बिहार में पूर्ण शराबबंदी: ऐतिहासिक लेकिन कठिन फैसला
पूर्ण शराबबंदी के नीतीश कुमार के इस कदम की काफी सराहना की जा रही है, महिलाएं बेहद खुश हैं. हालांकि शराबबंदी पर बिहार के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए ये कहना मुश्किल है कि ये पाबंदी कितने दिनों तक रह पाएगी.
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बिहार में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा एक ऐतिहासिक फैसला है. विगत 5 अप्रैल को बिहार सरकार के निर्णय के बाद से बिहार के शहरी और देहाती इलाके में सभी तरह के शराबों की बिक्री पर पाबंदी लग गई है. पहली अप्रैल से देसी शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई गई थी, लेकिन सिर्फ देसी शराब की बिक्री पर पाबंदी से शराब बंदी के औचित्य पर सवाल उठाए जा रहे थे. लिहाजा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साहसिक कदम उठाते हुए पांच अप्रैल से विदेशी शराबों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.
नीतीश कुमार के इस कदम की काफी सराहना की जा रही है. जाहिर तौर पर सराहना की वजह भी है. शराब के चलते सैकड़ों परिवार बर्बाद हो गए हैं. महिलाओं को ज्यादा परेशानियां थीं. शराबियों के आतंक से महिलाएं घर और बाहर आतंकित रहती थीं. गरीब परिवार आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे थे. लिहाजा, सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा तारीफ महिलाएं ही कर रही हैं. गौरतलब है कि महिलाओं की मांग पर ही राज्य में शराबबंदी लागू की गई है. विगत 9 जुलाई 2015 को पटना में आयोजित ग्रामवार्ता में जीविका से जुड़ी महिलाओं ने शराबबंदी का मुददा उठाया था. तब नीतीश कुमार महिलाओं को आश्वस्त किया था कि नई सरकार गठन के बाद शराबबंदी लागू कर दी जाएगी. सरकार गठन के कुछ दिन बाद से ही शराबबंदी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई और चार महीने बाद इसे लागू कर दिया गया.
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हालांकि राज्य सरकार ने पहले चरण में देसी और दूसरे चरण में विदेशी शराब पर पाबंदी का फैसला लिया था. लेकिन विपक्षी दल इसे सस्ती लोकप्रियता करार दे रहे थे. आश्चर्यजनक रूप से चार दिनों बाद पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर दी गई. इसका विपक्षी दलों ने भी स्वागत किया.
पूर्ण शराबबंदी के फैसले से महिलाएं बोहद खुश है. राष्ट्रीय महिला ब्रिगेड के सदस्य खुशियां मनाते हुए |
बहरहाल, असल सवाल सरकारी फैसले पर अमल करने को लेकर है. देखें तो, शराबबंदी पर बिहार का पिछला रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. 1977 में जननायक कर्पूरी ठाकुर ने शराब पर पाबंदी लगाई थी. लेकिन शराब की कालाबाजारी और कई अन्य परेशानियों की वजह से यह पाबंदी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. लिहाजा, खुलेआम शराब की बिक्री जारी रही.
बिहार अकेला ऐसा राज्य नही है जहां शराबबंदी में निराशा हाथ लगी थी. हरियाणा, आंध्रप्रदेश और मिजोरम में शराबबंदी हुई थी. लेकिन यहां भी शराबबंदी कारगर नहीं हो पाई. अब इन राज्यों में शराब की बिक्री होती है. हालांकि गुजरात, नागालैंड, लक्ष्यद्वीप के अलावा मणिपुर के कुछ हिस्सों में शराब बिक्री पर पाबंदी है. यही नहीं, केरल में 30 मई 2014 के बाद से शराब दुकानों को लाइसेंस मिलना बंद हो गया है. इसका उदेश्य है कि पांच सालों में पूर्ण पाबंदी लागू कर दी जाएगी.
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शराबबंदी में गुजरात की खूब चर्चा होती है. हालांकि यहां भी शराब की कालाबाजारी की शिकायतें मिलती रही हैं. एक बड़ी आबादी शराब का सेवन करती है. बताया जाता है कि गुजरात में प्रत्येक साल शराब का करीब 400 करोड़ रूपए का अवैध कारोबार होता है. फिर भी बाकी राज्यों से बेहतर है. बता दें कि गुजरात में 1960 से शराबबंदी है. इसके लिए केन्द्र सरकार हरेक साल 100 करोड़ रूपए मदद भी करती है.
बात बिहार की करें तो दक्षिण में झारखंड जबकि उतर में भारत का पड़ोसी देश नेपाल में शराब की छूट है. इसके अलावा उतर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों का सीधा संपर्क बिहार से है. इन राज्यों में शराब की पाबंदी नहीं है. ऐसे में शराब के कालाबाजारी का खतरा यहां भी कम नहीं है. उत्पाद विभाग के पास पुलिस बल की भी कमी रही है. वैसे, उत्पाद विभाग ने राज्य के गृह विभाग से करीब 2000 सैप जवान की मांग की है. फिलहाल, 470 सैप और 4000 होमगार्ड उपलब्ध कराए गए हैं. दूसरी तरफ, एक हालिया सर्वे के मुताबिक, राज्य में करीब 29 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं. इसमें 0.2 फीसदी महिलाएं भी शामिल हैं. आंकड़े के हिसाब से देखें तो राज्य में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं. इसमें 40 लाख लोग ऐसे हैं जो आदतन शराबी हैं. आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में सलाना 990.30 लाख लीटर शराब की खपत होती रही है.
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दरअसल, बिहार में नई उत्पाद नीति से शराब कारोबार ने व्यापक आकार लिया है. जुलाई 2006 में मिलावटी शराब से हानि, बीमारी और मौतों को रोकने के उदेश्य से नई उत्पाद नीति बनी थी. 2005-06 में 295 करोड़ आमदनी थी, जो 2014-15 में 3220 करोड़ रूपए पहुंच गई. यही आमदनी 2015-16 में करीब 4000 करोड़ पहुंच गई. राज्य में 5967 दुकानें स्वीकृत थीं. लेकिन देसी शराब की बंदी के बाद 650 विदेशी शराब की दुकानें खुलनी थी. चार दिनों में 132 विदेशी शराब की दुकानें खुल गई थीं. लेकिन सरकारी घोषणा के बाद इसे भी बंद कर दिया गया है.
हालांकि राज्य में ताड़ी की बिक्री पाबंदी से अलग है. वैसे 1991 से सार्वजनिक स्थल पर ताड़ी बिक्री पर पाबंदी थी. इसे और भी प्रभावी बनाने की बात कही गई है. ताड़ी की दुकानें सार्वजनिक स्थानों, हाट बाजार के प्रवेश द्वार, फैक्ट्री, पेट्रोल पंप, श्रमिक बस्ती, अस्पतालों, स्टेशन, बस पड़ाव और शहरी आबादी से 50 मीटर के दायरे में नही रहेगी. एससी/एसटी तथा झुग्गी बस्ती और सघन आबादी वाले इलाका में ताड़ी बिक्री नहीं होगी. गौर करें तो, ताड़ी पीने के मामले में आंध्रप्रदेश पहले पायदान पर है. जबकि असम, झारखंड के बाद बिहार के लोग सर्वाधिक ताड़ी पीते हैं. आंध्रप्रदेश में प्रति माह 12.10 रूपए जबकि बिहार 3.54 रूपए प्रति व्यक्ति ताड़ी में खर्च करते हैं. ऐसे में शराब और ताड़ी में फर्क कर पाना प्रशासन के लिए चुनौती है. बहरहाल, शराब की पूर्ण पाबंदी स्वागत योग्य है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इसमें कितना सफल हो पाती है.
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