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Updated: 29 जुलाई, 2015 06:45 PM
श्रीजीत पनिक्कर
श्रीजीत पनिक्कर
  @sreejith.panickar
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हाल ही में मुंबई में मुस्लिम नेताओं के एक समूह ने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक पूर्व अधिकारी बी. रमन का एक लेख प्रस्तुत किया और भारतीय न्यायपालिका से उनकी इच्छा पूरी किए जाने की मांग की. मुस्लिम नेताओं का "रमन के नजरिए" की पुष्टि करना एक धार्मिक सद्भाव की तरह लग सकता है, हालांकि हकीकत में मामला बिल्कुल अलग है. वे सुप्रीम कोर्ट से याकूब मेमन के लिए दया की मांग कर रहे थे, जिसकी पहचान सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई धमाकों के पीछे असली ताकत और मास्टरमाइंड के रूप में की थी. उन लोगों का तर्क था कि रमन नहीं चाहते कि अदालत मेमन को मौत की सज़ा दे.

हैदराबाद के सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का दावा है कि मेमन को उसके धर्म की वजह से सजा दी जा रही है. उनका कहना बिल्कुल सही है कि जिन अन्य लोगों को मौत की सज़ा दी गई है उन्हें भी फांसी पर लटका देना चाहिए. हालांकि, मेमन का तर्क मौजूदा हालात के लिए मुनासिब नहीं है. कुछ मशहूर हस्तियों का एक समूह इस बहस में कूद गया है, अब वह समूह "जस्टिस फॉर मेमन" के लिए सीधे राष्ट्रपति से गुजारिश कर रहा है.

देशद्रोह के आरोप में बंद व्यक्ति का समर्थन करने वालों के ये सारे क्रियाकलाप एक खतरनाक प्रवृत्ति को जन्म देते नज़र आते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित किसी भी मामले में किसी एक समुदाय की भूमिका नहीं होती. न्यायपालिका ने मेमन को मौत की सजा सुनाते वक्त केवल एक असामाजिक तत्व और आतंकवादी के रूप में देखा था. इसका ताल्लुक उसके रंग, आस्था या धर्म से नहीं था. और न ही सत्यनिष्ठा के साथ सजा सुनाने वाले न्यायाधीशों की विशेषता से इस बात का कोई सहन करने लायक संबंध था.

कोई भी एक आदमी इस बात की पुष्टि या दावा नहीं करता कि मेमन निर्दोष है; वे जानते हैं कि वह पहली बार में ही अपराधों की एक श्रृंखला के लिए प्रतिबद्ध था; और यह सुप्रीम कोर्ट है जिसने मेमन के लिए मौत की सजा को मंजूरी दे दी. उसे हिरासत में दो दशक से ज्यादा का वक्त हो गया है और वह अपने बचाव और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए सभी कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा है. उसने अपने सभी संभव माध्यमों से कोशिश की लेकिन वह अपनी हर एक कोशिश में नाकाम रहा है. इस मामले में धर्म कहां फीचर करता है?

उदाहरण के लिए दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का ही मामला लें. वे एक मुसलमान थे और पूरा राष्ट्र उनके रंग, आस्था या धर्म पर विचार किए बिना एक साथ उनकी मौत पर विलाप कर रहा है. अगर राष्ट्र मुसलमानों के खिलाफ दिल में कुछ रखता, तो उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने में झिझकता. हमने पिछले कुछ घंटों में जो देखा शायद वह आधुनिक समय में पहली बार है. सोशल मीडिया में कलाम पर अभूतपूर्व तारीफों की बौछार की जा रही है. उनकी मौत से हुए नुकसान पर सभी विलाप करने में लगे हैं. इस दुख में देश के सभी हिस्सों के लोग शामिल थे. क्या इसमें एक बार भी कहीं धर्म का मामला आया था?

एक उदाहरण और देखिए - केरल के एक ईसाई मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने एक हिंदू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक मुस्लिम डॉ. कलाम के पार्थिव शरीर को राज्य की और से श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए तिरूवनंतपुरम लाए जाने का अनुरोध किया. चांडी या पूरे भारत ने उनके छोटे कद में सन्निहित केवल दो चीजों को देखा- ज्ञान और विनम्रता. धर्म पर कोई विचार नहीं किया गया.

कलाम और मेमन के मामलों में एक बड़ा अंतर है, एक ने देश के निर्माण के लिए काम किया, जबकि दूसरा इसे खंडहर बनाकर छोड़ना चाहता था. एक धर्मनिरपेक्ष और संघीय राज्य के रूप में हमें आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता दिखानी चाहिए. आपराधिक षड्यंत्र का आरोप, विस्फोटक को सुरक्षित रखने और धन के अवैध उपयोग के आरोप कोई मजाक नहीं है. और कोई भी धार्मिक भावनाओं का हवाला देकर सजा से बचना नहीं चाहिए. जैसा कि कलाम ने कहा था "छोटे लोग धर्म को लड़ने का हथियार बनाते हैं."

अगर सुप्रीम कोर्ट ने मेमन की मौत की सजा को बदल दिया, तो यह हमारी कानूनी प्रणाली में मेरे विश्वास को तोड़ देगा. धार्मिक आधार पर किसी को माफ करने का मामला दो दशकों को निरर्थक बनाकर एक गलत मिसाल कायम करेगा और साथ ही जांच पर हुए खर्च, ट्रायल, आगे की सुनवाई, वक्त और अन्य सभी कोशिशों को बेकार साबित कर देगा. न्यायपालिका जहीन नागरिकों की आंखों में एक जोकर बन कर रह जाएगी. अब मेमन की अपील को अपना समर्थन देने वाले धार्मिक नेता और मशहूर हस्तियां न केवल 257 आत्माओं से लड़ रहे हैं बल्कि उनके परिवारों और सभी भारतीयों के खिलाफ भी हैं.

एक फैसले का उलट जाना कई मोर्चों पर ऐतिहासिक होगा. और बातों के दौरान यह भी एक मजबूत संदेश देगा कि भारत के दरवाजे एक बड़े निवेश के लिए खुले हैं, जो कि आतंकवाद है.

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श्रीजीत पनिक्कर श्रीजीत पनिक्कर @sreejith.panickar

लेखक 'मिशन नेताजी' के संस्थापक सदस्य हैं.

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