टीवी पर दर्शकों के लिए आएंगे अब 'अच्छे' दिन
सेंसर बोर्ड में पहलाज निहालनी की एंट्री के बाद 'ए' सर्टिफिकेट वाली फिल्मों के टीवी पर प्रसारण पर रोक लगा दी गई. लेकिन नौ-दस महीनों में निहलानी का स्टैंड बदलने लगा है. जाहिर तौर पर बाजार यहां भी हावी है.
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टीवी पर एडल्ट सर्टिफिकेट वाली फिल्मों को दिखाया जाना चाहिए या नहीं. अगर दिखाया जाए तो क्या इसके लिए कोई विशेष टाइम स्लॉट हो. और अगर न दिखाया जाए तो क्यों. इसे लेकर फिल्म निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच काफी लंबे समय से खींचतान चल रही है.
यह सही है कि आज के दौर में और खासकर मध्यमवर्ग के लिए टीवी मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है. इसलिए बहस जरूरी है कि इस माध्यम से कैसा कंटेट दर्शकों के सामने रखा जाए. नियमों के अनुसार सेटेलाइट टीवी चैनलों पर फिल्म के प्रसारण के लिए जरूरी है कि उसके पास U/A सर्टिफिकेट हो जबकि दूरदर्शन पर फिल्मों के प्रसारण के लिए U सर्टिफिकेट का होना जरूरी है. टीवी पर 'ए' सर्टिफिकेट वाली फिल्मों के प्रसारण पर जनवरी से रोक है. आप 'ए' का मतलब केवल एडल्ट से न लगाएं. एक्शन या ज्यादा हिंसा वाले दृश्यों या डॉयलॉग के कारण भी कई बार किसी फिल्म को 'ए' सर्टिफिकेट दिया जाता है.
लेकिन अब सेंसर बोर्ड के चेयरपर्सन पहलाज निहलानी इस रोक को हटाने की दिशा में हैं. बोर्ड ने फैसला लिया है कि अब से निर्माता खुद फिल्म में कांट-छांट करवाकर नए सर्टिफिकेट (टीवी के लिए) के लिए आवेदन कर सकेंगे. करीब दो-तीन महीने पहले ही 'ग्रैंड मस्ती' फिल्म के टीवी पर प्रसारण को लेकर विवाद मचा था. आखिरी वक्त में दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म के प्रसारण पर रोक लगा दी. इसके बाद फिल्म निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच टीवी पर 'ए' सर्टिफिकेट वाली फिल्मों को दिखाने की बहस और तेज हुई.
यह चलन पहले भी था. सेंसर बोर्ड में निहालनी की एंट्री के बाद इस पर रोक लगा दी गई. लेकिन नौ-दस महीनों में निहलानी का स्टैंड बदलने लगा है. जाहिर तौर पर बाजार यहां भी हावी है. निहलानी अपने स्टैंड में बदलाव की भले ही दूसरी दलीलें गिना रहे हों लेकिन सच्चाई यह है कि उन पर ब्रॉडकास्टर्स और फिल्म निर्माताओं का दबाव भी रहा होगा. चलिए... देर से ही सही लेकिन निहलानी कुछ नए विमर्श और सुझाव के साथ आगे आए हैं. इसका स्वागत होना चाहिए.
बाकी, हम क्या पढ़ेंगे, क्या देखेंगे... क्या खाएंगे और इसका फैसला किसे करना चाहिए. यह लंबी और कभी खत्म न होने वाली बहस है. हर महीने दो महीने में कोई न कोई संदर्भ आ ही जाता है और पूरे तानेबाने पर नए सिरे से कोई नई बहस शुरू हो जाती है.
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