Bulli Bai-Sulli Deals: मानवीय आधार पर अपराधी को बेल... अपराध कैसा?
चुनाव में इस्लाम धर्म को मानने वाली स्त्रियां देश की बेटियां और राजनीतिज्ञों की बहनें थी. किन्तु आज इन बहनों के खिलाफ इस घनौने अपराध को करने वाले को बेल मिल गयी है जिन बहनो के वोट बैंक पर भरोसा कर राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंकती है उन्ही के खिलाफ इस अपराध पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं ,कोई धरना नहीं कोई रोष नहीं.
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अरे... कुछ नहीं बस कुछ स्त्रियों की तस्वीर एक एप में डाल कर बोली लगा दी. डिजिटल इंडिया में डिजिटल फ्लेश मार्किट. ज़हीन है देश का भविष्य! पुरुषों के दिमाग बिचारे स्ट्रेस्ड है और कुछ कुछ कुंठित भी. हो जाता है ये सब, कभी कभी मज़े के लिए या कभी यूं ही टाइम पास! फिर खास धर्म की स्त्रियों के खिलाफ करते हैं तो यूं सी रिलीजन ब्लैंकेट कवर्स देम. और फिर स्त्री का क्या है. बच्चे पैदा करने का ज़रिया मात्र. कोई भी धर्म हो उसके नियम कानून में स्त्री अबसे नीचे दबे हुए तबके की तोह यही. सो मांस के लोथड़े का क्या ही मानवीय आधार? इन शार्ट - क्राइम अगेंस्ट वीमेन पर भारत के कानून का एटीट्यूड - की फर्क पैंदा है ?
मानवीय आधार पर सुल्ली डील के अपराधियों को बेल कहीं न कहीं महिलाओं के मुंह पर तमाचा है
बुल्ली डील पर बेल
बुल्ली डील जैसे घिनोने एप को बनाने वाले 25 वर्षीय ओमकारेश्वर ठाकुर और 21 वर्षीय नीरज बिश्नोई को दिल्ली कोर्ट ने बेल दे दी. कोर्ट ने मानसिक दिवालिये और घिनौनी सोच वाले अपराधियों को मानवीय आधार पर यह कह कर बेल दी है की, 'ये उनका पहला अपराध है. वो देश के बाहर नहीं जा सकते और इन्वेस्टिगेशन अफसर को अपना अता पता देना होगा' सेक्सुअल प्रवृति के अपराधी जो आगे चल कर बलात्कारी या मोलेस्टर होने का पूरा माद्दा रखते है ऐसे आवारा घटिया आदमियों के लिए कानून चौराहे पर दुअन्नी चवन्नी के भाव यही तमाशा दिखाता है.'
समाज में हो रहे तमाम अपराधों की फेहरिस्त में स्त्री के खिलाफ होने वाले अपराध को नापने के मापदंड में होती लापरवाही ये साबित करते हैं कि स्त्री की न कोई जाति है न धर्म.हम अपने देश की तरक्की का जितना भी ढिंढोरा पीट ले जब जब बात स्त्री पुरुष की आयेगी ,स्त्री का पलड़ा हल्का ही पड़ेगा. स्त्री चाहे उच्च वर्ग की हो या निम्न वर्ग की बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक समुदाय की उसे भोग की वस्तु समझने के आगे न समाज बढ़ा है न कानून.
स्त्री मानव नहीं मात्र भोग
इस एप के बारे में न जानने वालो के लिए मात्र इतनी जानकारी की एक एप जिस पर लड़कियों और स्त्रियों की तस्वीरें है उनकी बोली लगाने के लिए. जी हां, डिजिटल फ्लेश मार्किट- भारतीय पुरुषों की उद्यमता की निशानी. और यहां ध्यान देने लायक ख़ास बात - सभी स्त्रियां मुसलमान थी. अब हिन्दू मुसलमान का बैर और प्रेम दोनों की मात्र कमर्शियल तरिके से इस्तेमाल में आता है. प्रेम दिखा कर सामान बेचो और उनकी स्त्रियों की देह दिखा कर बैर करो. ये बात पलट कर भी सामने आ सकता है की कोई और डील बने जहां हिन्दू धर्म की स्त्रियों की बोली लगे तब ?
चुनाव में मुस्लिम बहने और चुनाव बाद सुल्ली डील
चुनाव में इस्लाम धर्म को मानने वाली स्त्रियां देश की बेटियां और राजनीतिज्ञों की बहने थी. किन्तु आज इन बहनों के खिलाफ इस घनौने अपराध को करने वाले को बेल मिल गयी है और अब साठ सेकंड की न्यूज़ बाइट शायद देर रात तक आ जाए जिसमे यकीनन 'मामला कोर्ट में है है और अपराधी को छोड़ा नहीं जायेगा,' यही रटे रटाये जुमले बयान बन कर आएंगे. जिन बहनो के वोट बैंक पर भरोसा कर राजनितिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंकती है उन्ही के खिलाफ इस अपराध पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं, कोई धरना नहीं कोई रोष नहीं.
किसी भी युद्ध में लड़ते पुरुष है किन्तु हथियार स्त्रियां बनती है जिनसे उन्ही को घायल किया जाता हैं. हर धर्म के नाम पर सत्ता पुरुष के हाथों में रही है किन्तु उसके बाजार में बोली स्त्रियों की ही लगी है. अलग अलग तरह से उन्ही को जिबह किया गया. बुल्ली डील केस, किस करवट बैठेगा ये वक़्त बताएगा. लाखों लाख केस की सुनवाई में इस केस को तारीख महीनो बाद की मिलेगी.
बोली लगाने वाले अपनी आगे की ज़िंदगी जियेंगे, शादी विवाह बाल बच्चे और जिनकी तस्वीरों पर बोलियों लगाई गई वो भी जीवन भर इस टीस को लेकर जियेंगी. हो सकता है जानने वाले, समय समय पर याद दिलाएं की बेचे जाने वाली वस्तुओं में से एक तुम भी हो!
ये और स्त्रियों के खिलाफ होने वाले इस जैसे अपराध जहां एक नारी की अस्मिता को बाज़ार में उछाला जाये और उसे मानव न समझ कर वस्तु या भोग मात्र मान कर निचा दिखाया जाये पितृसत्ता की सड़न को दर्शाने लगे है. दुःख होता है की बदलाव का दम भरने वाले नए भारत के कानून में अभी स्त्री मानवीय आधार के लायक भी नहीं समझी जाती न्याय मिलने की उम्मीद रखना बेमानी है.
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