एक क्या अभी तो मुंबई जैसी सैंकड़ों दुर्घटनाएं बाकी हैं...
मुंबई जैसी घटना किसी भी स्टेशन पर हो सकती है. ये मैं नहीं कह रही बल्कि कह रही है CAG की रिपोर्ट. ये रिपोर्ट भी आज की नहीं है बल्कि पिछले 8 सालों से लागातार इस रिपोर्ट पर परत दर परत धूल की तरह आकंड़े जुड़ते जा रहे हैं.
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(UPDATE: मुंबई में 3 जुलाई 2018 को एक और लोकल स्टेशन का ब्रिज बारिश की भेंट चढ़ गया. अंधेरी जो मुंबई के सबसे ज्यादा व्यस्त स्टेशन में से है उसका गोखले ब्रिज (अंधेरी ईस्ट और वेस्ट को जोड़ने वाला) का एक हिस्सा गिर गया है. ये ब्रिज हर रोज़ हज़ारों आने-जाने वालों का सहारा बनता था. इसमें 6 लोग घायल हो गए हैं.)
मुंबई की एल्फिंस्टन रोड स्टेशन वाली घटना के बाद अगर लग रहा है कि रेल प्रशासन की नींद में कुछ खलल पड़ा होगा तो शायद ये सोचना आपकी गलती है. रेल दुर्घटनाएं जो भारत में आम हैं और मरने वालों की संख्या सिर्फ एक नंबर कही जाती है वो और बढ़ भी जाए तो भी शायद किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कारण? बुलेट ट्रेन लाना ज्यादा जरूरी है न.
मुंबई जैसी घटना किसी भी स्टेशन पर हो सकती है. ये मैं नहीं कह रही बल्कि कह रही है CAG की रिपोर्ट. ये रिपोर्ट भी आज की नहीं है बल्कि पिछले 8 सालों से लागातार इस रिपोर्ट पर परत दर परत धूल की तरह आकंड़े जुड़ते जा रहे हैं.
2013 में भी ये बात सामने आई थी जब इसी तरह का एक हादसा अलाहबाद स्टेशन पर हुआ था और कुंभ मेले के दौरान स्टेशन पर 42 लोगों की जान चली गई थी.
क्या कहती है कैग रिपोर्ट?
2008 में संसद में पेश की गई CAG रिपोर्ट में ये लिखा हुआ था कि रेलवे इस तर की घटनाओं से लड़ने में सक्षम नहीं है. अगर किसी स्टेशन पर भीड़ ज्यादा हो जाती है तो वहां इंफ्रास्ट्रक्चर पूरा नहीं है.
2016 में फिर ऐसी ही रिपोर्ट सामने आई. सरकार बदल चुकी थी और CAG ने 279 ऐसे भीड़ वाले स्टेशन (जिसमें मुबंई के कई स्टेशन शामिल हैं) का जिक्र किया था जहां भगदड़ मच सकती है. इसमें 17 जोनल रेलवे स्टेशन और 68 डिविजन रेलवे स्टेशन शामिल थे.
- सिर्फ 5 जोन ऐसे थे जहां भीड़ से निपटने के साधन थे.
- नैशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथौरिटी (NDMA) ने कई नियम बनाए, लेकिन स्टेशन पर इसका उपयोग नहीं हुआ.
- कई स्टेशन मास्टर को तो NDMA की गाइडलाइन के बारे में मालूम ही नहीं था.
इस रिपोर्ट में ऐसी कई बातें लिखी हैं जिनको जानकर शायद आप चौंक जाएंगे. यानि अगर भीड़ का दबाव बढ़ा तो देश के कई स्टेशन मुंबई और अलाहबाद जैसी घटना के शिकार हो सकते हैं. 2014 में केंद्र सरकार की तरफ से स्टेशन पर भीड़ के नियंत्रण के लिए एक रिपोर्ट भेजी गई थी जिसमें लिखा था कि रेलवे को सक्त जरूरत है इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक करने की. पर हुआ क्या...
कितनी बार बताया गया सरकार को...
सिर्फ एलफिंस्टन और परेल को जोड़ने वाला ब्रिज ही नहीं बल्कि मुंबई में कई सारे ऐसे ब्रिज हैं जो भीड़ का मुकबाला कर पाने में सक्षम नहीं हैं. मैं भी मुबंई में काफी समय रही हूं. कई बार तो दादर स्टेशन पर किसी ब्रिज में ऐसी स्थिती बन जाती है जैसी एल्फिंस्टन के समय बनी.
ये सारी ट्वीट्स हादसे के पहले की हैं जहां आम नागरिकों ने एल्फिंस्टन रोड स्टेशन के बारे में पहले से चेतावनी दे दी थी. मुंबई के स्टेशन का नाम बदलने के लिए जिस मुश्तैदी से काम हुआ था क्या उसी तरह से ब्रिज की सुरक्षा के लिए नहीं हो सकता था?
@sureshpprabhu serious risk of stampede and loss of lives at parel station overbrige leading to exit towards elphinstone
— Bandish Satra (@BandishSatra) February 2, 2017
No action till date. Same situation since years. Can railway enlarge or not construct a new overbridge from Parel station to Elphinstone
— Bandish Satra (@BandishSatra) August 30, 2017
I spend at least 10 mins of my day in a queue at #Parel to get up the stairs to exit. Getting to work is such a struggle. #mumbailocal pic.twitter.com/ep3sk59zau
— Aparajita (@aparajita_k) September 28, 2017
rathr thn changing name. Wish u focused on givg broader congest free rd- #CurreyRd #Elphinstone. V wil appreciate it more #MumbaiTraffic https://t.co/PasTM47yim
— Rohan E (@Ekbote_R) March 22, 2017
Pre-rush hour Parel station. The only staircase which people use to exit and enter the station. A major accident is waiting to happen. pic.twitter.com/FWMrTboh4a
— MANJUL (@MANJULtoons) February 1, 2017
With this daily chaos at #Elphinstone bridge. Has ever #BMC thought to expand or come up with some alternative? #MumbaiTraffic
— Rohan E (@Ekbote_R) January 18, 2017
During rush hour, this is what Parel foot over bridge is like. The stampede at #elphinstone comes as no surprise pic.twitter.com/Yr71Legufh
— Santosh Nair (@sant0nair) September 29, 2017
मुंबई में भीड़ की हालत ऐसी ही है. मैं दो ऐसे किस्से याद कर सकती हूं जब मुंबई में भीड़ के कारण मुझे लगभग 20-30 मिनट तक स्टेशन पर ही रुकना पड़ा हो. मेरे लिए लेट होना ज्यादा बेहतर है, लेकिन भीड़ का हिस्सा बनना नहीं. अगर मुंबई को छोड़ भी दें तो भी भोपाल जैसे छोटे शहर में भी ऐसी स्थिती बनी है. कुछ साल पहले की बात है. राखी के बाद मुझे और मेरी दोस्त को घर वापस लौटना था. भोपाल में दो बड़े स्टेशन हैं मेन स्टेशन (भोपाल) और हबीबगंज. भोपाल स्टेशन थोड़ा गंदा रहता है और यहां भीड़ भी ज्यादा होती है. राखी के कारण वैसे ही भीड़ थी और उसपर बारिश होने लगी. लोग जैसे-तैसे खड़े हुए थे कि तभी पता चला कि ट्रेन दूसरे प्लेटफॉर्म पर आएगी.
बस लोग इस तरह से भागे जैसे ट्रेन छूटने वाली हो. भोपाल का ब्रिज एल्फिंस्टन के मुकाबले काफी बड़ा है और लोगों की इतनी भीड़ भी नहीं रहती है वहां. पर फिर भी ऐसे हालात बन गए थे जैसे अभी भगदड़ मच जाएगी. उस दिन कुछ हुआ तो नहीं, लेकिन इस तरह भीड़ में फंसकर लग रहा था जैसे हालात जरा भी बिगड़ते तो बड़ा हादसा हो सकता था.
जब भोपाल जैसे शहर में जहां न तो इतनी भीड़ जाती है न ही भगदड़ की कोई गुंजाइश है ऐसी स्थिती बन सकती है तो जरा बाकी स्टेशन के बारे में सोचिए. खतरे की घंटी तो बज ही चुकी है...
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