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Updated: 09 जून, 2016 03:41 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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कहा जाता है कि शादी की एक उम्र होती है. लेकिन नहीं, उम्र शादी की नहीं बल्कि फर्टिलिटी की होती है. समय पर शादी होना इसीलिए जरूरी समझा जाता है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं की प्रजनन क्षमता कम होने लगती है. ज्यादा उम्र की महिलाओं को मां बनने में ज्यादा परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.

लेकिन आज समय और है. महिलाएं करियर ओरिएंटेड हो गई हैं. उनके लिए करियर बनाना पहली जरूरत है. कुछ समय पहले तक 20-25 की उम्र में लड़कियों की शादी करा दी जाती थी. पर अब 30 की होने पर भी लड़कियां कुंवारी हैं. और ये आम हैं. बायोलॉजिकल क्लॉक के हिसाब से 20 से 30 साल की उम्र मां बनने के लिए सबसे सही मानी जाती है. लेकिन इस उम्र में ज्यादातर महिलाएं अपना करियर संवारने में लगी होती हैं. लिहाजा वो शादी को उतनी अहमियत नहीं दिया करतीं. और शादी हो भी जाए तो काम की व्यस्तताओं के चलते पति-पत्नी परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोचते तक नहीं. लेकिन 30 के बाद ये महिलाएं मां कैसे बनेंगी, उन्हें क्या-क्या परेशानियां आ सकती हैं, उनका इस बात पर जरा भी स्ट्रेस नहीं है. क्योंकि स्ट्रेस लेने के लिए डॉक्टर्स जो हैं. 

साइंस बदल रही है बायोलॉजिकल क्लॉक की टिक-टिक

साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि आज के समय में कुछ भी हो सकता है. निसंतान लोगों के लिए जहां टेस्ट्यूब बेबी, आर्टीफीशियल इन्सैमिनेशन, सैरोगेसी, आईवीएफ जैसी तमाम चीजें वरदान साबित हुईं, वहीं इस तरह की नई टेक्नोलॉजी ने महिलाओं की आत्मनिर्भरता को और मजबूती दी.

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हाल ही में खबर आई कि 1997 में मिस वर्ल्ड चुनी गईं डायना हेडन ने एक पखवाड़ा पहले एक बच्ची को जन्म दिया. खास बात ये रही कि डायना 42 साल की उम्र में मां बनीं और उससे भी खास बात ये थी कि ये बच्ची उस अण्डाणु से पैदा हुई जो डायना ने 8 साल पहले लैब में फ्रीज कराया था. इस नई खोज को 'मेडिकल मार्वल' या चमत्कार कहा जा रहा है. हालांकि इन फ्रोजन एग से बच्चा हो जाए इस बात की कोई गारंटी नहीं होती, इसलिए सिर्फ एक अण्डाणु नहीं बल्कि 6-10 तक फ्रीज कराने होते हैं. डायना ने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब वो कुछ ऐसे देती हैं- 'एक करियर वूमन को अपने बायोलॉजिकल क्लॉक के बारे में नहीं सोचना चाहिए और न ही इस दबाव में शादी करनी चाहिए. मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं उस समय अपने करियर में व्यस्त थी. मैं बच्चा पाने के लिए शादी नहीं करना चाहती थी. मैं खुद को वो विकल्प देना चाहती थी जहां पर किसी चीज का दबाव न हो.'

बेदम लगते हैं ये तर्क

'एग फ्रोजन' तकनीक जरूरतमंदों के लिए भले ही काम की चीज हो लेकिन इसे समझेंगे तो पाएंगे कि ये कितना अजीब है. ये एक तरह की बैंकिंग ही तो है, जिसे आप जमा करा दें और समय आने पर भुना लें. क्या ये भावनाशून्य होना नहीं है? उस फ्रीज में रखे अजन्‍मे बच्‍चे को ये कहने जैसा कि अभी इंतजार करो, मम्‍मी करियर बना रही है.

सिलीकॉन वैली से आने वाली ऐसी खबरों की हमारे देश में आलोचना होती रही है. जहां फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां अपनी महिला कर्मचारियों को अंडे फ्रीज कराने के बदले मोटा अलाउंस देती हैं. वहां उन कंपनियों का स्‍वार्थ है कि वे महिला कर्मचारी प्रेग्‍नेंट होकर छुट्टी न लें. ये हो सकता है कि अमेरिका का सामाजिक ढांचा उन महिला कर्मचारियों को अंडे फ्रीज कराने और भविष्‍य में सुविधाजनक तरीके से मां बनने की गुंजाइश देता हो. लेकिन हमारे देश में, जहां परिवार, सामाजिक मूल्‍य और माता-पिता और बच्‍चों के बीच गहरा रिश्‍ता है, वहां किसी बच्‍चे का जन्‍म प्राथमिकता में नीचे कैसे जा सकता है.

क्‍या यह पेड़-पौधों और कुछ छोटे जानवरों जैसा असंवेदनशील नहीं है. फूलों से परागकण उड़कर जाते हैं, निषेचन होता है और नया बीज बनता है, बिना किसी भावना के. ऐसे ही कई जानवरों की प्रजातियों में मादा अण्डे देकर चली जाती है और उसे अण्डों का कोई मोह नहीं होता, जब तक अण्डों से बच्चे नहीं निकलते नर उनकी देखभाल करता है.

खैर, बच्‍चे को दुनिया में कब लाना है ये पति-पत्‍नी का निजी रिश्‍ता है. कैसे लाना है, ये साइंस बता देगा.

जय हो !

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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