ये तो पैगंबर का कार्टून वायरल करने की तैयारी है?
पत्रिका चार्ली एब्दो में फिर पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छपेगा. यह भी आश्चर्य नहीं कि इस बार उसकी 3 लाख प्रतियां मिनटों में बिक जाएं. और दूनिया में इस पत्रिका की ऑनलाइन प्रति वायरल हो जाए. फिर मुस्लिम कट्टरपंथी क्या करेंगे?
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चार्ली एब्दो पर हमले के बाद पत्रिका अब पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दोबारा छापने जा रही है. इतना ही नहीं उसमें पैगंबर पर एक व्यंग्य भी होगा. इस फ्रेंच पत्रिका के अगले अंक को 16 भाषाओं में अनुवाद करवाकर उसकी 30 लाख प्रतियां रिलीज करवाई जाएंगी. आतंकियों द्वारा पत्रिका के 12 स्टाफ सदस्यों की हत्या से खफा यूरोपवासियों के आगे वहां का अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय सहमा हुआ है. मुस्लिम जर्मनी में आतंक के विरुद्ध रैली भी निकाल रहे हैं. लेकिन पैगंबर की आकृति बनाने पर जो कंट्रोवर्सी शुरू हुई थी, वह तो वहीं की वहीं रही. इतना ही नहीं अब तो वह आकृति ग्लोबल और वायरल होने जा रही है.
यह यूरोप में कल्चर वॉर के नए दौर में पहुंचने का संकेत है.
यूरोपीय देशों की एक तासीर रही है कि वहां फैसले बहुत तेजी से लिए जाते हैं. उदाहरण-
1. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद आतंक के विरुद्ध शुरू हुई जंग में स्पेन भी अमेरिका का सहयोगी था. 2004 में मेड्रिड के चार मेट्रो स्टेशनों पर आतंकियों ने बम धमाके किए. 200 लोग मारे गए और दो हजार घायल हुए. स्पेन में सरकार पर लोगों का दबाव बढ़ा और अफगानिस्तान और इराक से स्पेन की सारी सेना तुरंत बुला ली गई.
2. कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के विरुद्ध लोगों ने समलैंगिकता के समर्थन में शोर मचाना शुरू किया. सरकार ने तुरंत न सिर्फ समलैंगिक शादियों को मान्यता दी, बल्कि ऐसे लोगों द्वारा बच्चा गोद लेने को भी कानूनी बना दिया. अब स्पेन में तो जन्म प्रमाण-पत्र पर माता-पिता की बजाए प्रोजेनाइटर-ए और प्रोजेनाइटर-बी लिखा होता है. प्रोजेनाइटर का सामान्य मतलब अभिभावक होने से है.
यूरोप में जनता ने दबाव बनाकर बड़ी से बड़ी धार्मिक मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है. चार्ली एब्दो और उस जैसी कुछ पत्रिकाओं ने इस्लामी कट्टरपंथ को चुनौती दी. आतंकियों ने एक कांड करके उस चुनौती का अपनी तरह से जवाब पेश किया. अब बारी यूरोपीय समाज की है. आजाद खयाल यूरोपीय समुदाय को अपनी 'आजादी' से समझौता मंजूर नहीं. इसके लिए वे खून बहाने को भी तैयार रहते हैं. दुनिया में पैगंबर मोहम्मद को मानने वालों में उनके प्रति जो भी आस्था हो, यूरोप इससे बेपरवाह है.
डेनमार्क और नीदरलैंड की कुछ पत्र-पत्रिकाओं में इस्लामी कट्टरपंथ के विरुद्ध टिप्पणियां छपती रही हैं. इनके विरुद्ध वहां छोटे-बड़े प्रदर्शन भी हुए. लेकिन पेरिस में हुए हमले के बाद फ्रांस में इस्लामोफोबिया अपने चरम पर पहुंच रहा है. लोगों के मन में क्या है, इसका अंदाज पत्रकार एरिक जेमोर की किताब ली सुसाइड फ्रेंकोई (फ्रेंच सुसाइड) की बिक्री के आंकड़ों से लगाया जा सकता है. फ्रांस में दूसरे देशों से आकर बसने वाले मुसलमानों की बढ़ती आबादी के परिणामों पर लिखी गई यह किताब 2014 की बेस्ट सेलर रही है. इन दिनों फ्रांस के कई मुसलमानों के सीरिया में चल रही लड़ाई में शामिल होने और वहां से फ्रांस लौटने की खबरें भी चर्चा में हैं.
ऐसे में चार्ली एब्दो पर हमला लोगों की भीतर की आग को सुलगाने का सबब बन सकता है. फ्रांस सरकार ने पहली बार हजारों की तादाद में अपने सैनिकों को देश के भीतर तैनात किया है. बताया गया है कि यह तैनाती देश के संवेदनशील स्थानों और यहूदी स्कूलों की सुरक्षा में की गई है. लेकिन इसकी एक वजह यह भी है कि देश में संभावित एक बड़ी हिंसा को रोका जा सके. आर्थिक बदहाली और बेरोजगारी से जूझ रहे फ्रांस में अभी किसी ने नए सिरदर्द की गुंजाइश नहीं है. लेकिन यह तो हुआ अस्थाई युद्धविराम.
फ्रेंच पहचान और साढ़े चार करोड़ प्रवासी मुस्लिम आबादी के बीच संघर्ष का 'अंडर-करंट' बहता रहेगा. चार्ली एब्दो में फिर पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छपेगा. यह भी आश्चर्य नहीं कि इस बार उसकी 3 लाख प्रतियां मिनटों में बिक जाएं. और दूनिया में इस पत्रिका की ऑनलाइन प्रति वायरल हो जाए. फिर मुस्लिम कट्टरपंथी क्या करेंगे?
जंग तो होनी ही है...
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