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Updated: 02 अगस्त, 2018 02:03 PM
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अदालतों में लंबित मामलों का अंबार अरसे से प्रत्येक स्तर पर चिंता का विषय रहा है. नतीजा ये होता है कि जब तक फैसले आते हैं बहुत देर हो चुकी होती है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने देश की तमाम अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे के लिए 15 सुझाव दिये हैं - जिनके जरिये न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों का मकसद हासिल हो सके.

दीपक मिश्रा, लंबित मामले, सुझाव, न्यायालयदेश की ज़िला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 2 करोड़ 60 लाख से अधिक हो गई है.

चीफ जस्टिस के सुझाव

1. तकनीकी याचिकाओं के मामले में सभी अदालतों द्वारा समय सीमा का निर्धारण जरूरी किया जाये.

2. ऐसी व्यवस्था बनायी जाये जो सभी मामलों के दाखिल होने से लेकर सारी अदालती कार्यवाही पूरी होने तक हर बात की निगरानी कर सके. हर केस की गंभीरता और प्राथमिकता के आधार पर उसके लिए अलग कैटेगरी बनाकर उन्हें अलग अलग समूहों में रखा जाये.

3. पुराने मामलों के निस्तारण के लिए उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के लिए एक वार्षिक लक्ष्य तय किया जाये और उनकी दो महीने में या त्रैमासिक समीक्षा की जाये ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके.

4. संस्थाओं और मामलों के निस्तारण के बीच की खाई को पाटने के लिए लगातार नजर रखी जाये ताकि ज्यादा मामले जमा न हों.

5. इसमें कोई शक नहीं है कि जजों की कमी मामलों के लंबित होने का एक प्रमुख कारण है. लेकिन इसी स्थिति में कुछ न्यायलयों का प्रदर्शन बेहतर रहा है. मॉडल के रूप में ऐसी अदालतों का अपनाया जाए.इससे यह बात रेखांकित होती है कि मौजूदा क्षमता को विकसित करने पर ध्यान देने कि बजाय उसका बेहतर और प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सके.

6. बेशक केस लंबित रहने में जजों की कमी की भूमिका है, लेकिन इन्हीं परिस्थितियों में कुछ अदालतें अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. उनके तौर तरीके अपनाने की जरूरत है. ऑटोमेशन सिस्टम, ई-कोर्ट और अदालती रिकॉर्ड को डिजिटल करना बेहद जरूरी है. अगर संभव हो तो ऐसे इंतजाम किये जायें जो प्रक्रिया को आसान बनायें, वरना 'सभी के लिए न्याय' का मकसद पूरा होना मुश्किल हो जाएगा.

7. विवादित मुद्दों के समाधान के लिए मध्यस्थता, मुकदमेबाजी से पहले बीच-बचाव, वार्ता, लोक अदालत जैसे तरीके अपनाकर मामलों के निस्तारण के वैकल्पिक इंतजाम किये जाने चाहिये.

8. उच्च न्यायालय के स्तर पर बनी समितियां सक्रिय और क्रियाशील रहें ऐसा रुख अपनाना होगा. ऐसी समितियां हर पखवाड़े कम से कम एक मीटिंग जरूर रखें और उनके सर्वे और रिपोर्ट्स को डिजिटल फॉर्मेट में रखा जाना चाहिए.

9. सुनवाई के दौरान केस स्थगन के लिए कड़े दिशानिर्देश तैयार किये जाने चाहिये. साथ ही, सिविल मामलों में, निर्धारित वक्त को लेकर किसी तरह की ढिलाई न बरती जाये.

10. आपराधिक अपील से इतर के मामलों के लिए शनिवार को भी कोर्ट लगाये जा सकें ऐसे इंतजाम होनी चाहिये.

11. निचली अदालतों के कुछ खास कैटेगरी के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने के साथ ही उनके लिए डेडलाइन और समय सीमा सुनिश्चित करने की भी कोशिश होनी चाहिये.

12. केस निस्तारण में बहुपक्षीय दृष्टिकोण और तेज गति की आवश्यकता है. लेटलतीफी और जान बूझकर लटकाने की मानसिकता को छोड़ना ही होगा.

13. बुनियादी बातों, छोटे छोटे विवरणों पर गौर करने के साथ अच्छे प्लान तैयार किये जाने चाहिये, वरना बेंजामिन फ्रैंकलिन का किस्सा तो सुना ही होगा कि कैसे घोड़े की नाल की एक कील के लिए पूरे साम्राज्य का ही खात्मा हो गया.

14. उच्च न्यायालय जजों, वकीलों और शिक्षाविदों को लेकर थिंक टैंक बना सकते हैं जिनकी मदद से लंबित मामलों के निपटारे के लिए नये तरीके खोजे जा सकें और उस हिसाब से पहल की जा सके.

15. हमारी मकसद होना चाहिए - भविष्य निर्माण और समयबद्ध और प्रभावी न्याय के जरिये बदलाव के लिए प्रेरित करना.

देश की ज़िला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 2 करोड़ 60 लाख से अधिक हो गई है और विभिन्न स्तरों पर 5,984 अदालती पद खाली पड़े हैं. देश में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश 61,49,151 मामले लंबित हैं. महाराष्ट्र में 33 लाख से अधिक और पश्चिम बंगाल में 17 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. मुख्य न्यायधीश के सुझाव क्या लंबित मामलों के निपटारे में कितने कारगर होंगे ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना तो तय है कि अगर इनका तुरंत समाधान नहीं निकाला गया तो देश की पूरी न्याय व्यवस्था खुद कठघरे में खड़ी नजर आएगी.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)

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