‘ओमिक्रॉन सबको मार डालेगा’ इस डर से पत्नी व बच्चों की हत्या, कोविड से बड़ी बीमारी डिप्रेशन है!
ओमिक्रॉन सबको मार डालेगा (Omicron will kill everyone) अब और कोविड नहीं. अब लाशें नहीं गिननी’...कानपुर में डॉक्टर 10 पन्ने का सुसाइड नोट लिखा और बीवी-बच्चों को मार डाला. डिप्रेशन को हल्के में लेने वाले जान जाएं कि यह कोरोना से भी बड़ी बीमारी है.
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ओमिक्रॉन सबको मार डालेगा (Omicron will kill everyone) अब और कोविड नहीं. अब लाशें नहीं गिननी’...कानपुर में डॉक्टर 10 पन्ने का सुसाइड नोट लिखा और बीवी-बच्चों को मार डाला. डिप्रेशन को हल्के में लेने वाले जान जाएं कि यह कोरोना से भी बड़ी बीमारी है.
ओमिक्रॉन सबको मार डालेगा...इस एक लाइन से आज हमें अंदर से हिला दिया है. कानपुर (Kanpur news) का एक पढ़ा-लिखा इंसान जो खुद एक डॉक्टर है, जो प्रोफेसर है, जो बच्चों को पढ़ाता है. कोरोना से उसका डर इस एक लाइन में साफ दिखता है, जिस खौफ के कारण उसने अपने पूरे परिवार की हत्या (Doctor murder wife and children in Kanpur) कर दी.
लोग डिप्रेशन को बहुत हल्के में लेते हैं जिस वजह से डॉक्टर ने अपने परिवार की हत्या कर दी
जबसे कानुपर (kanpur tripple murder case) की यह दुखद खबर सुनी है बस एक ही बात दिमाग में चल रही है कि आखिर डॉक्टर की मानसिक हालत कैसी रही होगी? उनके दिमाग में कितनी उथल-पुथल रही होगी कि उसने अपने ही दो प्यारे बच्चों और अपनी पत्नी की हत्या कर दी. वह पत्नी जिसे वे अपनी दुनियां मानते होंगे, वे बच्चे जो उन्हें जान से ज्यादा प्यारे होंगे, उन्हें जान से मारने का क्यों सोचा?
दरअसल, डॉक्टर सुशील कुमार रामा हॉस्पिटल में जॉब करते हैं. वे कल्यानपुर में पत्नी चंद्रप्रभा (48), बेटा शिखर (18) और बेटी खुशी के साथ रहते थे. अवसाद में रहने वाले सुशील ओमीक्रोन वेरिएंट से डरे हुए थे. उन्होंने परिवार की हत्या करने के बाद अपने भाई सुनील को मैसेज किया था कि पुलिस को बतो दो मैं डिप्रेशन में हूं. इस मैसेज के बाद सुनील जब फ्लैट का दरवाजा तोड़कर अंदर पहुंचे तो वहां की खौफनाक मंजर देखकर उनके होश उड़ गए.
कमरे में एक डायरी मिली है, जिसमें डॉक्टर सुशील ने दिल दहलना देने वाली इस घटना को अंजाम देने से पहले 10 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा है. डायरी में लिखा गया है कि 'अब और कोविड नहीं. यह ओमिक्रॉन अब सबको मार डालेगा. अब और लाशें नहीं गिननी हैं’… अपनी लापरवाही के कारण करियर के उस मुकाम पर फंस गया हूं, जहां से निकलना असंभव है. अब मेरा कोई भविष्य नहीं है. इसलिए मैं अपने होश-ओ-हवास में अपने परिवार को खत्म करके खुद को खत्म कर रहा हूं. इसका जिम्मेदार और कोई नहीं है.'
डॉक्टर सुशील ने आगे लिखा है कि, 'मैं लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हो गया हूं. आगे का भविष्य कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. इसके अलावा मेरे पास कोई और चारा नहीं है. मैं अपने परिवार को कष्ट में नहीं छोड़ सकता. सभी को मुक्त करके जा रहा हूं. सारे कष्टों को एक ही पल में दूर कर रहा हूं. अपने पीछे मैं किसी को कष्ट में नहीं देख सकता. मेरी आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करेगी. आंखों की लाइलाज बीमारी की वजह से मुझे इस तरह का कदम उठाना पड़ रहा है. पढ़ाना मेरा पेशा है. जब मेरी आंखें ही नहीं रहेगी तो मैं क्या करूंगा.'
असल में हमें जितनी खबर दिख रही है, यह इससे कहीं ज्यादा है. सुसाइड नोट की ये बातें हमें अंदर तक झकझोर रही हैं. फिलहाल, डॉक्टर सुशील का कोई पता नहीं चला है. एक डॉक्टर होने के बावजूद क्या वे कोरोना के नए वेरिएंट से वे इतनी दहशत में थे कि अपनी दुनियां की मिटी ली?
सुसाइड नोट की हर लाइन से यह समझ आता है कि वे डिप्रेशन में थे. अब सोचने वाली बात यह है कि वे अचानक से तो डिप्रेशन में पहुंचे नहीं होंगे...उनके आस-पास के लोगों को उनके अवसाद की जानकारी होगी. क्या उनके डिप्रेशन का इलाज चल रहा था? क्या वे तनावमुक्त होने के लिए कोई थेरेपी ले रहे थे? क्या वे मानसिक काउंसलिंग ले रहे थे. होता यूं है कि लोग डिप्रेशन को बहुत हल्के में लेते हैं और इसे इग्नोर करते रहते हैं. अभी तक परिवार के किसी व्यक्ति ने यह नहीं बाताया कि डॉक्टर डिप्रेशन में क्यों रहते थे.
ऊपर से कोरोना से संबंधित इतने अफवाह फैला दिए जातें हैं, लोगों को इतना डरा दिया जाता है कि अच्छा-खासा इंसान भी हिम्मत हार जाता है. दूसरी लहर में लोग कोरोना को लेकर इतना डर गए थे कि कई सुसाइड की खबरें सामने आईं थीं.
इसके पहले भी लोग कोरोना काल में डिप्रेशन का शिकार होने लगे और अचानक से दुनियाभर में सुसाइड की खबरें सामने आने लगीं. साल 2020 के जून, जुलाई और अगस्त के महीने में आत्महत्या के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, साल 2019 में 1.39 लाख से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी की थी. जिनमें 67 प्रतिशत से ज्यादा युवा शामिल थे.
इतना ही नहीं साल 2018 में WHO ने अपनी एक रिपोर्ट में चेताया था कि देश में खुदकुशी महामारी का रूप लेती जा रही है. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा ख़ुदकुशी के मामले वाले 20 देशों की सूची में शामिल है.
राममनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ आरपी बेनीवाल के अनुसार, ‘भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा लोग सुसाइड करते हैं. लोग सबसे अधिक सुसाइड मेंटल डिसॉर्डर की वजह करते हैं.’
डॉक्टर ने अतनी बड़ी बात कह दी लेकिन असल में होता क्या है? जब तक लोगों की मानसिक हालत खराब ना हो जाए, तब वे डॉक्टर के पास जाते ही नहीं हैं. असल में लोग अवसाद को बीमारी तो नहीं मानते लेकिन अगर कोई इंसान मानसिक इलाज के लिए डॉक्टर के पास चला जाए तो उसे पागल जरूर समझ लेते हैं.
देखिए अवसाद को पता अगर समय लगते रह जाए और इंसान अपना इलाज करा ले तो वह जल्दी ही ठीक हो जाता है. परिवार के लोग, दोस्त, सहकर्मी अगर किसी अवसाद से ग्रसित व्यक्ति को समझकर उसका साथ दें तब को बहुत जल्द ही सामान्य हो जाता है. लोगों को बस यह समझना होगा कि जिस तरह शारीरिक रूप से बीमार पड़ने पर हम दवा खाते हैं और हमारा बुखार ठीक हो जाता है. ठीक उसी तरह किसी भी तरह की मानसिक परेशानी होने पर भी हमें दवा या थेरेपी की जरूरत होती है.
हम क्या करते हैं किसी को परेशान देखकर उसका मजाक बना देते हैं, उसे पागल करार देते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी गलती होती है. अगर आप किसी का साथ नहीं दे सकते तो कम से कम उसके कंधे पर हाथ रखकर इतना ही कह दीजिए कि सब ठीक है, या सब ठीक हो जाएगा.
हमारा बस यह कहना है कि समस्या चाहें कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, सुसाइड कभी उसका हल नहीं होता. हालात कैसे भी क्यों ना हो हमें कभी भी जिंदगी से हार नहीं माननी चाहिए. एक बार फिर यही कह रहे हैं कि कोरोना से डरने की या घबराने की जरूरत नहीं है. बस अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाइए, अपना ख्याल रखिए, कोरोना गाइडलाइन का पालन कीजिए...कोरोना को हमने हरा दिया है और आगे भी हराने की ताकत रखते हैं.
जरा उन डाक्टर्स के बारे में सोचिए जिन्हें कोरोना हुआ, उन्होंने खुद को आइसोलेट किया, इलाज करवाया और ठीक भी हो गए. ओमिक्रॉन से घबराने की जरूरत नहीं है, वैसे भी WhO ने कहा है कि इसके लक्षण हल्के-फुल्के हैं. वैक्सीन लीजिए, हेल्दी डाइट लीजिए, नींद पूरी कीजिए और खुश रहिए.
अवसाद से ग्रसित होना किसी शर्म की बात नहीं हैं, बड़े-बड़े लोग हो जाते हैं और ठीक हो जाते हैं. कोरोना को तो खत्म होना ही है, लेकिन डिप्रेशन को बड़ी बीमारी मत बनाइए. अपनी परेशानियों लोगों से शेयर तो कीजिए, 10 हाथ आपको थामने के लिए मिल जाएंगे. भरोसा रखिए, क्योंकि अंत में सब ठीक हो जाता है.
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