मिशनरीज़ से बचाकर सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत कर रहे हैं धीरेंद्र शास्त्री, विरोध तो होगा ही!
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की बहुसंख्यक जनता, जो सनातन से विमुख हो रही थी. व मिशनरीज़ के आगोश में आसानी से जाती भी दिख रही थी, उन्हें एकजुट कर सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत करने का काम किया है.
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बुंदेलखंड की धरती भौगोलिक रूप से भले ही उर्वर न हो किंतु ऐतिहासिक सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से हमेशा उर्वर रही है. हर दौर में बुंदेलखंड ने एक नई सनसनी से युक्त नेतृत्व दिया है. वह चाहे महाराजा छत्रसाल हो या लक्ष्मीबाई. वर्तमान में हिंदू धर्म या सनातन आस्था के प्रतीक के रूप में उभर कर आये धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी उन्हीं में से एक हैं. वह बहुत ही सामान्य परिवार से आते हैं. इनके पिता पुरोहित का कार्य करके वा मां दूध बेचकर अपना जीवन यापन करती थीं. इसलिए पढ़ाई लिखाई की उचित व्यवस्था ना होने के कारण व समाज के संघर्षशील निम्न मध्यमवर्ग से संबंधित होने के कारण इन्हें जीवन की दुर्दम जिजीविषा से ज्ञान अर्जित करने का अवसर मिला या यूं कहें कि- "वक्त से पहले मैं हादसों से लड़ा हूं., मैं अपनी उम्र से कई साल बढ़ा हूं"
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम विरासत में अपने दादा रामकृपाल गर्ग से मिला जो मध्यप्रदेश के अपेक्षाकृत पिछड़े जिले छत्तरपुर में स्थित है, जहां वे नित्य दरबार लगाकर समाज के निम्न मध्यमवर्गीय लाचार वर्ग या जिनके लिए दुनिया की बनाई हुई व्यवस्था में समाधान नहीं मिल पाता हैं, यहां उनके पास उम्मीद के साथ आते हैं. अपने विश्वास के अनुसार अपना समाधान लेकर जाते हैं. जहां पर बाबा यह दावा करते हैं कि बाला जी की कृपा से उन्हें भक्त की समस्या का पूर्वानुमान हो जाता है. बस यही वो बिंदु है जहां पर विरोधी बाबा के इस चमत्कार को अन्धविश्वास के नजरिये से देखते हैं. आप आरोप की क्रॉनोलॉजी देखेंगे तो पता चलता है कि अंधविश्वास के विरोध के जरिए गजनवी प्रवृत्ति मंदिरों और मठों पर हमले का पुनरावृत्ति हैं.
अपने दरबार में ;लगातार हिंदुओं को एकजुट कर रहे हैं धीरेंद्र शास्त्री
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने बुंदेलखंड मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की बहुसंख्यक जनता जो सनातन से विमुख हो रही थी व मिशनरीज़ के आगोश में आसानी से जाती भी दिख रही थी, वहां पर सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत करने में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया और असली दर्द विरोधियो का यहीं से शुरू होता है. क्योंकि बाबा ने आगे बढ़ते हुए आक्रामक रवैये को अपनाते हुए लोकप्रिय माध्यम द्वारा सनातन के पक्ष में लगातार उत्तेजक दलीलें दीं हैं, जैसे "तुम हिंदू मेरा साथ दो, तो हम तुम्हें हिंदू राष्ट्र देंगे."
यहां पर यह ध्यान देने योग्य है कि अभी तक कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला है, जो यह कह सके कि बाबा ने उससे चमत्कार के नाम पर ठगी की हो. अचरज है कि यहां पर शिकायत करने वाला एक तीसरा व्यक्ति है. जो न तो रोटी बेलता हैं, न ही रोटी सेकता हैं. मगर पता नहीं क्यों रोटी से लगातार खेलता है. बाबा का दरबार तो निशुल्क रहता ही हैं, साथ ही अभी तक किसी भी भक्त या पूर्व भक्त ने किसी भी तरीके के शोषण या डकैती की रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई है. जबकि अंध उन्मूलन से जुड़े लोग स्वयं कहते हैं कि "हम ईश्वर और धर्म के विरोधी नहीं है, हालांकि हम ईश्वर और धर्म के नाम पर शोषण और डकैती के खिलाफ़ है." तो यहां पर ऐसा कोई मामला दिखता नहीं है. क्योंकि अभी तक बाबा के खिलाफ़ कोई भी शिकायत ठगी और शोषण या डकैती सामने आयी हो. वैसे तो एक पक्ष यह है कि बाबा ने आर्थिक रूप से बागेश्वर धाम के आस पास के क्षेत्रों को मजबूती प्रदान की हैं. क्योंकि लाखो भक्तों की संख्या बागेश्वर धाम आती रहती हैं. जिनसे आसपास के लोगो को रोजगार मिलता हैं जिनमे से लाभान्वितो में अधिकांश समाज के वंचित वर्गो के लोग हैं.
यहां पर यह प्रश्न विचारणीय हैं कि बाबा की बुंदेलखंड में सनातन एकता की छेड़ी मुहिम के कारण या 2024 के लोकसभा के चुनाव से विकास के मुद्दे पर बहस को धर्म की ओर मोड़ने के लिए या गजनवी नीति से सनातन को कमजोर करने के लिए मंदिर मठों व बाबाओं को निशाना बनाना, किस कारण बाबा पर हमले हो रहे, ईश्वर ही जाने ये बहस देश को किस ओर ले जायेगी. क्योंकि हाल ही में श्याम मानव भारत जोड़ो यात्रा में देखा गया था. इस प्रकार इसे भारत जोड़ो यात्रा का प्रयोग भी कहा जा सकता हैं, किंतु धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जैसे बाबाओं के लिए बिना किसी विवेचन के इतना तो कहा जा सकता हैं कि वो भारत के एक संघर्षशील भौगलिक क्षेत्र व सांस्कृतिक रूप से सनातन के क्षेत्र में एक नयी शुरुवात नए कलेवर में कर रहे हैं. वो न तो खुद को भगवान घोषित करते हैं, न ही किसी संगठन का प्रत्यक्ष जुड़ाव हैं, साथ ही उनके समर्थकों में कोई बड़ा संगठन नही हैं बल्कि समाज के आम लोगो का साथ हैं, इसीलिए बाबा इतने मुखर हैं. फिलहाल उनके यहां आने वाली लाचार भक्तों की तरफ से यही कहा जा सकता है, कि जैसा कि दुष्यंत जी के शब्दों- "खुदा नहीं न सही आदमी का ख्वाब सही, कोई हसीन नजारा तो हैं नजर के लिए."
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