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Updated: 02 सितम्बर, 2016 06:55 PM
प्रियंका ओम
प्रियंका ओम
  @priyanka.om
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कुछ दिन पहले एक दोस्त ने बताया की रांची और हटिया (झारखंड) रेलवे स्टेशन पर उसने फीडिंग बूथ देखा. फीडिंग बूथ तो आप समझते हैं ना? जी हां,  जहां मां अपने बच्चे को सबसे छुप कर स्तनपान करा सके. नहीं...नहीं, ये टेलीफोन बूथ जैसा पारदर्शी दीवार वाला नहीं होता, बल्कि स्टेशन पर मौजूद शौचालय और स्नानघर जैसा ही होता है. और सबसे अजीब बात ये है कि ये फीडिंग बूथ महिला प्रतीक्षालय में ही बनाया गया है.

इसका क्या मतलब हो सकता है? क्या महिला को महिलाओं से भी पर्दा करना चाहिए या एक महिला, महिलाओं से भी सुरक्षित नहीं?  

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एक ओर तो स्तनपान कराती विदेशी महिला की तस्वीर सोशल मीडिया पर महिला सशक्तिकरण और स्वच्छंदता पर कशीदे गढ़ते हुए घूमती है, दूसरी ओर स्टेशन पर अपने देश की महिला के लिए फीडिंग बूथ बनवाए जाते हैं वो भी महिला प्रतीक्षालय के अंदर. जब बच्चे को जन्म देने में कोई शर्म महसूस नहीं हुई तो उसे स्तनपान कराने में कैसी शर्म?

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 ब्राजील की राजनीतिज्ञ मैनुएला डिएल्विया की संसद में स्तनपान कराती ये तस्वीर पिछले दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई

जिन महिला और पुरुषों ने सत्र के दौरान स्तनपान कराती ब्राज़ीलियन महिला की तस्वीर अपनी वॉल पर चिपका रखी थी उनमें से कुछ पुरुषों से मैंने इनबॉक्स में पूछा- ‘क्या आपके घर की महिला को आप ऐसा करने इजाज़त दोगे?’ उन्होंने साफ कहा- ‘देखिए प्रियंका जी, बच्चे को भूख जगह देखकर नहीं लगती इसलिए सार्वजनिक स्थल पर दूध पिलाने में कोई आपत्ति नहीं है’. मैंने उन्हें सुधारते हुए कहा- ‘दूध पिलाना नहीं स्तनपान’. इसपर उनका जवाब था- ‘देखिए व्यक्तिगत तौर पर तो मुझे कोई आपत्ति नहीं लेकिन दूसरे पुरुष जब इन्हें घूरते हैं तो बहुत खराब लगता है’. 

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मतलब आपके घर की महिला को घूरे तो खराब, लेकिन आपने खुद किसी और महिला की फोटो अपनी वॉल पर चिपका दी. तो क्या फर्क रहा आपमें और उनमें?

यह दोहरी मानसिकता ही है जो पुरुष अपनी वॉल पर या किसी महिला मित्र की वॉल पर नारी उत्थान और नारी सशक्तिकरण की बातें बढ़-चढ़ कर करते हैं, लेकिन बात जब अपने घर की महिला की आती है तो कितने ही अगर मगर और लेकिन का जन्म स्वतः ही हो जाता है. 

खैर मैंने एक दो महिला से भी यही सवाल दोहराया ‘क्या आपने सार्वजनिक स्थल पर बच्चे को स्तनपान कराया है/कराती हैं/ करा सकती हैं? कुछ महिलाएं तो तुरंत ऑफ लाइन हो गईं और जो रह गईं उन्होंने कहा ‘सार्वजनिक स्थल पर कई तरह के लोग होते हैं और उनके माथे पर उनकी मानसिकता नहीं लिखी होती!’

‘तो फिर आप अपनी वॉल पर यह तस्वीर चिपकाकर दूसरी महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?’ ‘देखिए वो तस्वीर संसद की है जगह महत्वपूर्ण होती है. वहां सभी पढ़े-लिखे लोग हैं. पढ़े लिखे लोग प्रगतिशील विचारधारा के होते हैं, उनके बीच मुझे कोई आपत्ति नहीं.’ 

खैर मैं इनकी बात से भी इत्तेफाक नहीं रखती. सांसद तो सत्र के दौरान पोर्न देखते हुए पाए गए हैं और उनके अश्लील विडीयो आम हो रहे हैं. ऐयरकंडिशन्ड कॉर्पोरेट ऑफिस में तो महिलाओं को सबसे ज्यादा घुटन होती है. आखिर ‘पैसा पावर और प्रमोशन ऐसी बहुत सी जिजीविषाएं हैं जिसके लिए उनको अपनी आत्मा को मारना पड़ता है. जबकि अक्सर गांव की महिला को बेझिझक सार्वजनिक स्थल पर स्तनपान कराते हुए देखा जाता है. आपने भी देखा होगा गांव से शहर आती जाती बसों में, खेतों में पुरुष सहकर्मी के सामने, सरकारी अस्पताल की भीड़ में भी. और इन्हें कोई घूरता भी नहीं क्योंकि वो फूहड़ कहलाती हैं. मैंने गांव में कई बार देखा है खेतों में काम करने वाली मजदूर औरतें बच्चे को स्तनपान कराते हुए बेझिझक अपने मालिक से देहाड़ी का हिसाब करती हैं. उन्हें ऐसा करने में शर्म महसूस नहीं होती.

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अपने ढाई महीने के बेटे को लेकर जब मैं अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा कर रही थी तब आम भारतीय बच्चे की तरह उसने भी डब्बा बंद खाना नहीं खाया था, क्योंकि हम भारतीयों के बच्चे तो छः महीने तक सिर्फ स्तनपान करते हैं और मुझे यात्रा के दौरान एयरपोर्ट और फ्लाइट में उसे ब्रेस्ट फीडिंग करानी पड़ी थी. यकीन मानिए ऐसा करने में मुझे गांव की औरतों की तरह न तो कोई झिझक और शर्म महसूस हुई और किसी ने मुझे घूरा भी नहीं. 

तो फिर स्टेशन पर फीडिंग बूथ बनवाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या ये मिडल क्लास की सोच का परिणाम है जो सार्वजनिक स्थल पर स्तनपान कराना फूहड़ता कहलाती है, या बढ़ती हुई बलात्कार की घटनाएं हैं जिससे महिलाएं खुद को पुरुषों की खास स्कानिंग मशीन जैसी आंखों से असुरक्षित महसूस करती हैं. 

बात जो भी हो एक ओर तो सोशल मीडिया में बढ़ चढ़कर हम नारी सशक्तिकरण और नारी उत्थान की बातें करते हैं, दूसरी ओर सार्वजनिक स्थलों पर अपने ही बच्चे को स्तनपान कराने में शर्म भी महसूस करते हैं और असुरक्षित भी.

लेखक

प्रियंका ओम प्रियंका ओम @priyanka.om

लेखक कहानी संग्रह 'वो अजीब लड़की' की ऑथर हैं

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