ऐसे मंत्री या विधायक को जितना जलील किया जाए कम है...
दिल्ली के काूनन मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी पर सवाल उठ रहा है कि उनके साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है. जबकि, सवाल यह उठना चाहिए कि उनके साथ ऐसा क्यों न हो? फर्जी डिग्री होने का दस्तावेजी सबूत है तो जलालत में रियायत क्यों हो...
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फर्जी डिग्री मामले में गिरफ्तार किए गए दिल्ली सरकार के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की फजीहत जारी है. पहले तो जलील करते हुए बीच सड़क पर गिरफ्तार किया गया. थाने में लाया गया. फिर ट्रेन से फैजाबाद ले जाया गया. वहां तोमर से पूछेंगे कि किस कॉलेज की कौन सी क्लास में पढ़े. कौन-कौन से टीचर ने पढ़ाया. सहपाठी कौन थे. सवाल उठ रहा है कि जितेंद्र सिंह तोमर के साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है. जबकि, सवाल यह उठना चाहिए कि उनके साथ ऐसा क्यों न हो?
1. सभी पार्टियां भ्रष्टाचार खत्म करने और दागियों को पार्टी से दूर रखने की बात करती हैं. अब यदि कोई फर्जी डिग्री के साथ ऊंचे पद पर पहुंच जाए, खासतौर पर कानून मंत्री के ही पद पर. तो उससे सुलूक सख्त होना चाहिए या रियायत बरती जानी चाहिए?
2. ये कानूनी मसला हो सकता है कि जब केस चल रहा है तो गिरफ्तारी क्यों? पुलिस ने तर्क यह दिया है कि कोई नए सबूत हाथ लगे हैं. तो भले ही उनकी तस्दीक कराने के लिए ही सही. ऐसे आरोपी के साथ वैसा ही होना चाहिए, जैसा कि आम अपराधी के साथ.
3. अब सवाल आया कि फर्जी डिग्री के मामले में भी कभी कोई गिरफ्तार हुआ है क्या? हो सकता है न हुआ हो. यही पहला मामला हो. हो सकता है राजनीतिक दुश्मनी के कारण हुआ हो. लेकिन जुर्म तो जुर्म है. वह कैसे कम हो सकता है. अब तक इसे मामूली समझा जाता रहा है, लेकिन है तो गंभीर ही.
4. केजरीवाल ने इस कार्रवाई को केंद्र द्वारा बदले की कार्रवाई करार दिया है. लेकिन जो कार्रवाई पुलिस कर रही है, वह तो केजरीवाल को ही करनी चाहिए थी. अब वे अपने ही उसूलों के उलट बात कर रहे हैं. जितना मसाला जितेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ मौजूद है, इतना मसाला यदि किसी दूसरी पार्टी के नेता के खिलाफ होता, तो केजरीवाल अब प्रेस कान्फ्रेंस और धरनों की झड़ी लगा देते. तोमर के मामले में भी उनके पास मौका था. वे चाहते तो प्रेस कान्फ्रेंस करते और तोमर को पद और पार्टी से बर्खास्त करने की घोषणा जोर-शोर से करते.
5. आडवाणी का मामला याद है ना. हवाला कांड में उनका नाम भी आया था. उन्होंने खुद घोषणा की थी कि वे तब तक कोई पद नहीं लेंगे, जब तक कि वे बेदाग घोषित नहीं कर दिए जाते. आडवाणी ने वाकई हवाला का पैसा लिया था या नहीं, ये तो नहीं पता, लेकिन आरोप साबित नहीं हो पाए. चूंकि, उस आरोप के रहते कोई पद नहीं लिया, इसलिए वे जनता की नजरों में बेदाग साबित हो गए. सबक ही है, कि ईमानदार रहने से ज्यादा ईमानदार दिखना जरूरी है. लेकिन तोमर के मामले में न तो तोमर ऐसे दिख रहे हैं, न केजरीवाल और न उनकी आम आदमी पार्टी.
अब यदि तोमर इस आरोप से बरी भी हो जाते हैं, तो कोई यह नहीं भूल पाएगा कि किस तरह वे गंभीर आरोप लगने के बाद भी पद पर बने रहे थे. कैसे केजरीवाल उनको बचाते रहे. तोमर की छवि पूरी तरह उन आम नेताओं की तरह हो गई है, जो भ्रष्ट होने के बाद भी हर कीमत पर पद पर बने रहना चाहते हैं.
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