एक महिला को 'थूक चाटने' की सजा देने वाली पंचायत का क्या हश्र होना चाहिए?
महाराष्ट्र के अकोला जिले में एक महिला ने तलाक के बाद दूसरी शादी कर ली. उसके इस फैसले से नाराज उसके समुदाय की जाति पंचायत ने उसे ऐसी सजा सुनाई, जिसे सुनकर लगेगा ही नहीं कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. हमारा समाज समय के साथ कहां जा रहा है, इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
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हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. चांद पर आशियाना बनाने की योजना बना रहे हैं. मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने की सोच रहे हैं. अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने के लिए गगनयान, मंगलयान और चंद्रयान भेज रहे हैं. लेकिन हमारा समाज कैसा है, किस दिशा में जा रहा है, इसके बारे में सोचने के लिए हमारे पास वक्त नहीं है. हमारे समय में समाज में बहुत सारी चीजों की गति बढ़ गई है. कई की तो इतनी तेज हो गई है कि उनसे कदम मिलाना कठिन होता है. हिंसा, हत्या, नफरत, अविश्वास, झूठ और प्रपंच, इन सबकी गति बहुत तेज हो गई है. वे हमारे आस-पास तेजी से फैल रहे हैं. लेकिन हम शुतुरमुर्ग की तरह सिर झुकाए, मुंह छिपाए बैठे हुए हैं.
हमारी आंखे खुली हैं, लेकिन हम गहरी नींद में हैं. आसपास समाज में क्या हो रहा है, हमें नहीं पता. क्या होना चाहिए, इसकी हमें जानकारी नहीं है. हमारी तंद्रा तब भंग होती है, जब कोई हमारा खुद का नुकसान कर जाता है. नाम बड़े और दर्शन छोटे, हमारे देश का भी कुछ ऐसा ही हाल है. 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:' यानि जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, जिस देश का आदर्श ऐसा हो, वहां महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया आज भी दोयम दर्जे का है. यकीन नहीं होता, तो महाराष्ट्र के अकोला जिले में हुई एक महिला के साथ हुई घटना को देख लीजिए. यहां पंचायत का उसके प्रति घिनौना सलूक देख लीजिए.
एक महिला को दूसरी शादी करने पर घिनौनी सजा देने वाली पंचायत को कठोर सजा मिलनी चाहिए.
अकोला जिले के वडगांव की रहने वाली एक 35 वर्षीय महिला ने अपने पहले पति से तलाक लेने के करीब 5 साल बाद दूसरी शादी कर ली. ये बात उसके समुदाय की 'जाति पंचायत' को नागवार गुजरी. इसके बाद गांव में पंचायत बुलाई गई. महिला को दोषी ठहराते हुए उसे थूक चाटने का आदेश दिया गया. इतना ही नहीं उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. फैसले के वक्त पीड़ित महिला गांव में मौजूद नहीं थी, तो उसकी बहन और रिश्तेदारों को बुलाकर पंचायत के फैसले से अवगत कराया गया. पीड़िता को जब ये बात पता चली तो उसने तुरंत थाने में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस को पंचायत के फैसले के बारे में अवगत कराया.
जलगांव जिले के पुलिस अधिक्षक प्रवीण मुंडे के मुताबिक, पीड़ित महिला की शिकायत के आधार पर महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार से संरक्षण अधिनियम, 2016 की धारा पांच और छह के तहत जाति पंचायत के 10 सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई. इस मामले की जांच अकोला के पिंजर पुलिस थाने को सौंप दी गई, जहां यह घटना 9 अप्रैल को हुई थी. पीड़िता 'नाथ जोगी' समुदाय से ताल्लुक रखती है. उसके समुदाय की जाति पंचायत उसकी दूसरी शादी स्वीकार नहीं करती है. महिला की पहली शादी साल 2011 में हुई थी. साल 2015 में पहले पति से तलाक के बाद साल 2019 में दूसरी शादी की, जबकि पंचायत ने अब जाकर संज्ञान में लिया.
'नाथ जोगी' समुदाय की इस 'जाति पंचायत' की सजा के मुताबिक, पंचायत के सदस्य केले के एक पत्ते पर थूकते और पीड़िता को सजा के तौर पर उसे चाटना पड़ता. इसके अलावा पंचायत को एक लाख रुपये बतौर हर्जाना भी देना पड़ता. इन शर्तों को पूरा करने के बाद ही पीड़िता समुदाय में वापस लौट सकती है. हालांकि, पीड़ित महिला ने पंचायत के तुगलकी फरमानों को मानने की बजाए कानून का सहारा लेना उचित समझा. उसकी किस्मत अच्छी थी कि पुलिस ने मामले को संज्ञान में लेकर तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी. वरना तमाम शिकायत होने के बाद भी पंचायत के फरमानों के खिलाफ लोकल पुलिस किसी भी तरह की कार्यवाही करने से बचती है.
सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद फैसले
हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाति या खाप पंचायतों के तुगलकी फरमान तो अक्सर देखे जाते हैं, लेकिन महाराष्ट्र जैसे राज्य में ऐसी घटनाएं हैरान कर देती हैं. वैसे तो प्रेमी जोड़ों की हत्या कर देना, उन्हें समाज से बहिष्कृत कर देना और अजीबोगरीब सजाएं सुनाना, इन पंचायतों के लिए बहुत आम बात है. इनके तुगलकी फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट न सिर्फ रोक लगा चुका है, बल्कि एक विस्तृत गाइडलाइन भी बनाकर दे रखी है. लेकिन उसका क्या फायदा जब पुलिस ही सजग नहीं है. ऐसे ज्यादातर मामले या तो सामने नहीं आ पाते या फिर स्थानीय स्तर पर ही दबा दिए जाते हैं. इसमें पुलिस की मिलीभगत भी किसी से छुपी नहीं है.
अपराध के श्रेणी में तुगलकी फरमान
आदिवासी या जनजातीय समुदाय में मौजूद अंधविश्वास को उनकी सामाजिक विवशता, पिछड़ापन, एकाकीपन को माना जा सकता है, लेकिन उस समाज में ऐसी कौन सी वजहें हैं जो न सिर्फ शिक्षित है बल्कि समाज की मुख्यधारा से भी जुड़ी हुई हैं. चप्पलों से पीटने, थूक चटवाने, सिर मुंड़ाकर घुमाने, कोड़े लगवाने जैसे पंचायतों के फरमान न सिर्फ समाज के सामने एक बड़ी चुनौती हैं बल्कि विकास और सभ्य होने के तमाम दावों पर सवालिया निशान भी लगाते हैं. ऐसी किसी भी संस्था को सजा सुनाने और उस पर अमल करने का अधिकार नहीं है जो संविधान सम्मत न हो. यही नहीं, ऐसी स्वयंभू संस्थाएं इस तरह के काम करके खुद ही अपराध के दायरे में आ जाती हैं.
पंचायत के निशाने पर महिलाएं
जाति हो या खाफ पंचायत, अक्सर महिलाएं इनके लिए दोषी होती है. यही वजह है कि दंड हर बार महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है, चाहे गलती पुरुष की ही क्यों न हो. उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक महिला के पहले पति ने उससे उसका बेटा छीन लिया. यह मामला पंचायत में पहुंचा, तो पंचों ने समझौते के नाम पर महिला को उसके दोनों शौहर के साथ बारी-बारी 15-15 दिन रहने का फरमान सुना दिया. इतना ही नहीं पंचायतों का लाचार महिलाओं को डायन करार देकर सार्वजनिक दंड दिए जाने की परंपरा या फिर खौफनाक सजाएं देना मानवता और सरकार, दोनों के माथे पर कलंक है.
हर बार महिलाओं को ही सजा
ऐसी जाति पंचायतों में पुरुष ही पंच होते हैं. उनके निशाने पर अक्सर महिलाएं रहती हैं. उनके हिसाब से महिलाओं और लड़कियों को काबू में करके ही समाज को संयमित रखा जा सकता है. पुरुष तो दूध के धुले होते हैं. इनको जब भी मौका मिला, महिलाओं के अधिकार और आजादी पर जमकर प्रहार किया है. लड़कियों के जींस-टॉप पहनने, मोबाइल रखने पर पाबंदी से लेकर महिलाओं के बाजार न जाने देने तक, हर बार पंचायत ने तुगलकी फरमान जारी किया है. यूपी की 47 गांवों की खाप पंचायत का कहना था कि लड़कियों को तंग कपड़े नहीं पहनने चाहिए. वो न तो जींस पहने, न ही मेकअप करें.
फैसले के पीछे देते हैं अजीब तर्क
साल 2010 में ऐसी ही एक जाति पंचायत ने आदेश दिया कि कुंवारी लड़कियां व्हाट्सएप, फेसबुक, इंटरनेट से दूर रहें. उनका कहना था कि 18 साल के बाद ही लड़के या लड़की को मोबाइल दिया जाना चाहिए. वो फेसबुक देखते हैं, व्हाट्सएप देखते हैं, गंदी फिल्में देखते हैं और इससे उनका चरित्र पतन होता है. एक पंचायत तो इससे भी आगे निकली उसने फरमान सुनाया कि 40 साल से कम उम्र की महिलाएं अकेली बाजार न जाएं. उनका कहना था कि जवान औरतें जब अकेली बाजार जाती हैं तो उनके साथ छेड़छाड़ होती है, इसलिए जरूरी है कि वो अपने घर के पुरुष के साथ ही बाजार जाएं.
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