बच्चे पैदा करवाना छोड़ मुद्दों पर बात क्यों नहीं करते?
हिंदू-मुस्लिम हमारा सबसे फेवरेट विषय है. इसकी बहस सबसे मजेदार होती है...है न. अपने मूल समस्याओं को छोड़ हम एक-दूसरे की कमियों पर बात करना खूब जानते हैं.
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हिंदू-मुस्लिम हमारा सबसे फेवरेट विषय है. इसकी बहस सबसे मजेदार होती है...है न. अपने मूल समस्याओं को छोड़ हम एक-दूसरे की कमियों पर बात करना खूब जानते हैं. कभी अकबरुद्दीन ओवैसी केवल 15 मिनट में 100 करोड़ हिंदू लोगों के खात्मे का दावा कर डालते हैं. तो योगी आदित्यनाथ सूर्य नमस्कार का विरोध करने वालों को समुद्र में डूब जाने की सलाह देने लगते हैं.
यही नहीं, हिंदूओं को चार बच्चे पैदा करने और मुस्लिमों के दो से ज्यादा बच्चे पैदा होने पर सजा के प्रावधान तक के ब्रह्म वाक्य बोलते हमारे 'मार्गदर्शक' मिल जाएंगे. लेकिन मुद्दों की बात कोई नहीं करेगा. सच्चाई यह है कि दोनों संप्रादयों की अपनी ऐसी-ऐसी समस्याएं हैं जिन पर बात करना ज्यादा जरूरी है, बजाए इसके कि हम इन सतही बयानों पर बहस करते रह जाएं.
मुस्लिम समाज के सामने चुनौतियां
1. जनगणना-2011 के आंकड़े के अनुसार भारत में 14.2 फीसदी जनसंख्या मुस्लिमों की है. अनुमान है कि साल 2050 तक भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या 311 मिलियन तक पहुंच जाएगी और भारत दुनिया की सबसे बड़ी मुसलमान आबादी वाला देश बन जाएगा. लेकिन आबादी का बढ़ना किसी संप्रदाय के विकास का कोई मानक नहीं होता. यह अपने आप में एक चुनौती है.
2. सच्चर कमेटी-2006 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6 से 14 साल की उम्र के 25 फीसदी मुसलमान बच्चे या तो कभी स्कूल ही नहीं गए या पढ़ाई बीच में छोड़ दी. भारत में पढ़ाई बीच में छोड़ देने की दर मुसलमानों के बीच सबसे ज्यादा है. 20 साल की उम्र से ऊपर की आबादी में मात्र 7 फीसदी स्नातक या डिप्लोमा धारक हैं और 18 साल से ऊपर में तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले मुसलमान केवल एक फीसदी.
3. मुस्लिम समाज में धार्मिक जटिलता भी बड़ी समस्या है. महिलाओं की स्थिति और पढ़ाई-लिखाई के विषयों में भी बड़े बदलाव किए जाने की पहल की जानी चाहिए. ऐसे विषयों और माहौल को खत्म किया जाना भी जरूरी है जो धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने का काम करते हैं.
4. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय न्यायप्रणाली में केवल 7.8 फीसदी मुस्लिम भागीदारी है. एक पहल इस ओर भी होनी चाहिए. यह तभी संभव होगा जब उच्च शिक्षा का दर मुस्लिम युवकों में बढ़ सके. 5. यह सच्चाई है कि हमारे यहां ज्यादातर मुस्लिम अपने छोटे-मोटे व्यवसाय के बल पर ही अपनी जीविका चलाते हैं. बेरोजगारी दर और उनके सामने मौजूद आर्थिक चुनौतियां दिखाते हैं कि मुसलमानों को अगर केवल 'वोट बैंक' कहा जाता रहा है तो वह गलत नहीं है.
हिंदूओं के सामने चुनौती:
1. फलां संप्रदाय की जनसंख्या बढ़ रही है. कुछ लोग इसे राष्ट्रीय समस्या की तरह रख रहे हैं. लेकिन असल समस्याओं पर बात यहां भी कोई नहीं करना चाहता. ताजे आंकड़े के अनुसार भारत में करीब 96 करोड़ हिंदू हैं लेकिन गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा के मुद्दे दोनों संप्रादयों में एक जैसी हैं. हां, हिंदूओं के मामले में स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर है.
2. महिलाओं को लेकर जो नजरिया बीच-बीच में हमारे समाज में दिखता है, वह भी तो इसी का हिस्सा है. मोबाइल से लेकर जींस पहनने पर हमारे हिंदु बहुल गांव-कस्बों में कैसे बवाल मचता रहता है, वह किसी से छिपा नहीं है.
3. धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास से जुड़े मुद्दे भी हैं. इसका साइडिफेक्ट कई बार हमें कथित बाबाओं के कारण देखने को मिल जाता है.
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