राष्ट्रपत्नी विवाद: स्त्रियों के काम और आधिपत्य को जेंडर के खांचे में कब तक बांधा जाएगा?
अधीर रंजन द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपत्नी कहे जाने के बाद राजनीति के गलियारों में सियासी सरगर्मियां तेज हैं. सवाल ये है कि आखिर कब तक अधीर जैसे लोग स्त्रियों के काम और आधिपत्य को लिंग के खांचे में बांधने के असफल प्रयास करेंगे?
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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए एक प्रदर्शन में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपत्नी कहे जाने ने तूल पकड़ लिया है. मामले के मद्देनजर संसद में खूब हंगामा हुआ. केंद्रीय स्मृति ईरानी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मोर्चा संभालने के बाद लड़ाई कांग्रेस बनाम बीजेपी बन गयी है. भाजपा की मांग है कि इस मामले को कांग्रेस को गंभीरता से लेना चाहिए और स्वयं सोनिया गांधी को माफी मांगनी चाहिए.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर जो बात अधीर रंजन ने कही विवाद तो होना ही था
चूंकि बयान के चलते कांग्रेस पार्टी की भी भद्द पिट चुकी थी और बात सोनिया तक आ गयी थी जल्द ही अधीर रंजन चौधरी को भी अपनी भूल का एहसास हुआ. विवाद पर अपनी सफाई देते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि अचानक उनके मुंह से यह शब्द निकल गया था. उनकी कोई गलत मंशा नहीं थी.
#WATCH | "There is no question of apologising. I had mistakenly said 'Rashtrapatni'...the ruling party in a deliberate design trying to make mountain out of a molehill," says Congress MP Adhir R Chowdhury on his 'Rashtrapatni' remark against President Murmu pic.twitter.com/suZ5aoR59u
— ANI (@ANI) July 28, 2022
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि सत्ताधारी दल तिल का ताड़ बनाने की कोशिश में जुटा है. इसके लिए मुझे फांसी पर लटकाना है तो लटका दो. वहीँ उन्होंने ये भी कहा कि इस मामले में सोनिया गांधी को बेवजह घसीटा जा रहा है.
चूंकि विवाद तेज है लेकिन कुछ चीजों पर बात अवश्य ही होनी चाहिए. विषय बहुत सीधा है जिसपर लेखिका अणुशक्ति सिंह का मत है कि समस्या ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द नहीं है. समस्या इस बात से है कि कभी भी स्त्रियों की एकल सत्ता को स्वीकृत नहीं किया गया, न ही कल्पना की गयी कि स्त्रियां अकेले भी शासक हो सकती हैं. महारानियां/रानियां सदैव महाराजाओं और राजाओं की अर्धांगिनी ही रहीं. कोई रज़िया सुल्तान हुई भी तो अपवाद की तरह.
हिंदी के अनुवादक अपवादों को भविष्य के तौर पर कब से देखने लगे? हिंदी तो है ही पितृसत्ता के गह में डूबी हुई भाषा जहां फ़ीमेल राइटर के लिए ‘लेखिका’ शब्द दिख जाता है जबकि डॉक्टर और लेखक सरीखे कई शब्दों को लिंगभेद से दूर रहना था. शुक्र है इस देश ने मंत्री शब्द को अभी तक लिंग के भार से मुक्त रखा है.
मैं कई बार यह सोच कर मुस्कुरा उठती हूं कि इंदिरा जी को कोई प्रधानमंत्राणी बुलाता तो वे किस दृष्टि से देखतीं… अब भी सीख जाओ हिंदी वालो. स्त्रियों के काम और आधिपत्य को लिंग के खांचे में बांधने से पहले ख़ुद पर चौंको… शुरुआत लेखिका और कवयित्री सरीखे शब्दों को अपने शब्दकोश से हटाकर कर सकते हो. हो सकता है ये बातें पढ़ने में थोड़ी अजीब लगें लेकिन ये एक स्त्री लेखक का आत्मालाप है जो ‘लेखिका’ शब्द से ‘राष्ट्रपत्नी’ तक महिलाओं को दी जा रही इस संज्ञा से खिन्न है.
बहरहाल अब जबकि विवाद हो गया है देखना दिलचस्प रहेगा कि महिलाओं के खिलाफ ये लिंगभेद कब तक होता है? बाकी जनता बताए कि अधीर ने जो कहा है वो इत्तेफाक से हुआ है या फिर ऐसा कुछ हो और वो सुर्ख़ियों में आएं इसके लिए उन्होंने प्लानिंग की थी.
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