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Updated: 10 मई, 2021 07:54 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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कोरोना की दूसरी लहर के बीच अभी थोड़ी सी राहत नजर आई है. बीते 5 दिन में पहली बार 4 लाख से नीचे नए केस दर्ज किए गए हैं. पिछले 24 घंटे में अपने देश में 3 लाख 66 हजार कोरोना संक्रमितों की पुष्टि हुई. इस दौरान 3 लाख 53 हजार लोग रिकवर हुए हैं, जबकि 3,747 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. राहत और सुकून की ये छोटी खुशी उस वक्त काफूर हो जाती है, जब कोरोना की तीसरी लहर का ध्यान आता है. जब दूसरी लहर में लोगों का ऐसा हाल है, तो तीसरी लहर में क्या होगा, ये सोचकर लोग अभी से परेशान हैं. होंगे भी क्यों नहीं तीसरी लहर में सबसे ज्यादा खतरा छोटे मासूम बच्चों को है. कोई भी मां-बाप खुद दुख झेल सकता है, लेकिन अपने जिगर के टुकड़े को परेशान होता नहीं देख सकता. ऐसे में तीसरी लहर आने से पहले ही पैरेंट्स को अपनी कमर कसनी होगी. मुकम्मल तैयारी करनी होगी.

नेशनल कोविड टास्क फोर्स के एडवाइजर डॉ. गिरिधर बाबू के मुताबिक, कोरोना की तीसरी लहर नवंबर के आखिरी में या दिसंबर की शुरुआत में आ सकती है. इसी साल ठंड के समय तीसरी लहर अपने चरम पर हो सकती है. दूसरी लहर की प्रकृति को देखते हुए यह अनुमान है कि तीसरी लहर में सबसे ज्यादा युवा और बच्चे प्रभावित हो सकते हैं. कई एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि कोरोना की तीसरी लहर बच्‍चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है. कोरोना की पहली लहर बुजुर्गों के लिए खतरा बनी थी, दूसरी लहर युवा आबादी के लिए खतरनाक साबित हुई, अब तीसरी लहर बच्‍चों के लिए जानलेवा हो सकती है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि 18 साल से कम उम्र के लिए अभी तक वैक्सीन बनी ही नहीं है. इसलिए कोरोना संक्रमण से जिसे सबसे ज्यादा खतरा है, उन्हें जल्द से जल्द वैक्सीनेट करने की जरूरत है.

untitled-1-650_051021052534.jpgकोरोना की तीसरी लहर में सबसे अधिक बच्चों की जान को खतरा है.

वैसे कोरोना की दूसरी लहर भी बच्चों के मामले में एक अलार्म की तरह है. पिछली लहर के मुकाबले इस बार बच्चे अधिक संख्या में कोरोना संक्रमित हुए हैं. पिछले साल करीब 1 फीसदी बच्चे कोरोना के शिकार हुए थे, जबकि इस साल 1.2 फीसदी हुए हैं. लेकिन भारत की जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए, तो ये एक बड़ी संख्या है. तीसरी लहर के दौरान ये संख्या सोच से परे जा सकती है, यदि सरकार और जनता ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. आखिर किन वजहों से बच्चों में बढ़ सकता है कोरोना संक्रमण? बच्चों में सामान्यतौर पर संक्रमण के कैसे लक्षण दिखते हैं? माता-पिता को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? दुनिया के अन्य देश बच्चों में संक्रमण रोकने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं? आइए एक्सपर्ट्स के जरिए इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं. इनके आधार पर पैरेंट्स अपनी तैयारी कर सकते हैं.

बच्चों में संक्रमण का खतरा क्यों?

अपोलो अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजन भट्टाचार्य का कहना है कि डबल म्यूटेंट कोरोना वैरिएंट अन्य स्ट्रेन के कॉकटेल के साथ बच्चों को संक्रमित कर रहा है. बच्चे अपने ही परिवार के सदस्यों से संक्रमित हो रहे हैं, जो लगातार घर से बाहर जाते हैं. डबल म्यूटेंट वैरिएंट में इम्यून सिस्टम से आसानी बचने की प्रवृति होती है. यह हमारे शरीर की प्रणाली के रूप में सामने आती है और हमारी प्रतिरक्षा सुरक्षा से बच जाती है. सरल भाषा में कहें तो शरीर में किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम/एंडी बॉडी काम करता है. कोरोना वायरस शरीर में जाते ही ये सारे तत्व उससे भिड़ जाते हैं और उसे समाप्त कर देते हैं. लेकिन कोरोना के नए वैरिएंट/स्ट्रेन भेष बदल कर दाखिल होते हैं, जिससे कि एंडी बॉडी उसे दोस्त समझ बैठता है. यही वजह है कि बड़ी संख्या बच्चे कोविड-19 का शिकार हो सकते हैं.

बच्चों में ये हैं कोरोना के लक्षण

AIIMS में सीनियर रेजिडेंट डॉ. साग्निक बिस्वास के मुताबिक, कोरोना की दूसरी लहर से पता चला है कि कोविड-19 लक्षण केवल श्वसन प्रणाली तक सीमित नहीं हैं. बच्चों में देखे जाने वाले सबसे आम लक्षणों में तेज बुखार, ठंड लगना, सांस की समस्या, खांसी, जुकाम, गंध की कमी, गले में खराश, माइलगियास और कोक्यूटेनियस इंफ्लेमेटरी साइन शामिल है. लेकिन दूसरी लहर में संक्रमित हुए अधिकांश बच्चों में भूख में कमी, उल्टी-दस्त के साथ गैस्ट्रो के लक्षण भी दिख रहे हैं. कुछ देशों में बच्चों के कई केस तो ऐसे आए हैं, जिनमें उनका लीवर तक प्रभावित हुआ है, हालांकि ऐसे मामले क्लिनिकल एक्सपीरियंस पर आधारित होते हैं. कोरोना की तीसरी लहर में बीमारी के लक्षणों में बदलाव देखने को मिल सकता है, जैसा कि दूसरी लहर में देखने को मिला है. इस बार पेट से संबंधित समस्याएं पहली बार नजर आई हैं.

संक्रमित होने पर क्या करें पैरेंट्स?

देखिए अभी तक बच्चों को लेकर कोई भी कोरोना प्रोटोकाल नहीं बना है. खुद केंद्र सरकार का कहना है कि कोरोना से संक्रमित होने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम है, ऐसे में उनके लिए किसी प्रोटोकाल फिलहाल जरूरत नहीं है. वैसे भी अपने देश में किसी भी दुश्मन से लड़ाई तब की जाती है, जब वो घर में घुस जाता है या घुसने पर आमादा होता है. कोरोना की दूसरी लहर में हुई तबाही इसका ज्वलंत उदाहरण है. डॉ. जयदेव रे का कहना है कि जिन बच्चों में कोरोना के हल्के लक्षण दिखें उनको 14 दिनों तक घर में ही रखना चाहिए. यदि ऑक्सीजन लेवल 94 से उपर है, तो पौष्टिक आहार, भरपूर पानी और उचित देखभाल से मरीज ठीक हो सकता है. लेकिन यदि सीआरपी और फेरिटिन का लेवल अधिक है, तो तुरंत अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए. शारीरिक दूरी, मास्क पहनना और हाथ सेनेटाइज करना बहुत जरूरी है.

क्या बच्चों को लगेगी वैक्सीन?

अभी अपने देश में 18 साल से ऊपर के लोगों को कोरोना वैक्‍सीन लगाई जा रही है. दरअसल, वैक्सीन का ट्रायल सिर्फ 16 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही किया गया है. इसलिए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने 16 साल से कम उम्र के बच्‍चों को यह वैक्‍सीन न लगाने की सलाह दी है. बच्‍चों को कोरोना से सबसे ज्‍यादा खतरा होने के बावजूद भी डब्‍ल्‍यूएचओ ने बच्‍चों को वैक्‍सीन न लगवाने की बात कही है. डॉ. पवन कुमार का कहना है कि कोई भी वैक्‍सीन लाने से पहले, उसका ट्रायल किया जाता है. अभी कोविड-19 की वैक्‍सीन का ट्रायल सिर्फ वयस्‍कों और बुजुर्गों पर ही किया गया है, इसलिए फिलहाल उन्‍हें ही यह टीका लगाया जा रहा है. हालांकि, अब कोरोना की दूसरी लहर बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रही है इसलिए अब बच्‍चों के लिए भी वैक्‍सीन के उपयोग और ट्रायल की जरूरत बढ़ गई है.

अन्य देश फिलहाल क्या कर रहे हैं?

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स एंड चिल्ड्रन हॉस्पिटल एसोसिएशन के अनुसार, यहां कोरोना के कुल केसेज में करीब 13 फीसदी बच्चों की संख्या है. अमेरिका की मे़डिकल रिसर्च एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने कोविड-19 के शिकार बच्चों के इलाज के लिए गाइडलाइन तैयार की है. यहां हल्के या मध्यम बीमारी वाले अधिकांश बच्चे उचित देखभाल से स्वस्थ हो जा रहे हैं. लेकिन जो बच्चे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं, उनका आक्सीजन लेवल गिरता जा रहा है, ऐसे में उनको भी रेमेडिसविर इंजेक्शन लगाने की सलाह दी गई है. अस्पताल में भर्ती सभी उम्र के बच्चे, जिनको श्वसन रोग है, उनके लिए डेक्सामेथासोन फायदेमंद हो सकता है. यूके और इज़राइल अगले छह महीनों के भीतर बच्चों के इलाज के लिए गाइडलाइन बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं. बाकी देशों में अभी इस पर ध्यान नहीं है.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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