बेटियों का मुखाग्नि देना, ऐसा सामाजिक बदलाव हिन्दू धर्म में ही संभव है
दोनों बेटियों ने समाज की रवायतें तोड़ते हुए अपने माता-पिता को मुखाग्नि दी और पूरे रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया. बेटियों ने अपने माता-पिता को एक ही चिता पर मुखाग्नि देने की बात कही, जिसका पालन भी किया गया. इतना ही नहीं दोनों बेटियों ने हरिद्वार जाकर अपने माता-पिता की अस्थियों को मां गंगा में प्रवाहित किया. हिन्दू धर्म के लचीलेपन की यही खासियत है.
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हिंदू धर्म में बेटियां खुद मुखाग्नि (daughter last rites in hindu dharma) दे रही हैं. यह नैतिक है और होना भी चाहिए. बेटियों का मुखाग्नि देना सामान्य है. इस बात को बदलते समय के साथ लोग खुद ही समझ गए और अपने आप अपनाने भी लगे.
देश के पहले CDS जनरल बिपिन रावत (CDS Bipin Rawat) बेटियों का मुखाग्नि देना, ऐसा सामाजिक बदलाव हिन्दू धर्म में ही संभव है और उनकी पत्नी मधुलिका (CDS Bipin Rawat wife Madhulika rawat) को देशवासियों ने नम आंखों से विदाई दी. CDS को खोने की वजह से लोग गमगीन हैं. देश के कोने-कोने में लोग भावुक होकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.
वहीं अपने माता-पिता को खोने के बाद दोनों बेटियां कृतिका और तारिणी अकेली पड़ गईं हैं. दोनों बेटियों ने समाज की रवायतें तोड़ते हुए अपने माता-पिता को मुखाग्नि दी और पूरे रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया. बेटियों ने अपने माता-पिता को एक ही चिता पर मुखाग्नि देने की बात कही, जिसका पालन भी किया गया. इतना ही नहीं दोनों बेटियों ने हरिद्वार जाकर अपने माता-पिता की अस्थियों को मां गंगा में विसर्जित (CDS Bipin Rawat Asthi Visarjan) किया. इस तरह CDS जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका पंचतत्व में विलीन हो गए.
बेटियों ने CDS जनरल बिपिन रावत का अंतिम संस्कार किया
लोगों के लिए बेटियों का अंतिम संस्कार करना एक बड़ी सीख बन गई. असल में हिन्दू धर्म की परंपरा में महिलाओं का मुखाग्नि देना तो दूर, महिलाओं का श्मशान जाना भी वर्जित था. लेकिन, बिना किसी संवैधानिक कानून और क्रांति ये सामाजिक बदलाव आया. हिन्दू धर्म के लचीलेपन की यही खासियत है.
आज के समय में बेटियों का मुखाग्नि देना, अंतिम संस्कार करना धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है. लोगों ने इस बदलती सोच को अपना लिया है. बड़ी बाच यह है कि इसके लिए महिलाओं को क्रांति नहीं करनी पड़ी. सबकुछ बस होते चला गया क्योंकि लोग समझते गए कि इसमें कुछ गलत नहीं है.
हालांकि कुछ समय पहले तक पहले कहा जाता था कि पुत्र बिना गति नहीं लेकिन अब महिलाएं अर्थी को कंधा देने से लेकर पिंडदान भी करती हैं. पहले ये सभी कर्मकांड पुरुष ही करते थे. महिलाओं की भूमिका सिर्फ घर तक ही सीमित होती थी.
पहले जिन घरों में पुरुषों की संख्या कम होती थी उस परिवार में अर्थी ले जाने के लिए दूसरों के भरोसे ही रहना पड़ता था. अब हिंदू धर्म के लोगों की सोच बदल रही है. इसे ही सनातन धर्म कहते हैं. इस बदलाव की वजह से अब बेटे-बेटियों के बीच की असमानताएं दूर हो रही हैं. लोगों का बेटे के प्रति मोह कम होगा. इस अंधविश्वास से छुटकारा मिलेगा की बेटे के अर्थी उठाने, मुखाग्नि देने और पिंडदान करने से स्वर्ग मिलेगा.
हिंदू धर्म में इस बदलाव के लिए किसी को आंदोलन नहीं करना पड़ा. नारीवादी महिलों को प्रदर्शन नहीं करना पड़ा. हिंदू समाज के लोगों ने इस साकारात्मक बदलाव को महसूस किया और खुद ही इसकी शुरुआत कर दी. हिंदू धर्म जड़ समाज नहीं है, यह परिवर्तन इस बात का सबूत है. हिंदू धर्म में जो सामान्य मानव धर्म है वह अपने आप छनकर बाहर आ ही जाता है, क्योंकि हिंदू समाद किसी एक नियम से नहीं बंधा है.
बेटियों को लेकर ऐसा सामाजिक बदलाव सिर्फ हिंदू धर्म में ही संभव है...सिर्फ बड़े शहरों और बड़े घरों में ही नहीं, गांवों में भी बेटियां ये सारे कर्मकांड निभा रही हैं. इसके लिए उन्हें किसी कागज की जरूरत नहीं महसूस हुई, बस लोगों को जरूरी लगा और उन्होंने इसे अनपा लिया...
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