RSS ने दोबारा सुलगाया आरक्षण का मुद्दा, विपक्ष के लिए नया मौका
संघ प्रमुख के आरक्षण पर समीक्षा की बात कहने पर मुद्दा विहीन विपक्षी पार्टियां एकदम से सक्रिय हो गईं और मोदी सरकार पर चौतरफा हमला बोल दिया. क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान ने मुद्दाविहीन विपक्षी पार्टियों को बैठे-बैठाए भाजपा के खिलाफ एक मौका दे दिया है?
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आरक्षण का मुद्दा हमारे देश में कोई नया नहीं है. यह एक ऐसा विषय है जिस पर गाहेबगाहे बहस होते ही रहती है लेकिन कभी-कभी यह ऐसे समय पर उभरकर आता है जब इसकी महत्ता कुछ ज्यादा हो जाती है. अब चूंकि हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं ऐसे में राजनैतिक पार्टियों के लिए यह एक संजीवनी से कम नहीं है. और इस बार यह संजीवनीदायक मौका देने का श्रेय संघ प्रमुख मोहन भागवत को जाता है.
हालांकि यह मुद्दा इतना बड़ा नहीं था. बस बात सिर्फ इतनी सी ही थी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के विषय पर यह कहा था कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं उन्हें सौहादर्पूर्ण वातावरण में बैठकर विचार करना चाहिए. लेकिन यह महत्वपूर्ण इसलिए हो गया क्योंकि यह संघ प्रमुख के द्वारा बोला गया.
आरक्षण के मुद्दे पर मोहन भागवत के बोलते ही विपक्ष इसपर बहस पर उतर आया
जब संघ प्रमुख ने आरक्षण पर समीक्षा की बात की तो विपक्षी पार्टियां जिसके पास कोई मुद्दा नहीं था एकदम से सक्रिय हो गईं और मोदी सरकार पर चौतरफा हमला बोल दिया. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी से लेकर मायावती और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने मोदी सरकार को घेरते हुए आरक्षण विरोधी ठहराने में कोई समय बर्बाद नहीं होने दिया.
RSS का हौसला बढ़ा हुआ है और मंसूबे खतरनाक हैं। जिस समय भाजपा सरकार एक-एक करके जनपक्षधर कानूनों का गला घोंट रही है। RSS ने भी लगे हाथ आरक्षण पर बहस करने की बात उठा दी है।
बहस तो शब्दों का बहाना है मगर RSS-BJP का असली निशाना सामाजिक न्याय है।
लेकिन क्या आप ऐसा होने देंगे?
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) August 20, 2019
लेकिन सवाल यह है कि क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान ने मुद्दाविहीन विपक्षी पार्टियों को बैठे-बैठाए भाजपा के खिलाफ एक मौका दे दिया है? क्या भाजपा को आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसका नुकसान हो सकता है? ऐसा इसलिए क्योंकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक़्त भी मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा करने के वक्तव्य से भाजपा को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था.
आरएसएस का एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण के सम्बंध में यह कहना कि इसपर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है जिसकी कोई जरूरत नहीं है। आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित व अन्याय है। संघ अपनी आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है।
— Mayawati (@Mayawati) August 19, 2019
अगर हम बात महाराष्ट्र की करें जहां विधानसभा चुनाव होना है तो वहां हाल में ही फडणवीस सरकार ने मराठों के लिए शिक्षा में 12 और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी आरक्षण लागू किया है. ऐसे में यहां विपक्षी पार्टियों को इस मुद्दे पर कोई खास फायदा होने का अनुमान नहीं है. यहां बाढ़ से तबाही और किसानों की दुर्दशा को चुनावी मुद्दे के रूप में प्रमुखता से उठाये जाने की संभावना है.
झारखण्ड में भी भाजपा सरकार ने 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमज़ोर अगड़े वर्ग को दिया है और यहां 50 प्रतिशत से ज़्यादा आरक्षण की व्यवस्था है. ऐसे में यहां भी पहले से कमज़ोर विपक्षी पार्टियों को न के बराबर ही लाभ हो सकता है. लेकिन आदिवासी पिछड़ों की बहुतायत वाले इस राज्य में भाजपा को डैमेज कंट्रोल करना पड़ सकता है.
मोहन भागवत जी के बयान के बाद आपको यह साफ होना चाहिए कि क्यों हम आपको “संविधान बचाओ” और “बेरोज़गारी हटाओ,आरक्षण बढ़ाओ” के नारों के साथ आगाह कर रहे थे।'सौहार्दपूर्ण माहौल' की नौटंकी में ये आपका आरक्षण छीन लेने की योजना में काफी आगे बढ़ चुके है।जागो,जगाओ और अधिकार बचाने की मशाल जलाओ
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 20, 2019
हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होना है जहां जाट आरक्षण का मुद्दा हमेशा से सुर्खियों में तो रहा लेकिन कानूनी दांव-पेंच में फंस कर रह गया. इस बार भाजपा को घर संभालने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है.
ऐसे में मोहन भागवत की आरक्षण पर चर्चा ने मुख्य रूप से राजनीतिक रूप धारण कर लिया है. लेकिन सबसे बड़ा सच यह है कि जातीय आरक्षण जैसे मुद्दे पर बगलें झांकने वाली राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक छिटकने के डर से मुद्दे को छूना भी पसंद नहीं करती हैं. जबकि चर्चा का विषय यह था कि आरक्षण का लाभ किसे मिलना चाहिए और किसे नहीं? अगर खुले दिमाग से सोचा जाए तो संघ प्रमुख की बात में कुछ भी गलत नहीं था. लेकिन इतना तो तय है कि आरक्षण की व्यवस्था जिन कारणों से की गई थी वो उस मंज़िल तक नहीं पहुंच पायी और इसकी जगह राजनीतिक फायदों ने ले ली. और एक सत्य यह भी है कि हमारे देश में जातिगत आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की मांग उठती रहती है और आर्थिक आधार पर आरक्षण देशहित में एक सार्थक कदम साबित हो सकता है.
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