झगड़ालू बहू को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं, तो फिर वह कहां जाए?
पति-पत्नी में लड़ाई होना अलग बात है लेकिन एक बहू (daughter in law) अपना ससुराल अपना घर छोड़कर आखिर कहां जाएगी. शादी के बाद मायके में ज्यादा दिन रहने पर समाज वाले अलग ताना मारते हैं. वहां मायके वाले खुद शादी के बाद बेटी की जिम्मेदारी से घबराते हैं.
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ससुराल में सास (mother in law) बहू (daughter in law) के बीच नोक-झोंक होना आम बात है. कई बार मामला इतना बढ़ जाता है कि एक घर में साथ रहना मुश्किल हो जाता है. वैसे इस बार बात सास-बहू की लड़ाई की नहीं बल्कि पति और पत्नी (husband wife relation) के बीच कलह की है.
बेटा-बहू इतना झगड़ते थे कि उनके 69 साल की सास और 74 साल के ससुर का जीना मुश्किल हो गया. रोज-रोज होने वाले कलह से बुजुर्ग माता-पिता तंग आ गए. जब वे प्रताड़ित महसूस करने लगे तो उन्हें बीच में आना ही पड़ा.
क्या झगड़ा करन वाली बहू को सास-ससुर की संप्पति से बेदखल कर देना चाहिए?
दरअसल, पति ने पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई तो पत्नी ने भी लोअर कोर्ट में केस दर्ज करा दिया. इसके बाद बेटा घर छोड़कर किराए के मकान में शिफ्ट हो गया लेकिन बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर के खिलाफ खड़ी रही. असल में वह अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहती थी लेकिन सास-ससुर बहू को अपने घर से निकालना चाहते थे. इसलि ससुर ने भी कोर्ट में याचिका दर्ज करवा दी थी.
अब बहू कहां जाएगी?
पति-पत्नी में लड़ाई होना अलग बात है लेकिन एक बहू अपना ससुराल अपना घर छोड़कर आखिर कहां जाएगी. शादी के बाद मायके में ज्यादा दिन रहने पर समाज वाले अलग ताना मारते हैं. मायके वाले खुद शादी के बाद बेटी की जिम्मेदारी से घबराते हैं. पति नौकरी करता है थोड़े दिन बाहर किराए पर घर लेकर रह लेगा, उसे पता है कि माता-पिता की संपप्ति अंत में उसकी ही होने वाली है. उसे बीवी से दूरी चाहिए तो आराम से अलग रूम लेकर रह लेगा लेकिन एक महिला आखिर कहां जाएगी. हम यह भी नहीं कह सकते हैं कि घर में होने वाले कलेश के लिए सिर्फ वही दोषी होगी, हो सकता है कि उसके पति की भी गलती हो. क्या बेटे के साथ भी माता-पिता यही व्यवहार अपनाएंगे जो बहू के साथ अपनाते हैं? या फिर अपनी संतान वाला मोह ऐसा करने से रोक लेगा लेकिन बहू तो पराई है. बेटे के लाख बातें ही दोषी तो बहू ही है.
दरअसल, ऐसे हालात में बहू जब तक शादी के बंधन में रहेगी उसे घरेलू हिंसा के अधिनियम की धारा 19(1) (एफ) के तहत रहने के लिए दूसरा घर दिया जाएगा. इससे यह साफ होता है कि अगर बहू का तलाक नहीं हुआ है और सास-ससुर उसे घर से बाहर निकाल रहे हैं तो वे बहू की रहने की दूसरी व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सुसराल वालों की ही होगी. हालांकि सास-ससुर बहू को अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट के जज योगेश खन्ना का कहना है कि, 'संयुक्त परिवार के घर के मामले में संबंधित संपत्ति के मालिक बहू को संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं. वहीं एक पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि घरेलू हिंसा से पीड़ित पत्नी अपने सास-ससुर के घर में कानूनी रूप से सिर्फ रह सकती है, लेकिन पति के बनाए घर पर उसका अधिकार होगा.
बहू का ससुराल की संपत्ति पर अधिकार
इस मामले में कोर्ट ने बहू की अपील को खारिज करते हुए सास-ससुर के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि, 'बुजुर्ग सास-ससुर को शांति से जीने का हक है. सास-ससुर सुकून से जीने के लिए बहू को घर से बाहर निकाल सकते हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि संयुक्त परिवार में संपत्ति के मालिक अपनी बहू को संपत्ति से भी बेदखल भी कर सकते हैं.
बहू ने प्रॉपर्टी पर दावा किया था लेकिन बुजुर्ग सास-ससुर का कहना था कि बेटा पहले ही घर छोड़कर जा चुका है. अब वे अपनी बहू के साथ नहीं रह सकते, क्योंकि वह रोजाना लड़ती है. इस पर कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 के तहत आवास का अधिकार संयुक्त घर में रहने का एक जरूरी अधिकार नहीं है. खासतौर पर उन मामलों में, जहां एक बहू बुजुर्ग सास-ससुर के खिलाफ खड़ी हो और उन्हें शांति से जीने नहीं देती हो.
क्या आप कोर्ट के इस फैसले के पक्ष में हैं. क्या झगड़ा करन वाली बहू को सास-ससुर की संप्पति से बेदखल कर देना चाहिए? क्या घरवाले उसे घर से बाहर निकाल सकते हैं. मान लीजिए अगर गलती बहू की न हो तो? कौन सच बोल रहा है और झूठ...गलती बेटे की हो या बहू की...लेकिन अपने झगड़े में मां-बाप को घसीटना तो गलत है.
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