'दुष्कर्म का अड्डा': इस धब्बे को धोने के लिए चर्च को ही आक्रामक होना होगा
वर्ष 1950 से 2010 के बीच आस्ट्रेलिया में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि वहां के सात फीसदी कैथोलिक पादरी बच्चों के यौन शोषण में लिप्त रहे हैं. अमेरिकी राज्य पेन्सिल्वेनिया की ग्रैंड ज्यूरी के मुताबिक, सात दशकों में पादरियों ने एक हजार से ज्यादा बच्चों का यौन शोषण किया है.
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पिछले दिनों केरल में पादरी द्वारा नन से दुष्कर्म का मामला सामने आया. इसके बाद से ही देश में चर्चों के शोषण-साम्राज्य को लेकर आक्रोश का माहौल है. सोशल मीडिया पर भी आलोचना हो रही है. लेकिन विडंबना है कि तथाकथित सेकुलर और वामपंथी गिरोह के लोग जो कठुआ प्रकरण पर हवा-हवाई ढंग से मंदिरों को बलात्कार का गढ़ कहते नहीं थक रहे थे, केरल के इस चर्च-काण्ड पर मुंह में दही जमाए बैठे हैं. कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो कठुआ पर छाती पीटने वाले बहुधा एंकरों का प्राइम टाइम इस मुद्दे पर बंद पड़ा हैं. किसी कार्टूनिस्ट की कूची भी इस काण्ड पर कोई कार्टून बनाने को राजी नहीं है. चर्च और पादरी को लेकर तो एक शब्द नहीं सुनाई दे रहा. ऐसा लगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
हाल के दिनों में केरल के चर्चों में यौन शोषण के कई मामले सामने आये हैं.
केरल की वामपंथी सरकार की पुलिस आरोपी पादरी के आगे दंडवत है. स्त्री-सुरक्षा सम्बन्धी कानूनों के कड़े होने के बाद से देश में बलात्कार का आरोप लगने पर आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की व्यवस्था अमल में है. लेकिन केरल पुलिस ने पादरी साहब को आगामी 19 तारीख को हाजिर रहने का निर्देश जारी किया है. ध्यान रहे कि ये ‘आदेश’ भी नहीं, निर्देश है जिसमें अनुपालन की कोई अनिवार्यता नहीं होती. यानी पादरी मन करें तो हाजिर हों, वर्ना न हों.
चर्च बने यौन शोषण का अड्डा
देखा जाए तो पाप से मुक्ति दिलाने और ईश्वर के नजदीक लाने के नाम पर चर्चों के शोषण का साम्राज्य सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि दुनिया भर में इसका फैलाव दिखाई देता है. उक्त मामले के सामने आने के बाद इस संबंध में कुछ रिपोर्टें ख़बरों में आई हैं. एक लोकप्रिय दैनिक अखबार में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक, वर्ष 1950 से 2010 के बीच आस्ट्रेलिया में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि वहाँ के सात फीसदी कैथोलिक पादरी बच्चों के यौन शोषण में लिप्त रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के रॉयल कमीशन के पास वर्ष 1980 से 2015 के बीच 1000 कैथोलिक इंस्टीट्यूशनों के खिलाफ 4,500 लोगों ने यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराई थी. पीड़ित बच्चों की औसत आयु दस वर्ष रही है. चर्च की ताकत और प्रभाव का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन मामलों में रिपोर्ट दर्ज कराने में औसतन 33 साल का समय लगा है.
अमेरिकी राज्य पेन्सिल्वेनिया की ग्रैंड ज्यूरी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सात दशकों में पादरियों ने एक हजार से ज्यादा बच्चों का यौन शोषण किया है. रिपोर्ट में तीन सौ पादरियों के नाम शामिल हैं. यह हाल केवल एक अमेरिकी राज्य का है, पूरे अमेरिका व पूरी दुनिया के चर्चों की तस्वीर कितनी भयावह होगी, इसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है। जाहिर है, ईश्वर से मिलवाने की आड़ में चर्च शोषण का अड्डा बने पड़े हैं, लेकिन इनके विरुद्ध कोई आवाज नहीं सुनाई देती.
बहरहाल, केरल प्रकरण में पुलिस को अपनी काहिली छोड़ते हुए तत्काल कार्यवाही करनी चाहिए. पादरी को गिरफ्तार कर पूछताछ होनी चाहिए. लेकिन भारत जैसे देश में जहां सेकुलरिज्म और वामपंथ का कवच इनके आगे है, केरल जैसे वामपंथी राज्य में यह कार्यवाही संभव नहीं लगती. जाहिर है, पीड़िता नन के लिए न्याय की डगर आसान नहीं है.
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