क्या ट्रिपल तलाक का केस हारना चाहते हैं कपिल सिब्बल !
कपिल सिब्बल ने ट्रिपल तलाक के केस में जो दलीलें दी हैं, वे कमाल की हैं. ट्विटर पर जिस तरह से उन्हें लताड़ा गया है वह आश्चर्यजनक नहीं था.
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शुरुआत कपिल सिब्बल के तर्कों से, जो उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश किए :
1. ट्रिपल तलाक आस्था का विषय है और यह पिछले 1400 सालों से अमल में लाया जा रहा है.
2. आस्था का विषय होने की वजह से ट्रिपल तलाक जैसे मामले में संवैधानिक नैतिकता और बराबरी की बात करना ठीक नहीं है.
3. तीन तलाक पर सन् 637 से अमल किया जा रहा है. ऐसे में हम कौन होते हैं यह कहने वाले कि यह गैर-इस्लामिक है.
4. यदि मेरी आस्था ये कहती है कि राम अयोध्या में पैदा हुए थे, तो यह मेरी आस्था है और इससे संवैधानिक नैतिकता का कोई लेना-देना नहीं है.
5. तलाक और उत्तराधिकार के हिंदू कानून ट्रिपल तलाक से ज्यादा पिछड़े हुए हैं.
चीफ जस्टिस जेएस केहर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ट्रिपल तलाक के मामले में सुनवाई कर रही है. मंगलवार को जैसे ही सिब्बल के तर्कों के बारे में जानकारी ट्विटर पर पहुंची, लोगों ने उसे उसी तेजी के साथ काट दिया.
किसी ने उनको बताया कि 20 से ज्यादा मुस्लिम देशों में ट्रिपल तलाक को बैन कर दिया गया है.
किसी ने उनको इस्लामिक कैलिफेट के बारे में बताया, जो 1400 साल पुरानी व्यवस्था थी. और अब ISIS उसे अमल में लाना चाहता है.
तीन तलाक जैसे बेहद संवेदनशील मामले में देश के दो धुरंधर वकील राम जेठमलानी और कपिल सिब्बल आमने सामने हैं.जस्टिस केहर, कुरियन जोसेफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच 12 मई को कह चुकी है कि वह इस मामले में मुस्लिम समाज के बहुविवाह और निकाह हलाला पर चर्चा नहीं करेगी. यदि हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ट्रिपल तलाक मुसलमानों का धार्मिक मौलिक अधिकार है तो वे इस बहस में आगे नहीं बढ़ेंगे.
केस कपिल सिब्बल का, सियासत कांग्रेस की
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल एक के बाद एक तर्क दे रहे हैं, जिससे ट्रिपल तलाक की व्यवस्था में कोई छेड़छाड़ न हो. यह दलील भले ही भारत में इस्लामिक मामलों पर सबसे बड़ा दखल रखने वाले पर्सनल लॉ बोर्ड की हों, लेकिन इसे सियासी चश्मे से भी देखा जा रहा है.
कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए कहा जा रहा है कि वह पहले से ही कट्टरपंथियों और मौलवियों को अपने भरोसे में रखना चाहती है. ताकि मुस्लिम समाज का इस्तेमाल वोट बैंक के रूप में किया जा सके. ऐसे में कपिल सिबल का ट्रिपल तलाक के समर्थन में खड़ा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं.
इतना कहा गया कि हो सकता है कपिल सिबल इस मामले में कोई फीस न लें. क्योंकि वह एक तरह से पार्टी का ही काम कर रहे हैं.
दरअसल, 1985 के चर्चित शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के बाद पीडि़ता को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में इस फैसले को पलट दिया था.
ऐसे में लोगों का नजरिया यह भी है कि कपिल सिबल मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से खड़े हैं, लेकिन वे फायदा अपनी पार्टी को पहुंचाना चाहते हैं. मुस्लिम महिलाएं नाराज न हों, इसके लिए कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता टीवी डिबेट में सधी हुई भाषा में कोर्ट के फैसले से सहमति जताने की बात करते हैं.खैर, सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई आगे भी जारी रहेगी और हमें शायद कपिल सिब्बल से ऐसे 'शानदार' तर्क और भी सुनने को मिलें.
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