अजीब है, शिकायत के लिए एप है लेकिन मोबाइल उपयोग नहीं कर सकते !
सेना के अधिकारियों के खिलाफ मोबाइल को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की गलती की सजा जवानों को कुछ यूं मिली कि उनके मोबाइल के इस्तेमाल पर ही बैन लगा दिया गया, दूसरी तरफ जवानों के लिए मोबाइल एप बनाने का मरहम रखना किसी छलावे से कम नहीं है.
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स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया का जो बेहतरीन इस्तेमाल बीएसएफ के जवानों ने किया, उसे सरकार और सिक्योरिटी फोर्स पर सर्जिकल स्ट्राइक कहना गलत नहीं होगा. मोबाइल एक शक्तिशाली हथियार के रूप में उभरा जिसे जवानों ने सेना के अधिकारियों के खिलाफ ही इस्तेमाल किया. पूरे महकमे में हड़कंप मचाने वाले वीडियो ऐसे वायरल हुए कि जांच हुईं, नीतियां बदलीं, नए आदेशों दिए जाने लग गए. एक तरफ सरकार हरकत में आई तो अपने खफा हो गए.
केंद्र ने सेंट्रल आर्म्ड पैरामिलिट्री फोर्स (CAPF) के जवानों की शिकायतों के लिए एक मोबाइल ऐप तैयार करने की योजना बनाई. जिससे जवान अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें. लेकिन जवानों के इन शिकायती वीडियोज़ से खफा बीएसएफ ने जवानों के लिए मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर बैन ही लगा दिया. यानि कि एक हाथ से दिया तो दूसरी तरफ से ले लिया.
तेज बहादुर यादव के वीडियो के बाद कई वीडियोज़ सामने आए |
बीएसएफ के इस आदेश का मतलब ये हुआ कि जवान अपने मोबाइल का इस्तेमाल केवल ड्यूटी खत्म होने के बाद ही कर सकेंगे. जिससे इस नए बन रहे एप की सार्थकता ही खत्म हो जाती है.
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जिस तरह तेज बहादुर यादव ने ड्यूटी के दौरान मिलने वाले घटिया खाने का वीडियो बनाया, सीआरपीएफ जवान मीतू सिंह राठौर ने ड्यूटी के दौरान अफसरों के जूते पॉलिश करने और कुत्तों को खाना खिलाने का वीडियो बनाया, इस तरह के सारे काम जो ड्यूटी के वक्त करवाए जाते हैं, ऐसी किसी भी शिकायत का विडियो अब कोई भी जवान नहीं बना पाएगा, क्योंकि आदेशानुसार ड्यूटी के दौरान उसका मोबाइल उसके पास नहीं होगा. वाह, सारे फसाद की जड़ मोबाइल ही तो था, तो इस जड़ को ही अलग कर दिया. अब न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.
तेज बहादुर यादव के वीडियो ने बाकी जवानों में जोश भर दिया. जो सालों से अंदर दबी थी इसे बाहर निकालने का रास्ता जो मिल गया था. लेकिन बीएसएफ भी जानता था कि इससे प्रेरित होकर बाकी जवान अब यही करेंगे, बीएसएफ की और फजीहत न हो इसलिए जवानों के लिए मोबाइल पर बैन लगाना बहुत ही स्वाभाविक सा निर्णय था.
रही बात एप की तो, जो एप इन जवानों के लिए बनाया जा रहा है उसके बारे में कहा जा रहा है कि उसमें गोपनियता का ध्यान रखा जाएगा, और शिकायतें सीधे संबंधित कमांडर तक पहुंचेंगी. सरकार चाहती है कि जवान अपने दुख दर्द सोशल मीडिया पर बांटने के बजाए इस एप का इस्तेमाल करें तो बेहतर होगा. लिहाजा ये एप भी मात्र सरकारी 'शिकायत पेटी' जितना ही काम देगा.
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एक तरफ एप बनाना और दूसरी तरफ मोबाइल पर बैन, ये दोनों ही फैसले न तो आपस में मेल खाते हैं और न ही फलदायी हैं. लिहाजा इसे दोगला फैसला ही कहा जाएगा, जिसमें फायदे में तो रक्षा मंत्रालय और आर्मी हैं, नुक्सान में कोई रहा तो वो अपने देश के जवान.
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