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Updated: 05 मई, 2018 01:34 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अगर किसी महिला की डिलिवरी नजदीक हो, और वो ये वीडियो देख ले, तो जाहिर तौर पर वो कभी नहीं चाहेगी कि उसकी डिलिवरी किसी अस्पताल में हो. अगर अस्पताल ऐसे होते हैं तो बेहतर है कि महिलाएं बच्चे घर पर ही जनें.

इस वीडियो ने आज न जाने कितने लोगों को डराया होगा. फिल्मों ने हमें ऑपरेशन थिएटर की जो छवि दी, उसमें हमने देखा कि ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टर्स के मुंह पर मास्क लगा होता है और वो शांत रहकर सिर्फ इशारों में ही बात करते हैं, जिससे मरीज डिस्टर्ब न हो और डॉक्टर खुद भी ऑपरेशन में गंभीरता से ध्यान लगा सके. पर इस वीडियो ने ऑपरेशन थिएटर की चार दीवारी के भीतर का जो नजारा दिखाया उससे लोगों के होश फाख्ता हो गए.

doctor, operation theatreऑपरेशन थिएटर में ही दो डॉक्टर आपस में लड़ने लगे

जोधपुर के उमेद हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर में एक गर्भवती स्त्री का ऑपरेशन करते वक्त दो डॉक्टर आपस में ऐसे भिड़े कि वो ये तक भूल गए कि वो कहां हैं और क्या कर रहे हैं. न तो उन्होंने अपने काम की गरिमा का ख्याल रखा और न ये सोचा कि उनका ऐसा करना मरीज और उसके होने वाले बच्चे पर क्या असर करेगा. वो लड़ते रहे, गाली गलौज करते रहे, एक दूसरे को धमकाते रहे और दूसरे डॉक्टर्स उन्हें समझाते रहे.

देखिए वीडियो-

और इस स्थिति में किसी से भी गलती होना बहुत स्वाभाविक सी बात है, चाहे वो कितना ही अच्छा डॉक्टर क्यों न हो. बताया जा रहा है कि जिस महिला का ऑपरेशन हो रहा था वो तो ठीक थी लेकिन पास ही मौजूद दूसरी महिला के बच्चे को नहीं बचाया जा सका. हालांकि कहा जा रहा है कि बच्चे की मौत का कारण डॉक्टरों की ये लड़ाई नहीं थी, लेकिन सच क्या है वहा मौजूद डॉक्टर्स और नर्स ही जानें. पर हकीकत है कि एक बच्चे की जान उसी ऑपरेशन थिएटर में चली गई, जहां का माहौल हम और आप देख रहे हैं.

हमने अक्सर ऐसी घटनाएं सुनी हैं कि डॉक्टर ने ऑपरेशन के वक्ट पेट में टॉवल छोड़ दी, या फिर कैंची छोड़ दी, जिसकी वजह से मरीजों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी और कइयों को तो जान से भी हाथ धोना पडा. आखिर ये घटनाएं कैसे होती होंगी? शायद इस सवाल का जवाब हमें ये वीडियो दे रहा है. बहरहाल सवाल ये नहीं कि उन्हें गुस्सा क्यों आया, और वो कुत्ता-बिल्ली जैसे लड़ने क्यों लगे. वो भी इंसान हैं, गुस्सा आना या नाराज होना स्वाभिवक है.

लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि आजकल डॉक्टर्स ये भूल रहे हैं कि वो कहां हैं और उन्हें कहां गर्मी से काम लेना है और कहां नर्मी से. अभी पिछले ही हफ्ते दिल्ली से भी एक खबर थी की सेंट स्टीफन हॉस्पिटल में एक 26 साल के डॉक्टर की सर्जिकल ब्लेड से गला रेतकर हत्या कर दी गई थी. हत्यारा डॉक्टर का साथी ही था. एक डॉक्टर ने अस्पताल में ही अपने साथी की हत्या कर दी.

हकीकत तो ये है कि एक डॉक्टर जैसे शख्स से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती. डॉक्टर्स अपनी छवि के विपरीत काम करें तो ये हैरानी की बात तो है ही. इसलिए उन्हें नौकरी से हटाकर या उनका ट्रांसफर कर तात्कालिक सजा तो दी जा सकती है लेकिन इसका हल नहीं निकाला जा सकता. डॉक्टर्स को खुद अपने स्वाभाव के प्रति जिम्मेदार होना होगा, वहीं सजा देने के अलावा बहुत सी और भी चीजें हैं जो डॉक्टर जैसे प्रोफेशनल्स के लिए सरकार को प्लान करने की जरूरत है. डॉक्टरों का दिमाग शांत रहेगा, तभी मरीज अस्पतालों में बेहिचक जाएंगे, मगर डॉक्टर अगर इस तरह से ऑपरेशन थिएटरों में लडते झगड़ते नजर आए तो ये मरीजों के साथ सिर्फ खिलवाड़ होगा.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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