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Updated: 13 जनवरी, 2022 09:40 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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Coronavirus के नए वैरिएंट Omicron के बीच यह तस्वीर कितनी डरावनी है ना? ऐसा चीन ही कर सकता है. भारत में बाबू-भइया बोलकर हाथ जोड़ा जा रहा है तब भी लोग मान नहीं रहे हैं. लोगों का कहना है कि कोरोना वायरस (Corona virus) सरकार की चाल है. जब हालात बिगड़ने पर अस्पताल में जाते हैं तब कहते हैं कि सरकार ने ध्यान नहीं दिया...वैसे एक नागरिक होने के नाते हम क्या कर रहे हैं, यह अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए.

who ने कह दिया है कि ओमीक्रोम को माइल्ड मत समझिए लेकिन लोग इसे इम्यूनिटी बूस्ट करने वाली बीमारी मान रहे. हर 24 घंटे में कोरोना के केस बढ़ते जा रहे हैं. लोगों को लगता है कि 2 डोज लगा लिया है तो हमारे पास अमृत है. यह समझने की गलती मत कीजिए क्योंकि यह ओमीक्रोन सब पर भारी पड़ रहा है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमीक्रोन ऑर्गन को डैमेज कर सकता है. आलम यह है कि अब लोग अस्पताल में भर्ती होने लगे हैं. लेकिन हमें क्या...हम तो तभी मानेंगे जब ऑक्सीजन के लिए 10 नंबर घुमाने पड़ें. घूम लो बेटा जितना घूमना हैं, काहें कि तुमने कमस खा रही है कि कोरोना को दावत देने में कोई कसर नहीं छोड़ना है. फिर घर आकर सब में प्रसाद और बाट देना.

china strict lockdown, zero covid policy,  strictest lockdown, world corona updatesजिस तरह कोरोना की तीसरी लहर की खबरें सामने आ रही हैं वो डराने वाली हैं

असल में Omicron की वजह से हालात एकबार फिर बिगड़ने लगे हैं. जिसके चलते चीन के 'जीरो कोविड पॉलिसी' के तहत अनयांग सहित कई शहरों में सख्त लॉकडाउन लगाया गया है. इस सख्त लॉकडाऊन की जद में करीब दो करोड़ से अधिक लोग हैं. जो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते. चीन निर्दयी तरीके से अपने लोगों पर कड़े नियम लागू करके कोरोना पर जीत हांसिल करना चाह रहा है.

इन बॉक्स में बड़ी बेरहमी के साथ प्रेगनेंट महिलाओं और बच्चों भी आइसोलेट हैं

'डेली मेल' की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने बड़े पैमाने पर क्वारंटाइन कैंपस का एक नेटवर्क बनाया है. जहां हजारों की संख्या में मेटल बॉक्स बनाए गए हैं. चीन की क्रूरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इन बॉक्स में बड़ी बेरहमी के साथ प्रेगनेंट महिलाओं और बच्चों को भी आइसोलेट किया जा रहा है. चीन के जिन लोगों में जरा सा भी लक्षण दिख रहा है तो उन्हें इन बॉक्स में रखा जा रहा है. एक कॉलोनी में कोरोना की जांच कराने के लिए लोग लाइन में लगे थे. इसके बाद पूरे मोहल्ले के लोगों को इन बॉक्स में कैद कर दिया गया. इन बॉक्स के अंदर खाने-पीने की सीमित चीजें हैं उसी से लोगों को काम चलाना है. इसके अवाला एक लकड़ी का बेड और वॉशरूम की व्यवस्था है. जो लोग उस बॉक्स से बाहर आ रहे हैं वे बुराई कर रहे हैं और सुविधाओं का अभाव बता रहे हैं.

क्या आप खुद को उस बॉक्स में कल्पना कर सकते हैं?

मेटल के छोटे बॉक्सनुमा कमरे में दो हफ्ते तक लोगों को कैद कर रखा जा रहा है. यहां तो सारी सुविधा के बाद भी अगर किसी मेटल के बॉक्स में रहने के लिए बोल दिया जाए तो सोचकर ही घुटन होने लगे. चीन के इस लॉकडाउन के सख्ती को देखते हुए इसे दुनिया में अब तक का सबसे कठोर लॉकडाऊन कहा जा रहा है. क्या आप खुद को उस बॉक्स में कल्पना कर सकते हैं? हमारे लिए तो यह जेस से भी बदतर है. कोरोना ने भले न मरे लेकिन इस बॉक्स में जरूर मर जाएंगे. अब वहां की सरकार ही इतनी सख्त है, हमारे यहां तो लोगों के हाथ जोड़े जा रहे हैं कि प्लीज मास्क लगा लो.

ठंडे मेटल बॉक्स में बहुत कम भोजन

इस क्वारंटाइन कैंपस से निकले कई लोगों ने बताया कि ठंडे मेटल बॉक्स में उनके पास बहुत कम भोजन होता था. उन्हें जबरन अपना घर छोड़ने और क्वारंटाइन सेंटर में रहने के लिए दबाव बनाया गया. कई बसों से भर-भरकर लोग यहां लाए गए. बीबीसी की रिपोर्ट में शख्स ने दावा किया है कि 'यहां कुछ भी नहीं है, बस बुनियादी ज़रूरतें हैं...कोई भी हमारी जांच करने नहीं आया. यह किस तरह का क्वारंटाइन सेंटर है? बुजुर्ग और बच्चों को भी यहां रखा जा रहा है. बाहर निकलने पर पिटाई की जाती है.' सबकी हालत खराब है. इन सेंटरों में ना पूरी तरह खाने की व्यवस्था है ना पानी की.

हमारे यहां बाबू भईया बोलकर हाथ जोड़ा जा रहा है

एक तरफ चीन अपने लोगों पर अत्याचार कर रहा है तो दूसरी तरफ हमारे यहां लोगों से विनती की जा रही है. हमारे देश में तो कितने भी नियम बना लो, कितनी भी मिन्नते कर लो भारत के लोग इतनी आसानी ने कुछ मानेंगे नहीं. कोरोना को लेकर तो वैसे ही देश में 10 अफवाहें हैं. कोई कहता है यह सब फिजूल की बातें हैं ठंड के मौसम में तो सभी को सर्दी-जुकाम, खांसी होती है.

हमारे यहां जब तक कोरोना पीक न पकड़ ले. जब तक फेसबुक पर लोगों के गुजर जाने के बाद श्रद्धांजलि के पोस्ट न शेयर होने लगें, जब तक पूरी तरह लॉकडाउन न लगा दिया जाए, जब तक सड़कों पर सायरन की आवाजें न गूंजने लगें, जब तक अस्पताल में जगह न बचे...तब तक देश के लोग मानेंगे नहीं कि कोरोना कहर बरपा सकता है.

पिछले साल कितने डॉक्टर ने रोते हुए अपनी वीडियो पोस्ट की. हमने अपनों को खो दिया. जलती चिताओं और गंगा में बहती लाशों का वो मार्मिक दृश्य सोचकर ही मन सिहर जाता है. अपनों को बचाने की जदोजहद में भीख मांगते लोग, मुंह से ऑक्सीजन देने की कोशिश करते लोग...भगवान न करें कि ऐसे दृश्य हमें फिर से देखने को मिले.

इंसान भी कितना जल्दी सब कुछ भूल जाता है. जिस तरह कोरोना की तीसरी लहर की खबरें सामने आ रही हैं वो डराने वाली हैं लेकिन हम फिर भी नहीं मान रहे हैं. बाजारों में जिस तरह भीड़ उमड़ रही है. लोग बिना मास्क के सड़कों पर निकल रहे हैं...जिस तरह की लापरवाही देखने को मिल रही है उससे यही लगता है कि जबतक सरकार कठोर कदम नहीं उठाएगी लोग मानेंगी नहीं...लगता है यहां के लोगों को भी इस तरह के किसी कठोर नियम की जरूरत है. जो लोग सिर्फ चलान कटने के जर से नाक के नीचे मास्क लगात हैं उन्हें तो पक्का इस तरह के सख्त लॉकडाउन की जरुरत है...

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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