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Updated: 04 अगस्त, 2016 10:13 PM
अरूणचंद्र राय
अरूणचंद्र राय
  @arun.c.roy.3
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बुलंदशहर गैंगरेप कांड कोई अकेली घटना नहीं है. यह किसी गैंग की कारिस्तानी नहीं है. और इसे न तो कोई मुख्यमंत्री रोक सकता है और ना ही कोई प्रधानमंत्री. यह आइसोलेशन में घटी घटना नहीं है.

रिक्शावाला जब किसी महिला सवारी को बैठाता है तो देखिये उसकी आँखों में लालच का पानी. एक ऑटो ड्राइवर जब किसी युवती या बच्ची को बैठाता है तो देखिये उसकी नजर. वह आधा वक्त मिरर में ही देखता रहता है. बस कंडक्टर, ड्राइवर को देखिये, हवस होती है उनकी आँखों में. न-न. जो रेप नहीं करता या नहीं किया, वह भी रेपिस्ट होता है. स्त्रियां समझती है.

दूर मत जाइये, अपने पास के बाजार में सब्जी वाले लौंडों की बातें सुनिये, फल बेचने वाले लड़को की बाते सुनिये, उनके द्विअर्थी संवाद सुनिये, केला, बाबूगोशा, नाशपाती, संतरा के कई कई मांयने बना रहे होते हैं. वे रीपीटेडली रेप करते हैं, बातों से, नज़रों से. स्त्रियां रोज़ झेलती हैं.

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सारे इंतजाम लकीर पीटने वाले हैं.

स्कूल की बच्चियों से पूछिये, कैसे देखता हैं उन्हें गार्ड, स्कूल बस का कंडक्टर, ड्राइवर, माली और उनका टीचर भी. स्कूल टीचर से पूछिये, कहां-कहां, कैसे-कैसे बचती हैं वे. काम वाली बाइयों से पूछिये. बैंक में काम करने वाली स्मार्ट वुमेन से पूछिये, पुलिस में काम करने वाली एम्पावर्ड वुमेन से पूछिये, सब टारगेट हैं. और उन्हें कोई एलियन टारगेट नहीं कर रहा.

हाल ही में धनबाद आनंदविहार समर स्पेशल ट्रेन से धनबाद से लौट रहा था. ट्रेन थोड़ी खाली सी थी. एक अकेली लड़की भी लौट रही थी. पूरा ट्रेन उसे ऐसे घूर कर देख रहा था मानो चबा जायेंगे, पी जायेंगे. चार चार डिब्बे दूर तक खबर पहुच चुकी थी कि एक लड़की अकेली है. फेलो-पैसेंजर की छोड़िये, पेंट्री-वेंडर तक की नजरें स्कैन कर रही थी उसे. वह ऊपर वाली सीट में लगभग दुबकी ही रही. यह किसी रेप से कम नहीं होता.

अपने आसपास देखिये. रेल में देखिये. मेट्रो में देखिये. हवाईअड्डे पर देखिये. किसी अकेली लड़की को घूरती नज़रों को देखिये. शरीफ लोग स्कैन कर लेते हैं उन्हें. ये सब एक तरह से रेप ही है. स्त्रियां रोज़ गुज़रती हैं इस पीड़ा से.

देखिये कभी अपनी पुलिस को भी. स्त्रियों के प्रति उनका नजरिया कभी अनौपचारिक बातचीत में सुनिये. घर से निकलने वाली हर औरत उनके लिए खराब है. घर के भीतर वाली औरतें चीज.

यह समस्या क़ानून व्यवस्था की नहीं है. यह शिक्षा की भी नहीं है. यह समस्या सोशल कंडीशनिंग की है. जहां पर चारो ओर केवल यही सिखाया जाता है कि स्त्री केवल स्त्री हैं. माल हैं, उपभोग की चीज हैं. इसका न किसी पॉलिटिकल पार्टी से सम्बन्ध है, न किसी राज्य से. सब जगह एक ही सोच है. स्त्री एक चीज हैं. रोज़ ही बुलंदशहर, रोज़ ही निर्भया काण्ड होता है हमारे बीच.

यह कोई ऑर्गनाइज्ड क्राइम नहीं है कि पुलिस पेट्रोलिंग, मुखबिर से, इंटेलिजेंस के सपोर्ट से रोक लेंगे आप. और हां, कभी लोकल संगीत को देख लीजिए, किसी भी भाषा में देख लीजिए, उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक, कितना गन्दा है वो, कितना हिंसक है वो. साथ ही कितनी सहजता से उपलब्ध है पॉर्न. ये सब कॉकटेल बना रहे हैं. समाज को हिंसक बना रहे हैं और बलात्कारी पैदा कर रहे हैं और हम सब शिकार होंगे, इंतजार में रहिये.

(यह टिप्‍पणी सबसे पहले लेखक की फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुई है.)

लेखक

अरूणचंद्र राय अरूणचंद्र राय @arun.c.roy.3

लेखक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं.

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