूलों में अब बच्चों को फीचर नहीं लड़कियों के 'फीगर' बताए जा रहे हैं!
अब सीबीएसई स्कूलों में 12 वीं कक्षा के छात्रों के फीजिकल एजुकेशन की किताब में कहा गया है कि 36-24-36 का फीगर महिलाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं और पुरुषों के लिए 'वी' साइज बेस्ट होता है!
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अभी कुछ दिन पहले ही सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने 12वीं के बोर्ड परीक्षा में बायोलॉजी के छात्रों से एक बहुत ही अजीब सा सवाल पूछा था. सवाल में छात्रों से पूछा गया था कि किसी भी मृत शरीर को दफनाने और जलाने के बीच में पर्यावरण के लिहाज से बेहतर विकल्प क्या है. यही नहीं इसके पहले महाराष्ट्र सरकार अपने सोशियोलॉजी के किताब में दहेज प्रथा के कारणों में लड़की के बदसूरत होने को एक कारण छात्रों को पढ़ाते नजर आए.
अभी इन सब अजीबो-गरीब बातों से लोग उबरे भी नहीं थे कि एक और बम फूट गया है. अब सीबीएसई स्कूलों में 12वीं कक्षा के छात्रों के फीजिकल एजुकेशन की किताब में कहा गया है कि 36-24-36 का फीगर महिलाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ है.
'हेल्थ एंड फिजिकल एजुकेशन टेक्स्ट बुक' नाम के इस पाठ्यपुस्तक में इस बात का उल्लेख करते हुए कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं. छात्रों को समझाने के लिए किताब में मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स जैसी मॉडलों का उदाहरण देते हुए लिखा गया है कि प्रतियोगिता में इनके चयन के लिए 36-24-36 के आकार को ध्यान में रखा जाता है.
Physical Education Book, 12th standard. pic.twitter.com/wpruZPBuXC
— Anuj Khurana (@HaddHaiYaar) April 10, 2017
न्यू सरस्वती हाउस (हालांकि ये किताब एनसीईआरटी द्वारा प्रमाणित नहीं है) द्वारा प्रकाशित पुस्तक पर एक नज़र डालें. ये किताब हमारे देश के भविष्य के नागरिकों के दिमाग में सुंदरता के कैसे आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं ये इसकी बानगी है. हद तो ये है कि इन्होंने पुरुषों को भी नहीं छोड़ा है. इस किताब में लिखा गया है कि जब बात पुरुषों की आती है तो 'वी' आकार के शरीर को सबसे अच्छा माना जाता है.
ऐसी किताब को सच में आग लगा देनी चाहिए
हालांकि सीबीएसई ने ये साफ किया है कि बोर्ड किसी प्राइवेट पब्लिशर की किताब को पढ़ाने की अनुशंसा नहीं करता और ये किताब एनसीईआरटी से प्रमाणित भी नहीं है. लेकिन फिर भी हैरानी इस बात की है ये किताब नामी गिरामी सीबीएसई स्कूलों के सिलेबस का हिस्सा हैं. आज के दौर में एजुकेशन से अच्छा बिजनेस कोई और नहीं है ये तो हम सब समझ ही चुके हैं. क्योंकि अब स्कूल बच्चों को ज्ञान देते हों या नहीं पर बच्चों के किताब से लेकर जूते-मोजे जरुर बेचने लगे हैं. और अभिभावकों को उसी स्कूल से ये सारी चीजें लेनी है इस बात की बाध्यता भी है.
तो ऐसे में सवाल उठता है कि अगर सीबीएसई को सिर्फ इस कारण की ये किताब एनसीईआरटी से प्रमाणित नहीं थी को माफ भी कर दिया जाए, तो क्या उसके शुतुरमुर्ग बने रहने के लिए माफी देनी चाहिए? सीबीएसई को नहीं दिखता कि उसके नाक के नीचे स्कूलों की मनमानियों से बच्चों के अभिभावकों की पॉकेट तो खाली हो ही रही हैं साथ ही धड़ल्ले से स्कूलों एनसीईआरटी किताबें खत्म होने की कगार पर खड़ी हैं?
इस सिलेबस के सामने आने के बाद सीबीएसई के लिए तो मेरे पास एक ही राय है कि वो अपना साइज एक बार जरुर नाप ले. कुछ तो शर्म आ ही जाएगी शायद.
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