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Updated: 19 दिसम्बर, 2017 09:10 PM
प्रवीण शेखर
प्रवीण शेखर
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19 दिसंबर को देशभर में राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां की पुण्यतिथि मनाई जाती है. ब्रिटिशों ने भारत के इन तीन क्रांतिकारियों को काकोरी षड्यंत्र में शामिल होने के लिए फांसी पर चढ़ा दिया था. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए इन तीन भारतीय क्रांतिकारियों को आज भी याद किया जाता है.

काकोरी षड्यंत्र, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से है. इस षड़यंत्र को ब्रिटिश प्रशासन को हिलाने के उद्देश्य से किया गया था. इस योजना को सरकार से जुड़ा धन सुरक्षित करने और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन का इस्तेमाल करने के लिए भी क्रियान्वित किया गया था.

आइये इन क्रांतिकारियों के पुण्यतिथि पर काकोरी षड़यंत्र से जुड़ी अहम् बातों को जानें-

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काकोरी साजिश:

कुछ अन्य लोगों के अलावा, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां काकोरी षड्यंत्र के मुख्य रणनीतिकार थे. इस योजना को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां, राजेंद्र लाहिरी, चंद्रशेखर आजाद, सचितेंद्र बख्शी, केशब चक्रवर्ती, मनम्नाथनाथ गुप्ता, मुरारी लाल गुप्ता, मुकुंदी लाल (मुकुन्दी लाल गुप्ता) और बनवारी लाल द्वारा अंजाम दिया गया था.

हथियारों की खरीद के लिए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के कुछ सदस्यों ने उत्तरी रेलवे लाइनों के एक ट्रेन को लूटा था. इस घटना के बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने षड्यंत्र में शामिल क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए एक गहन योजना बनायी. परिणामस्वरूप, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मौत की सज़ा की सजा सुनाई गई.

रोशन सिंह को भी मृत्यु की सजा सुनाई गई थी. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वह ट्रेन डकैती में शामिल नहीं थे.

राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां और रोशन सिंह के जीवन के बारे में:

राम प्रसाद बिस्मिल बहुत ही कम उम्र में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) में शामिल हो गए थे. इस संगठन के ही माध्यम से बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और सुखदेव के संपर्क में आये थे. बिस्मिल, ब्रह्मचर्य के अनुयायी थे. उन्होंने कई पुस्तक और लेखन प्रकाशित किये थे. 'अ मैसेज टू माई कंट्रीमेन' नाम की किताब लिखी. इनकी सबसे प्रसिद्ध कविता 'सरफ़रोशी की तमन्ना' है. राम प्रसाद ने कई बंगाली लेखों को हिंदी अनुवाद किया था.

Kakori conspiracy, ram prasad bismilकुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट कर घर न आए

काकोरी षड्यंत्र को अंजाम देने में दोषी पाए जाने के के बाद, बिस्मिल को गोरखपुर जेल में रखा गया था और 19 दिसंबर, 1927 को 30 साल की उम्र में फांसी दे दी गयी थी. अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां अपने बड़े भाई के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये थे. खान को बिस्मिल की कविताओं की विशेषताओं के कारण उनसे मिलने की बहुत उत्सुकता थी.

खान के बड़े भाई, बिस्मिल की बहादुरी की कहानियां अशफ़ाक़ुल्लाह को बताया करते थे. खासकर तब जब बिस्मिल को मैनपुरी षडयंत्र के बाद फरार घोषित किया गया था. बिस्मिलिल और अशफ़ाक़ुल्लाह एक निजी सभा में मिले और कविताओं में दिलचस्पी के कारण करीब आ गए. एक स्वतंत्र और संयुक्त भारत का उनका सामान्य उद्देश्य था जिसने उन्हें एक सामान्य प्रयास पर काम करने के लिए करीब लेकर आया.

19 दिसंबर को राम प्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह के साथ, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां को फांसी दे दी गई थी. रोशन सिंह को पहले 1921-22 के असहयोग आंदोलन के दौरान बरेली शूटिंग मामले में सजा सुनाई गई थी. लेकिन वह काकोरी साजिश में शामिल नहीं थे. उन्हें बिस्मिल और खान के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था और फांसी दी गयी थी.

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लेखक

प्रवीण शेखर प्रवीण शेखर @praveen.shekhar.37

लेखक इंडिया ग्रुप में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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