लिव-इन में रह रही लड़की की मौत पर सारा दोष उसी पर मढ़ने से समाज को राहत तो मिलेगी ही
हम तो उस समाज से आते हैं जो लिव इन में रह रही लड़की के मौत पर कहते हैं कि ठीक हुआ, वो यही डिज़र्व करती थी. ख़ैर. तो जब तक ये समाज लड़कियों को ये आज़ादी नहीं देगा कि वो अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले खुद कर सके तब तक अनु बंसल, श्रद्धा, अंकिता और न जाने कितनी लड़कियां क़ुर्बान होती ही रहेंगी.
-
Total Shares
मुझे एक बात समझ में नहीं आती है कि जब लड़का साफ़-साफ़ बोल देता है कि शादी नहीं करेंगे, तब भी लड़की को उसी लड़के से शादी क्यों करनी है? यार अगर वो प्यार करता और उसे साथ रहना होता तो शादी के लिए मना ही नहीं करता. तो लड़कियों फिर भी उसी लड़के से शादी क्यों करनी होती है? कम से कम प्यार के लिए तो नहीं. फिर क्या कारण है? लड़कियों को भी पता रहता होगा न कि अब इस रिश्ते में प्यार नहीं बचा है, फिर भी बिना प्यार वाले रिश्ते को शादी में क्यों बदलना चाहती हैं? कभी सोचा है, कि आख़िर लड़कियां ऐसा क्यों करती हैं? लड़कियों को ऐसा करने के लिए ये समाज मजबूर करता है. कैसे?
देखिए, एक तो अपने समाज में आधे टाइम तो लड़कियों को जज किया जाता है कि अगर किसी से प्यार करती थी और उसके साथ शारीरिक सम्बंध बनाए हैं तो ये लड़की चरित्रहीन है. वहीं वो लड़का जो उस लड़की के साथ फ़िज़िकल हुआ, उसके लिए हमारे समाज में कोई सेइंग नहीं है. लड़के के लिए तो आप सुनते और कहते आए हैं कि लड़के का क्या है, उसकी कौन सी “वर्जिनिटी” जाती है.
कुछ सवाल हैं जिन्हें प्यार में डूबी लड़कियों से जरूर पूछा जाना चाहिए कब तक वो चुप रहेंगी
वर्जिनिटी तो लड़कियों की जाती है और शादी के बाद लड़की वर्जिन नहीं मिली तो कितनी ही लड़कियों की ज़िंदगी नर्क़ बना दी जाती है. हां-हां सब लड़के ऐसा नहीं करते लेकिन कई जगह, कई समुदायों में आज भी दुल्हनों का वर्जिनिटी टेस्ट कराया जाता है. बाक़ायदा एक रस्म होती है जिसे राजस्थान में कुकड़ी कहते हैं.
कई जगहों पर तो दुल्हन के परिवार को जुर्माना भरना पड़ता है. इसके बाद भी तमाम उम्र उनको ताने सुनने को मिलते ही हैं. आप कह सकते हैं कि किसी एक हिस्से में ऐसा होता है तो ज़रूरी नहीं कि देश के दूसरे हिस्से में ऐसा ही हो. अभी ही बिहार के मोतिहारी में एक दूल्हा दुल्हन की विदाई से पहले शर्त रखी कि दुल्हन की वर्जिनिटी टेस्ट हो और वो पास होगी तभी विदाई करवाएगा.
अब बताइए ऐसी शर्तें जब लड़कियों के सामने रखी जाएंगी तब तो वो बिना प्यार वाली शादी ही चुनेंगी न. जब तक ये समाज लड़कियों को ले कर नॉर्मल सोच नहीं रखेगा तब तक लड़कियां बिना प्यार वाली शादी, शादी के बाद ससुराल वालों के हाथों मारी ही जाती रहेंगी, और हम कुछ नहीं कर पाएंगे. इसके अलावा लड़कियां आर्थिक रूप से भी सक्षम नहीं होती कि वो लड़के को बोल सके कि भाड़ में जा, नहीं करनी शादी मत कर, मैं अपनी ज़िंदगी अपने शर्तों पर जी सकती हूं.
और कई बार तो आर्थिक रूप से आज़ाद होने के बाद भी लड़कियां शादी के लिए लड़कों के आगे गिड़गिड़ाती हैं क्योंकि उनको पता है कि अगर इससे शादी नहीं हुई तो मां-बाप कहीं और करवा ही देंगे. किसी अजनबी के साथ ज़िंदगी बिताने का ख़्याल भी इतना भयानक होता है कि वो जिससे प्यार करती थीं कभी या अब भी कर रहीं हैं उसी के साथ ज़िंदगी बिताना चाहती हैं.
ऐसे में जितनी गलती उस लड़के की है जो शादी का वादा करके मुकर गया, उतनी ही गलती लड़की के परिवार की भी है. इसी चक्कर में कई बार लड़कियाँ लड़कों पर ग़ुस्से में आ कर बलात्कार जैसे आरोप लगा देती हैं. क्योंकि उनको अपने लिए कोई रास्ता नहीं दिख रहा होता है. न उन्हें कोई समझने वाला होता है और न ही समझाने वाला. अगर इन लड़कियों की काउंसलिंग करवाई जाए तो ये बच सकती हैं, लेकिन इनके लिए इतना कौन सोचना चाहते हैं.
हम तो उस समाज से आते हैं जो लिव-इन में रह रही लड़की की मौत पर कहता है कि, ठीक हुआ, वो यही डिज़र्व करती थी. ख़ैर. तो जब तक ये समाज लड़कियों को ये आज़ादी नहीं देगा कि वो अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले खुद कर सके तब तक अनु बंसल, श्रद्धा, अंकिता और न जाने कितनी लड़कियां क़ुर्बान होती ही रहेंगी. इस समाज को, इस देश को बेटियों को ले कर नॉर्मल होना ही होगा. नहीं तो ये देश रो रहा है जैसे डायलॉग मार कर कुछ नहीं होगा!
आपकी राय