New

होम -> समाज

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 31 जनवरी, 2022 05:03 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
  • Total Shares

बिग बॉस सीज़न 'पन पनापन 15' में तेजस्वी प्रकाश की जीत हैरान कर देने वाली है. मेरी नज़रों में इस जीत का सही मायने में कोई हक़दार था, तो वो है प्रतीक सहजपाल. पूरी शिद्दत के साथ इस लड़के ने यह गेम खेला है. जहाँ तेजस्वी यह तलाश करने में लगी रहीं कि करन उनके अलावा और किस-किस से कितनी बात करता है, कौन किसके बारे में क्या कहता है. वहीं प्रतीक का पूरा फोकस केवल और केवल इस गेम पर था. वो न तो लगाई-बुझाई में रहे और न ही किसी टास्क के दौरान ज्यादा प्लानिंग में पड़े. उन्होंने डंके की चोट पर अपना गेम खेला और इस तरह खेला कि उनके विरोधी भी उनकी गलती नहीं निकाल सके! कारण साफ़ है कि प्रतीक ने अपनी शुरुआती गलतियों (दरवाजे की कुंडी तोड़ने वाली) से सीखा, उन्हें दोहराया नहीं!

Bigg Boss 15 Winner, Bigg Boss 15, BB 15, Bigg Boss winner, Tejasswi Prakashप्रतीक सहजपाल ने पूरी शिद्दत के साथ यह गेम खेला है

उसके बाद उन्होंने इस गेम को पूरी ईमानदारी से खेला. सच और झूठ को जस का तस रखा. किसी का फेवरेट बनने की कोशिश कभी नहीं की. लेकिन उनके खेलने का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था कि सब उनको पसंद करने लगे. यद्यपि शमिता, निशांत और राखी ने ही खुलकर उनका समर्थन किया लेकिन अपने अलावा यदि कोई, किसी और को विजेता देखना पसंद करता तो वे प्रतीक ही थे. बीच में कुछेक एपिसोड निशांत ने भी प्रभावित किया था और लगा कि वे भी स्ट्रॉन्ग कंटेस्टेंट हैं लेकिन जब वे दूसरों के लिए खेलते दिखाई देने लगे तो यह छवि धूमिल होती चली गई. त्याग और बलिदान की अमर कहानी फ़िल्मों में हिट हो सकती है, रियलिटी शोज में इस भाव से खेलने वाले प्रभावित नहीं करते! क्योंकि यदि आप जीतना ही नहीं चाहते तो फिर गेम में आए ही किसलिए हैं?

मैं यह भी सोच रही हूँ कि तेजस्वी को जनता ने क्यों चुना? जबकि तेजस्वी ने इस गेम में कई बार पाले बदले हैं और उनका स्वार्थी रूप भी खुलकर सामने आया. उन्होंने अच्छे से खेला, इससे भी इंकार नहीं पर यह भी सच है कि प्रतीक उनसे अधिक बेहतरीन खेले. तो ऐसे में क्या अलग रहा जो ट्रॉफी तेजस्वी को मिली?

एक दर्शक के नाते मुझे लगता है कि शायद वे जनता की सहानुभूति बटोरने में सफ़ल रहीं. भले ही उन्होंने ऐसा सोचकर नहीं किया लेकिन उनका हर टास्क में बार-बार यह कहना कि 'मैं तो हारूँगी! मेरे साथ तो कोई है ही नहीं' ही उनके पक्ष में काम कर गया.

शमिता को लेकर अपनी इनसिक्योरिटी को यूँ तो तेजस्वी ने कभी स्वीकार नहीं किया लेकिन उनकी हर बात और एक्शन से उनका तथाकथित 'दुख' साफ़ झलकता रहा. भावुक जनता इससे भी पिघली होगी.

तेजस्वी रोते हुए यह कहते भी पाई गईं कि "जिसका कोई नहीं, उसके साथ ईश्वर होता है."

लगता है उनकी यही सारी बातें जनता-जनार्दन के दिल को टच कर गईं और उन्होंने खुलकर दिखाया, "बेबी, हम हैं न तुम्हारे साथ!'

सीधा-सीधा कहें तो तेजस्वी के गेम से कहीं अधिक, उनका विक्टिम कार्ड' ही बाकी प्रतिभागियों के विपक्ष में खेला कर गया. थोड़े संकोच के साथ ही सही पर ये बात कहने से भी मैं गुरेज नहीं करुँगी कि वोटिंग लड़के अधिक करते हैं और उनका झुकाव विपरीत आकर्षण के प्रति स्वाभाविक तौर पर होता ही है.

प्रतीक का दोष यह था कि वे अपना गेम खेलते हुए सबकी नज़रों में तो अच्छे बने रहे पर उन्होंने दर्शकों से उस तरह की बॉन्डिंग या वोट अपील नहीं की. वे ये तो कहते रहे कि "भैया, सब जनता के हाथ में है. वही जिताएगी." लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि "मुझे जिताना." अब आज के जमाने में तो उसे ही अधिक पूछा जाता है जो हमारी कद्र हमसे कहकर करे. इसलिए फिलहाल तो यही नज़र आ रहा कि वे पूरी तरह से कनेक्ट नहीं हो सके और जरूरत से अधिक आत्मविश्वास ही उनकी हार का कारण बना.

पता नहीं, वोटिंग कैसे हुई! क्योंकि जहाँ तक दर्शकों के बीच पॉपुलैरिटी का सवाल है तो प्रतीक की फैन फॉलोइंग ऐसी कम तो कतई नहीं है. शायद उनकी हार का कारण मुझ जैसे दर्शक भी हैं जो किसी प्रतिभागी के साथ तो होते हैं पर वोटिंग कभी नहीं करते! 'कौन करे!, हमको क्या कोई भी जीते!' की मानसिकता के बाद फिर यही अफ़सोस हाथ लगता है! खैर! जो होना था, हो चुका. प्रतीक में इतनी प्रतिभा है कि उन्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता! यह तो एक पड़ाव भर है.

अच्छा! आपको वो पल याद है जब सलमान ने टॉप 3 में सबसे पहले प्रतीक को आउट किया था, लेकिन बाद में पता चला कि यह ड्रामा था. जब प्रतीक बाहर हुए तब उस समय वहाँ मौजूद शेष प्रतिभागियों के चेहरों पर कैसी निराशा थी! ये अलग बात है कि उसी दौरान तेजस्वी ने स्वयं और करन के टॉप 2 में होने की खुशी मना ली थी! अचानक पासा पलटा और सलमान, करन का हाथ थाम उन्हें सामने दर्शकों में बिठा आए और प्रतीक को वापिस लिवा लाए. तेजस्वी और करन ये सब देखकर हक्का-बक्का थे लेकिन उन क्षणों में बाकी प्रतियोगी खुशी से पगला रहे थे. सबके दिलों में प्रतीक थे और तब जैसे तय ही हो गया था कि प्रतीक ही विनर है. एक दर्शक के तौर पर मेरी प्रसन्नता भी चरम पर थी. लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगी.

पर याद रहे, तेजस्वी को जनता ने चुना है, उनसे हमारी भी कोई दुश्मनी नहीं है. तो इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए उन्हें खूब सारी बधाई. उनकी और करन की जोड़ी सलामत रहे. हाँ, करन से याद आया कि तेजस्वी की जीत के बाद भी उनके चेहरे पर वही संतुलित प्रतिक्रिया थी जैसी वे इस गेम में रखते रहे हैं. भिया, इत्ता बैलेंस भी ठीक नहीं! आपकी प्रेमिका जीती है, आपको दौड़कर उसे बाँहों में भर लेना चाहिए था. खड़े होकर जोर से ऐसी तालियाँ पीटनी चाहिए थीं कि आपकी खुशी की धमक ये दुनिया सुनती. और हमको यूँ न लगता जैसे आप अपने साथी की जीत को, अपनी हार से माप रहे हैं. हम तो यही कहेंगे कि प्रेमियों के जीवन में ऐसे मौके बार-बार नहीं आते, आप अपनी हार का अफ़सोस बाद में मना लेते वो समय तेजस्वी की जीत में खुश होने का था. है न!

फैंस का दिल से शुक्रिया करते प्रतीक- 

लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय