सफेद गाय पवित्र है तो भैंस क्यों नहीं?
ऐसे समय में जब पूरा देश गाय की प्रशंसा के गीत गा रहा हो तो गोरी चमड़ी की पूजा करने वाले देश में काली और मदमस्त चाल वाली भद्दी जानवर के लिए कोई उम्मीद नहीं है, फिर भले ही वह गाय से ज्यादा पौष्टिक दूध देती हो...
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32 वर्षीय सतीश यादव उत्तर प्रदेश के अमेठी के पास स्थित ललितपुर गांव के हैं. वह दिल्ली में माली का काम करते हैं जबकि उनके माता-पिता अभी भी गांव में रहते हैं, और अपनी पांच बीघा पैतृक संपत्ति, दो गायों, दो बैलों और दो भैंसों की देखभाल करते हैं. जिन्हें वे अपने गोजातीय पालतू जानवर कहते हैं? मैंने शरतचंद्र के जितने भी उपन्यास पढ़ें हैं, उनमें ग्रामीण हमेशा अपनी गायों के नाम रखते हैं (मिसाल के तौर पर बंगाली गांवों में, श्यामोली) लेकिन यादव स्पष्ट रूप से कहते हैं, 'उनके जानवरों के कोई नाम नहीं हैं.'
'आपका परिवार गायों को बहुत पसंद करता होगा?' इस सवाल के जवाब में यादव मुस्कुराते हुए अपनी भैंसों के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं: कैसे वे रास्ता पार करते समय अपनी आंखें बंद कर लेती हैं ('आपको रुकना होगा, वे नहीं रुकेंगी'), कैसे वे पानी में नहाना पसंद करती हैं ('हम बचपन में पानी में उनकी सवारी किया करते थे'), वे कितना खाती हैं. 'और गाय कैसी हैं?' तो इसके जवाब में वह इतना ही कहते हैं, 'वे ठीक-ठाक हैं.' इसके बाद वह भैंस द्वारा हर दिन दो बार दिए जाने वाले गाढ़े और भरपूर मात्रा के दूध के बारे में बताते हुए उत्साहित हो जाता है ('पांच-पांच लीटर'), जिसे उसका परिवार 30 रुपये प्रति लीटर में बेचता है. और गायें? 'ओह, वे बहुत कम दूध देती हैं और उतना गाढ़ा भी नहीं. जोकि 20 रुपये प्रति लीटर में बिकता है.' साथ ही वह कहता है, आज के समय में एक भैंस 30-40 हजार रुपये में बिकती है. वहीं एक गाय 7 हजार रुपये में जबकि बैल 5 हजार रुपये में बिकते हैं. 'लोग ट्रैक्टर खरीद रहे हैं, बैलों के पास कोई काम नहीं है, वे आराम से इधर-उधर घूमते रहते हैं. गाय ज्यादा दूध नहीं देती हैं, लेकिन अगर आपके पास भैंस है तो आपको चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है.' जाहिर है यादव के दिल में गायों की अपेक्षा अपनी भैंसों के लिए ज्यादा जगह है. यह पूछने पर कि क्या गाय सीधी होती हैं? भैंसे ज्यादा आक्रामक होती हैं, क्या वे लड़ती हैं? यादव हैरान होकर कहते हैं, वे लड़ेंगी क्यों? 'वे हमेशा साथ-साथ रहती हैं.'
यादव जैसे लोग लाखों में एक होते हैं. जबकि पूरा देश गाय की प्रशंसा के गीत गा रहा है, लोग अपने पड़ोसी, जिसे वे सालों से जानते थे, को सिर्फ इस संदेह में मार दे रहे हैं कि उसने बीफ खाया था, राज्य दर राज्य गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए कड़े कानून ला रहे हैं- ऐसे में यह आदमी खुलेआम अपनी गायों से ज्यादा अपनी भैंसों के पक्ष में है. क्या उसे पता नहीं है कि गाय पवित्र हैं- गऊ माता, कामधेनु- जबकि भैंसे पवित्र नहीं हैं? मृत्यु के स्वामी, यम भैंसों पर सवार होकर आते हैं. देवी दुर्गा ने भैंस के सिर वाले राक्षस महिषासुर को मारा था.
यादव यह सुनकर खामोश हो जाता है कि देश में 24 राज्य ऐसे हैं, जहां आप गाय को बिना अनुमति के नहीं मार सकते हैं. लेकिन आप भैंसों को मार सकते हैं, उनका मांस खा सकते हैं और उनके चमड़ों से बैग बना सकते हैं. यहां तक कि महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में-जहां एक गाय को मारने पर आपको भारतीय दंड संहिता के मुताबिक शराब पीकर गाड़ी चलाने, छेड़छाड़, किसी को गंभीर चोट पहुंचाने या इनकम टैक्स चोरी जैसे अपराधों से कहीं ज्यादा सजा मिलेगी- वहीं आप बिना पलक झपकाए एक भैंस को मार सकते हैं.
बेचारा यादव. या बेचारी भैंस? लेकिन काले लोगों के इस देश में, जहां गोरी चमड़ी पाने की आंकाक्षा रखने वाले इसे सत्व गुण (दैवीय गुण) की तरह पूजते हैं, वहां इस काली और मदमस्त चाल वाली भद्दी जानवर के लिए कोई उम्मीद नहीं है- भले ही वह हर दिन अपने दूध से अपने सफेद साथी गाय से ज्यादा भारतीयों बच्चों को पोषण करती हो.
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