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Updated: 16 दिसम्बर, 2016 05:16 PM
संजय शेफर्ड
संजय शेफर्ड
  @shepherdsanjaya
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लेखक संजय शेफर्ड 1000 रुपये लेकर साइकिल से उत्तराखंड की साहित्य यात्रा पर निकले हुए हैं. दिन में यात्रा करते हैं और रातें किसी गांव- देहात या घाटी में खुले आसमान के नीचे टेंट में बिताते हैं. आज उस एक रात का अनुभव साझा कर रहे हैं, जो उन्होंने दुनिया की सबसे भूतहा जगहों में से एक, माउंट एबट में बिताई थी.

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माउंट एबट सबसे भूतहा जगह के नाम से प्रसिद्ध है

''मेरी साइकिल यात्रा का 42वां दिन था. मैं गढ़वाल के सभी सात जिलों से होते हुए कुमांऊ मंडल में दाखिल हुआ था. इस मंडल में अल्मोड़ा नैनीताल बागेश्वर होते हुए पिथौरागढ़ पहुंचा था. तीन दिन तक पिथौरागढ़ घूमने के बाद मुझे चंपावत निकलना था. पता चला कि घाट तक ढ़लान है लेकिन उसके बाद मरोड़खान तक पहुंचने के लिए तक़रीबन 6 किमी की खड़ी चढ़ाई पर साइकिल चलानी होगी. मैं पिथौरागढ़ से सुबह सुबह निकल गया. पहाड़ों पर साइकिल की सवारी मुश्किल होती है. आखिरकार मारोड़खान पहुंचते पहुंचते शाम ढल आई और हाथ पैर जवाब देने लगे तो कुछ लोगों से ठहरने की जगह के बारे में पूछा. बातों बातों में एक ऐसी जगह के बारे में पता चला जहां मुक्ति कोठरी स्थित है. वही मुक्ति कोठरी जहां एक डॉक्टर मुर्दों को मुक्ति दिलाता था.

थोड़ी और जांच पड़ताल शुरू किया तो पता चला कि चम्पावत जिले से तकरीबन 15 किमी की दूरी पर स्थित यह एक छोटे से कस्बे की कहानी है, जिसे एबट माउन्ट के नाम से जाना जाता है. एबट माउन्ट को ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने बसाया था और दुनिया भर में इस जगह को इसकी खूबसूरती के लिए जाना जाता था. यह कुमाऊं हिमालय की प्रकृति की गोद में बसा हुआ विश्व की सबसे लम्बी ऊंची चौड़ी पर्वत श्रृंखला कुमांऊ की प्रकृति की गोद में है. हिमालय का दृश्य अक्टूबर से जून तक देखने को मिलता है. पश्चिम से पूर्व की ओर की तमाम चोटियां देखने को मिलती हैं. पीरपंजाल, कश्मीर एवं हिमांचल, बंदरपूंछ, चौखम्भा, नीलकण्ठ, नंदा घुट्टी, त्रिशूल, मक्टोली, नंदा देवी, नंदा कोट एवं पंचाचूली आदि को बहुत ही आसानी से देखा जा सकता है. यह सभी चोटियां मध्य हिमालय की हैं.

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 चम्पावत जिले से तकरीबन 15 किमी की दूरी पर स्थित है एबट माउन्ट

एबट माउन्ट के शीर्ष पर एक खुला मैदान है. और इसके ढलान पर एक यूरोपीय बंगला जो उद्यान एवं बगीचों के साथ है. इसमें से एबट माउन्ट कॉटेज काफी उल्लेखनीय है. साथ ही इस जगह से जुड़े कई भ्रामक तथ्य एवं भुतही कहानियां भी खासी प्रचलित हैं. उसी में से एक कहानी ऐबी नामक बंगले में होने वाली भूतों की घटनाओं पर आधारित है.

इतना कुछ जान लेने के बाद किसी भी सामान्य इंसान की दिलचस्पी का बढ़ना लाज़मी ही था. फिर मुझ घुमक्कड़ की क्या मजाल. मैंने भी तय किया कि इस रात उधर ही कहीं अपना टेंट लगाते हैं. और उस चीज को महसूस करके देखते हैं जिसके बारे में लोगों ने इतना कुछ बता डाला था. लेकिन आसपास के लोगों को यह बात रास नहीं आई. उनके लिए यह पागलपन से भरा एक खतरनाक फैसला था. इसलिए मुझे लोगों ने अगली सुबह ले चलने की बात करके अपने घर में रोक लिया.

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 इस जगह को सबसे भूतहा जगह कहा जाता है

मैंने थोड़ा और जानकारी इकट्ठा किया तो पता चला कि यह माउंट समुद्र के स्तर से ऊपर 6500 की ऊंचाई पर स्थित एक खूबसूरत मनमोहक स्थान है. यह एक शांत स्वास्थ्यप्रद और शांत वातावरण प्रदान करता है. हिमालय की चोटियों को यहां से बेहद ही आसानी से देखा जा सकता है. यहां से सबसे नजदीक शहर लोहाघाट है, जो करीब सात किमी की दूरी पर स्थित है.

इसे एबट माउंट जॉन हेरॉल्ड एबॉट द्वारा स्थापित किया गया इसीलिए इसका नाम माउंट एबट रखा गया. वर्तमान में इस जगह पर उस समय काल की तक़रीबन 16 पुरानी हवेलियां हैं. खूबसूरत मगर अपनी अंतिम दिन गिनता एक चर्च है जिसके निचले हिस्से पर एक कब्रिस्तान बना है जिसमें तक़रीबन दस-बारह कब्रें हैं. इसके आलावा एक हॉस्पिटल और उस हॉस्पिटल से थोड़ी सी दूरी पर बना एक और घर जिसे लोग मुक्ति घर अथवा मुक्ति कोठरी के नाम से जाना जाता है.

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 चर्च के निचले हिस्से पर एक कब्रिस्तान बना है जिसमें तक़रीबन दस-बारह कब्रें हैं

ऐबी नामक बंगले के बारे में पता करने पर पता चला कि यह 1900 के दशक में उसके मालिक के नाम पर रखा गया था. इस ऐबी बंगले को बाद में एक हॉस्पिटल में बदला गया जहां पर एक डॉक्टर जिसका नाम मौरिस बताया जाता है. लोगों की मौत को पहले से ही बता देता था, उसके बाद वह उस मरीज़ को उस हॉस्पिटल के पास स्थित ‘मुक्ति घर’ में भेज देता था और अगली सुबह ही उस मरीज़ की मौत हो जाती थी.

अभी भी भ्रम है कि डॉक्टर मौरिस मरीजों को मारता था या वह प्राकृतिक रूप से मरते थे. लेकिन इस बात को लेकर खासकर आसपास के लोगों में कोई भ्रम नहीं था कि यह पूरा क्षेत्र भूत-प्रेत और मृत आत्माओं का गढ़ है. लोग बताते हैं कि ऐबी पूरे क्षेत्र का पहला घर था जो कि उस पहाड़ी पर प्रेतों का गढ़ माना गया. यहां पर कई तरह की भूत की कहानियां प्रचलित हैं, जिसमें लोगों के अनुसार यहां भूत कि ढांग पर दो आत्माओं को रात को कई बार लोगों ने टहलते हुए देखा है.

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  लोगों के अनुसार यह पूरा क्षेत्र भूत-प्रेत और मृत आत्माओं का गढ़ है

सच कहूं तो यह संपूर्ण मामला ही मेरे लिए बहुत ही दिलचस्प लगा. रात में सोया कम बल्कि इस बात का इंतजार ज्यादा किया कि अगली सुबह माउन्ट एबट जाना है. आखिरकार सुबह हुई तो साइकिल निकाली, कैमरा बैग उठाया और चल पड़ा. रास्ता घने जंगलों के होने के कारण सचमुच डरावना लग रहा था. और जैसे- जैसे सफर आगे बढ़ता गया यह डर और भी गहराता गया.

लेकिन एक मोड़ पर पहुंचने के बाद सबकुछ सामान्य सा लगने लगा. किसी पर्यटन स्थल की तरह से लोगों की आती जाती इक्की- दुक्की भीड़, खूबसूरती को निहारती उनकी आंखें, और पार्क में खेलते तमाम बच्चे दिखे तो एक पल के लिए हंसी सी आई.

मन में सवाल आया कि क्या यही दुनिया की मोस्ट हॉन्टेड जगह है. फिर फोटोग्राफी में लग गया. पहले खूबसूरत वादियों को कैमरे में उतरा फिर कुमांऊ मंडल के द्वारा बनाये जा रहे खूबसूरत कॉटेज को और उसके बाद नीचे आया तो जीर्ण-शीर्ण अवस्था में वह चर्च भी दिखा जिसे 1942 में एक अंग्रेज ने अपनी पत्नी की याद में बनाया था. फिर निगाह कुछ कब्रों पर पड़ी तो पता चला कि यह वही कब्रिस्तान है. लेकिन इतने से जी नहीं भरा तो नज़र इधर उधर दौड़ाई कि कोई मजेदार चीज दिखे. हुआ भी ऐसा ही.

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 खूबसूरत वादियों के बीच है जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक चर्च

जब मैं थोड़ा और नीचे उतरा तो एक कॉटेज दिखा और वहां पहुंचने पर मेरी मुलाकात एंथोनी नामक एक बेहद ही मजेदार व्यक्ति से हुई जो तक़रीबन तीन साल से यहां पर रहकर बच्चों को फ्री में संगीत सिखाता था. एंथोनी ने बताया कि यह कॉटेज उसके एक दोस्त क्रिस्टोफर का है जो यहां कभी कभी ही आता है. इसी दौरान मेरी मुलाकात दो और इंट्रेस्टिंग व्यक्तियों से हुई जो तक़रीबन दो महिने पहले इस जगह पर घूमने आए थे और जगह इतनी अच्छी लगी की वापस ही नहीं गए.

मैने उन्हें अपने बारे में बताया कि मैं एक लेखक हूं और तक़रीबन 42 दिन से ऊत्तराखंड की साइकिल यात्रा पर निकला हूं तो उन्होंने बेहद ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया और शुभकामनाएं दी. फिर हमारी बातें होने लगी और कुछ समय में ही हम सब एक अच्छे दोस्त बन गए तो हमने मुक्ति कोठरी और उस हॉस्पिटल की बात छेड़ी तो उन लोगों ने डॉक्टर मौरिस के बारे में बताया तथा मजाक मजाक में ही उससे रात दो बजे मिलवाने की बात कही.

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 मुक्ति घर या मुक्ति कोठरी, जहां डॉक्टर मौरिस लोगों को मुक्ति दिलाता था

उन्होंने बताया कि 1915 के आसपास यह हॉस्पिटल भारत के जाने माने हॉस्पिटल्स में से एक था और यहां पर देश भर से लोग अपना इलाज़ कराने के लिए आते थे. डॉक्टर मौरिस अपने समय के जाने माने डॉक्टर थे. वह लोगों का इलाज करते थे और नब्ज देखकर उसका भविष्य बता देते थे. इसलिए लोगों का विश्वास उन पर बढ़ता गया. अगर वह किसी मरीज को देखकर कह देते थे कि यह दो फिन में मर जायेगा तो वह सच में मर जाता था. लोगों का विश्वास इतना प्रगाढ़ हो गया था कि लोग डॉ मौरिस को भगवान मानने लगे.

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अगर डॉ मौरिस बता देते कि यह मरीज दो दिन में मर जायेगा तो उसका मरना तय मान लिया जाता था. ऐसे में लोग मरीजों को नीचे बने एक घर में छोड़कर जाने लगे जिसे मुक्ति घर या फिर मुक्ति कोठरी कहा जाता था. ज्यादातर मरीज तो सचमुच मर जाते थे लेकिन कुछ बच जाते थे. लेकिन उनका कोई वहां सगा संबंधी नहीं होता था जो उसे घर ले जाए.

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 माना जाता है कि उन मृत लोगों की आत्माएं आज भी हास्पिटल और मुक्ति कोठरी के आसपास घूमती रहती हैं

ऐसे में डॉ मौरिस उन जिन्दा लोगों जिनकी किसी को जरुरत नहीं थी उन पर रिसर्च करने लगे. ऐसा बताया जाता है कि डॉ मौरिस उन जिन्दा इंसानों के ब्रेन को खोल देते थे और इस बात को पता लगाने की कोशिश करते थे कि एक जिन्दा व्यक्ति और मृत व्यक्ति के दिमाग में क्या अंतर आता है. इस तरह से वह जिन्दा व्यक्ति को इंजेक्शन देकर जिन्दा और मृत की बीच की अवस्था में रखते थे.

लेकिन दिल्ली के एक डॉक्टर ने इस बात का पर्दाफाश कर दिया और वो आधा जिन्दा और आधे मरे इंसानों ने बीच में ही दम तोड़ दिया. और उनका शोध आगे नहीं बढ़ सका. उनके मरने के बाद इस जगह को बंद कर दिया गया. ऐसा माना जाता है कि उन सबकी आत्माएं आज भी उस हास्पिटल और मुक्ति कोठरी के आसपास घूमती रहती हैं. इसलिए एबट माउन्ट को भूतों का गढ़ माना जाता है.

‘क्या सचमुच आप लोग मुझे डॉ मौरिस से मिलवाने वाले हैं?’ मैंने उनसे उत्सुकतावश पूछा. हम लोग तो दसियों बार रात के दो दो बजे जाकर मिलने की कोशिश करते रहे हैं पर हम सबसे तो कोई नहीं मिला. आज रात आपके साथ चल रहे हैं तो शायद डॉ मौरिस आपकी आवाज सुनकर बाहर निकल आएं.

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 तक़रीबन तीन घंटे तक हॉस्पिटल और मुक्ति कोठरी के बीच घूमते रहे 

रात के 1 बजे उन लोगों ने एक छोटे से झोले में एक रम की बोतल, कोल्डड्रिंक और नमकीन के कुछ पैकेट डाले और रात के अंधेरे में जंगल झाड़ियों से होते हुए उस भूतिया हॉस्पिटल की तरफ निकल गए, जिसे भारत की सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है. पहले ही निर्णय हो चुका था कि पहले हॉस्पिटल चलकर डॉ मौरिस से मिलेंगे फिर उस मुक्ति कोठरी जाकर उन मुर्दों से जिन्हें डॉ मौरिस मुक्ति दिलाता था. वहां जाने के रास्ते पर कांटे की बाड़ लगी थी और मुख्य गेट 1915 से ही बंद था. लेकिन फिर भी वहां जाने के लिए कई रास्ते थे. हम लोग होस्पिटल पहुंचे और तक़रीबन तीन घंटे तक हॉस्पिटल और मुक्ति कोठरी के बीच घूमते रहे और जब सुबह होने को हुई तो वापस अपने कॉटेज में लौट आये.

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सच कहूं तो न कोई भूत दिखा, ना ही कोई प्रेत आत्मा टकराई. उन दोस्तों ने बताया कि ‘संजय जी यहां ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपने यूट्यूब पर देखा या इंटरनेट पर पढ़ा है. आजतक यहां पर कोई मामूली घटना तक नहीं हुई है, लेकिन 100-200 साल पुराने बंगलों का होना ही एक तरह से रहस्यमयी मान लिया जाता है. यहां तो सौ साल से भी पुराने चर्च, कब्रिस्तान, हॉस्पिटल और मुक्ति कोठरी से जुड़ी कहानियां हैं. और रही सही कसर फियर फाइल्स जैसे भूत प्रेत की कहानियां गढ़ने वाले टेलीविजनों ने पूरी कर दी हैं. मौका मिले तो आप लोगों को इस जगह की सच्चाई बताना.

उन पर विश्वास नहीं करने की मेरे पास कोई वजह नहीं थी. मैं एक दिन और रूककर उन खूबसूरत वादियों के बीच फैली शांति और सकून भरे वातावरण में बिताया और फिर आने का वादा करके अगली सुबह अपनी मंजिल की तरफ प्रस्थान कर गया.''

लेखक

संजय शेफर्ड संजय शेफर्ड @shepherdsanjaya

स्वतंत्र लेखन

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