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Updated: 17 अप्रिल, 2016 11:30 AM
करुणेश कैथल
करुणेश कैथल
  @karuneshkaithal
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एक बहुत पुराना व्यंग है- एक बार एक मांसाहारी व्यक्ति ऐसे ईसाई सामाज के बीच रहने लगा जहां सभ्य और शुद्ध शाकाहारी लोग रहा करते थे. वह व्यक्ति हर रोज मांस पकाया करता था जिसकी गंध से सारे पड़ोसी परेशान होकर पादरी के पास गए और उनसे विनती की, कि या तो वह व्यक्ति यहां से कहीं और चला जाए या अपना धर्म बदल कर ईसाई बन जाए और मांसाहार छोड़ दे.

उस व्यक्ति को जब बुला कर पूछा गया तो वह धर्म बदलने को तैयार हो गया. तत्काल उसके उपर जल छिड़क कर बोल दिया गया कि आज से तुम ईसाई धर्म के नियम व तौर-तरीकों को अपनाओगे, मांसाहार नहीं करोगे आदि-आदि. समाज के सभी लोगों ने चैन की सांस ली. लेकिन अगले ही दिन सुबह फिर से उसके घर से मांस की गंध आ रही थी. जब सबने उस व्यक्ति के घर में खिड़की से झांका तो दंग रह गया. वह आदमी हाथ में जल लिए सारे मांसाहारी पकवानों पर छिड़क-छिड़क कर बोल रहा था कि तुम आज से आलू हो, बैगन हो, तुम आज से मांस नहीं हो. जब उससे पूछा गया तो उसने तुरंत जवाब दिया कि जैसे जल छिड़कवा लेने से मेरा धर्म परिवर्तन हो गया है वैसे ही मैं भी इनका धर्म परिवर्तन कर रहा हूं.

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यह व्यंग अपने-आप में ही हमें बहुत कुछ सीख देता है. किसी भी तरह से परेशान होकर अगर आप धर्म परिवर्तन करने की सोच रहे हैं तो आज के दौर में केवल और केवल इसे महज राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने का जरिया भर माना जा सकता है.

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 जो व्यक्ति अपने धर्म का नहीं हुआ, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि नए धर्म में जाने से उसकी सोच बदल जाएगी

धर्म परिवर्तन कर आप अपने लिए बहुत सारी परेशानियां खड़ी कर लेते हैं. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि केवल धर्म परिवर्तन कर लेने भर से आपकी मानसिकता बदल नहीं जाएगी और न ही आपकी सोचने-समझने की क्षमता में कोई वृद्धि होगी.

इसका कारण यह है कि लगभग सभी धर्मों में लोगों को केवल शांति से रहने व गलत काम न करने आदि के ही तौर-तरीकों के बारे में बताया गया है. अगर हम अपने आप को ज्यादा पढ़े-लिखे होने का दिलासा देने के लिए धर्मों को अपने-अपने तरीके से समझने की कोशिश करने लगते हैं तब जाकर धर्मों के असली मक्सद से भटक जाते हैं. इसके बाद वही करते हैं जो कोई भी धर्म नहीं कहता बल्कि हमारा हद से ज्यादा पढ़ा-लिखा मन कहता है.

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सबसे पहले तो आप अपना धर्म बदल कर अपने समाज से अपने आप को अलग कर लेते हैं. दूसरी बात यह कि, जरूरी नहीं है कि आपने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है तो आपके बाकी रिश्तेदार, सगी-संबंधी भी धर्म परिवर्तन कर ही लें. अगर तरीके से देखा जाए तो धर्म परिवर्तन पुराने साथी-संगतियों, रिश्तेदारों आदि से भी एक तरह से अलग करने का तरीका मात्र है.

अब आपने जिस नए धर्म में अपना जीवन गुजर-बसर करने का सोच लिया है उस समाज के लोग भी आपको धीरे-धीरे अपनाएंगे या यूं कहें कि अपनाएंगे या नहीं यह भी सस्पेंस काफी दिनों तक बना रहेगा. यानि कुल मिलाकर कहें तो आप न घर के रह जाते हैं और न ही घाट के.

कुल मिलाकर इस लेख का संदर्भ यही है कि जो व्यक्ति अपने समाज और धर्म का नहीं हुआ, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि नए धर्म में जाने से उसकी सोच व नियत बदल जाएगी. हालांकि हमारा कानून इसकी पूरी इजाजत देता है कि आप जब चाहें, जैसे चाहें अपना धर्म बदलें, नाम बदलें, अपनी मर्जी से अपने हिसाब से अपना जीवन व्यतीत करें. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरत है हमें अपनी सोच को बदलने की. क्योंकि किसी भी धर्म के ग्रंथों को उलट कर नजर मार लें, कोई भी धर्म हमें किसी से बैर रखना, किसी को नुकसान पहुंचाना या किसी भी प्रकार का हिंसा करना नहीं सिखाता है.

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