चुनावी घोषणा पत्र में सिमट जाती हैं झुग्गी बस्तियां
दिल्ली में लगभग 700 एकड़ में झुग्गियां बसी हुई हैं. जहां लगभग 10 लाख लोग रहते हैं. 90 प्रतिशत झुग्गियां सरकारी जमीन पर हैं.
-
Total Shares
प्रत्येक व्यक्ति को अपना मकान सुखद अनुभूति देने वाला होता है. धनी वर्ग के सामने अपना मकान बनाने में कोई समस्या नहीं होती क्योंकि उनके पास धन की कमीं नहीं होती. वह एक से अधिक मकान बनवा सकते हैं. मध्यम वर्ग अपनी जीवन भर की कमाई से आशियाना बनाने का प्रयास करता है. लेकिन निम्न वर्ग के लिए यह सपना ही रहता है. आज तक इस सपने में सिर्फ राजनीति ही होती रही है. इसके लिए किसी सरकार ने कोई ठोस योजना नहीं बनाई. सिर्फ चुनावों के दौरान ही झुग्गियों को नये मकान में तब्दील करने की बात होती है. गांवों से रोजगार के लिए शहर आने वाले झुग्गी बनाकर रहने लगते हैं. रोजी रोटी के तलाश में गांव का त्याग करते है। गांव की खुली हवा में सांस लेने वाले लोग, रोजगार के अभाव में छोटी से जगह में बदहाल जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं.
अगर आंकड़ो पर जाएं तो दिल्ली में लगभग 700 एकड़ में झुग्गियां बसी हुई हैं. जहां लगभग 10 लाख लोग रहते हैं. 90 प्रतिशत झुग्गियां सरकारी जमीन पर हैं. लगभग 80 प्रतिशत हिन्दू आबादी और लगभग 18 प्रतिशत मुस्लिम अबादी के लोग रहते हैं. इन बस्तियों में 974329 पुरुष और 811061 महिलाएं हैं. 46 प्रतिशत एमसीडी और पीडब्ल्यूडी की जमीनों पर रहते हैं. 28 प्रतिशत लोग रेलवे की जमीन में झोपड़ी बना कर रहते हैं. दिल्ली शहरी विकास बोर्ड के अनुसार यहां 685 बस्तियां बनी हुई हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में झुग्गी झोपडि़यों में रहने वालों की जनसंख्या लगभग 4,25,78,150 है.
यूएनडीपी के ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2009 में कहा गया है कि मुम्बई में 54.1 प्रतिशत लोग 6 प्रतिशत जमीन पर रहते हैं. दिल्ली में 18.9 प्रतिशत, कोलकता में 11.72 प्रतिशत तथा चेन्नई में 25.6 प्रतिशत लोग झुग्गियों में रहते हैं. ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2009 के अनुसार 2006-07 में हर एक मुम्बईकर साल में 65,361 रुपए कमाता था, जबकि पूरे महाराष्ट्र का औसत 41,331 रुपए और पूरे देश की औसत कमाई 29,328 रुपए हुआ करती थी. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि मुम्बई सिर्फ देश में ही पूरे विश्व का इकलौता शहर है जहां पर झोपड़ों में रहने वालों की संख्या बाकी लोगों की तुलना में सबसे अधिक है. अपने देश के दूसरे शहरों की बात करें तो दिल्ली में 18.9 प्रतिशत, कोलकाता में 11.72 प्रतिशत और चेन्नई में 25.6 प्रतिशत लोग झोपडि़यों में रहते हैं. जबकि मुम्बई में 54.1 प्रतिशत लोग झोपड़ों में रहने को विवश हैं. इन आंकड़ो पर सरकार को संजीदगी से ध्यान देने की जरूरत है. झोपड़े में रहने वाले लोगों की याद सिर्फ चुनाव के घोषणा पत्र बनाते समय आती है. झुग्ग्यिों में रहने वाले लोग कई प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं. वहां पर सबसे ज्यादा पानी की समस्या होती है. साफ पानी न होने से बीमारियां फैलती हैं. वहां रहने वाले लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि वहां राशन कार्ड भी नहीं बन पाते. सबसे बड़ी समस्या तो शौचालय की होती है. महिलाओं को इंतजार करना पड़ता है या खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. इन समस्याओं का स्थानीय स्तर पर हल ढूंढना होगा. आस-पास के क्षेत्र में अस्पताल, शौचालय और पाठशाला का इंतजाम करवाना चाहिए जिससे बस्ती के लोगों को भी मूलभूत सुविधाएं मिल सकें.
दिल्ली के शकूर बस्ती में रेल मंत्रालय की ओर से चले अतिक्रमण में 500 झुग्गियों को तोड़ दिया गया. यह एक संवेदनशील मामला है, जिस पर राजनैतिक दलों ने अपने तरह से रोटियां सेकीं. लेकिन कोई हल नहीं निकल सका. एक दूसरे पर आरोप लगते रहे. लेकिन बस्ती वालों को त्वरित राहत नहीं मिली. मामले को बढ़ता देख न्यायालय को दखल देना पड़ा. हाई कोर्ट ने रेल मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस सभी को न सिर्फ कड़ी फटकार लगाई बल्कि कानूनी नोटिस भी थमा दिया है. कोर्ट ने घटना को अमानवीय बताते हुए जहां तीनों को नोटिस जारी किया है, वहीं रेलवे से पूछा कि क्या उसने पूर्व की गलतियों से कोई सीख नहीं ली. सख्त लहजे में कहा कि झुग्गियों को तोड़े जाने की घटना ने लोगों का दर्द बढ़ाया है और ऐसा आगे से नहीं किया जाए. कोर्ट ने कहा, ‘यह गंभीर मुद्दा है. यह लोगों की जान का सवाल है.’ रेलवे से कोर्ट ने अपने सभी सर्वे और अब तक कितने घर तोड़े जाने का पूरा रिकॉर्ड पेश करने को कहा है, साथ ही बताने को कहा है कि घर तोड़ने से पहले कोई सर्वे किया भी गया या नहीं. लिहाजा दिल्ली में झुग्गी झोपड़ी तोड़े जाने को लेकर कोर्ट ने रेलवे मंत्रालय की कड़ी निंदा की. कोर्ट की ओर पीडि़तों को राहत पहुंचाने के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार की तमाम एजेंसियों को तुरंत काम करने के आदेश दिए गए हैं.
यह घटना गंभीर है. सरकारों को सजग होना होगा. गांवों में रोजगार के साधन ज्यादा-ज्यादा उपलब्ध कराने होगें जिससे लोग गांव छोड़ने को मजबूर न हों. अगर लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं तो उन्हें स्वास्थ्य शिक्षा और भोजन की जिम्मेदारी सरकारों को तय करनी पड़ेगी. रेलवे किनारे जमीनों पर झुग्गियां न बनने दी जाएं. इस पर सख्त कदम उठाने की जरूरत है. सरकारों को सिर्फ घोषणा पत्र के लिए झुग्गी-झोपड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. बल्कि उन पर ठोस रणनीति बनाकर काम करना होगा जिससे ऐसे बस्ती के लोग अच्छा जीवन यापन कर सकें.
आपकी राय