वो जन्मी तो पिता तालाब में कूद गया, बचा लिया गया तो कहता है उसे जान से मार दूंगा
ये संयोग ही है कि हम एक बच्ची के संघर्ष की कहानी पर नवरात्रि के दौरान ही चर्चा कर रहे हैं. क्या करें, वो जन्मी ही है इस पवित्र त्योहार के दौरान. लेकिन, उस अबोध को क्या पता कि उसका इस दुनिया में आना सबसे बड़ा अपराध माना जा रहा है. बिहार के बगहा में जन्मी इस बच्ची से जुड़े चार किरदार और हैं. एक उसका पिता, मां, दादी और तीन बहनें.
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ये संयोग ही है कि हम एक बच्ची के संघर्ष की कहानी पर नवरात्रि के दौरान ही चर्चा कर रहे हैं. क्या करें, वो जन्मी ही है इस पवित्र त्योहार के दौरान. लेकिन, उस अबोध को क्या पता कि उसका इस दुनिया में आना सबसे बड़ा अपराध माना जा रहा है. बिहार के बगहा में जन्मी इस बच्ची से जुड़े चार किरदार और हैं. एक उसका पिता, मां, दादी और बहनें. इन सभी किरदारों की भूमिका ने समाज की एक भयानक सच्चाई को सामने ला दिया है, जिससे यह समझा जा सकता है कि एक बच्ची के लिए इस दुनियां में जगह बना पाने का संघर्ष जन्म के साथ ही शुरू हो जाता है. एक अबोध बच्ची को कथित होशवालों के कारण किन हालातों से गुजरना पड़ता है, आइए समझते हैं-
बच्ची का पिता
बच्ची के पिता प्रदीप सहनी को पता चलता है कि उनकी पत्नी रीता देवी ने बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया है. इतना सुनते ही उनके होश उड़ जाते हैं क्योंकि यह उनकी चौथी बेटी है. वे इतना हताश हो जाते हैं कि अपनी जान देने के लिए तालाब में कूद जाते हैं. गांव वालों जैसे-तैजे उनकी जान बचाते हैं लेकिन जब वे बच जाते हैं तो यह कहते हैं कि अगर वह बच्ची घर आई तो मैं उसे जान से मार दूंगा. उन्हें लगता है कि उनके पर एक और खर्चा बढ़ गया. हालांकि खर्चा तो बेटे के पैदा होने पर भी बढ़ता. उनके पास पैसे हों या न हों वे बेटे का खर्चा उठाने के लिए तैयार हैं लेकिन बेटी जन्म लेते ही बोझ बन गई.
बेटे की चाहत में लोगों की कई बेटियां पैदा हो जाती हैं
बच्ची को पता भी नहीं है कि उसके पैदा होने पर घर का मौहाल इतना खराब हो गया है. जबकि ऐसा तो है नहीं कि बिना पिता के चाहे ही बेटी पैदा हो गई, कितनी अजीब बात है कि एक पिता को अपनी ही संतान दुश्मन लगने लगी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक बेटी है. पिता को लगता होगा कि बेटा पैदा होने से समाज में इज्जत बढ़ जाएगी और हमारे घर का चिराग मिल जाएगा जो खानदान का नाम रोशन करेगा. जब ऐसा नहीं हुआ तो वह अपनी बेटी से नफरत करने लगा.
बच्ची की मां
रीता देवी एक तरफ प्रसव पीड़ा सहती हैं तो दूसरी तरफ बच्ची पैदा होने पर परिवार की उलाहना. मानो जैसे बच्ची को उस अकेले ने ही पैदा किया हो. पति के अंश के बिना तो बच्ची का जन्म लेना ही संभव नहीं था लेकिन उसे जन्म देने की सजा मां को मिली जैसे उसने कोई पाप कर दिया हो. बेटी को जन्म देने के बाद रीता 12 घंटों तक अस्पताल में ही पड़ी रही और पति के आने की राह देखती रही. उसे पता चला कि पति जान देने के लिए तालाब में कूद गया है. सोचिए जब यह बात पत्नी को पता चली होगी तो उसपर क्या बीती होगी? वह कितना डरी होगी? उसे क्या महसूस हुआ होगा फिर जब उसने अपनी बेटी का चेहरा देखा होगा तो उसे कैसा लगा होगा? मन में यह ख्याल तो आया ही होगा कि काश बेटा होता...
पति जब बार-बार बेटा-बेटा बोलता होगा तो उसे भी लगा होगा कि इस बार बेटा ही होना चाहिए लेकिन मां तो आखिर मां होती है. आखिरकार जब बच्ची को घर ले जाने के लिए पति नहीं माना तो रीता ने भरोसा दिलाया कि वह बच्ची का भरण पोषण खुद करेगी. उसने खुद ही बच्ची की जिम्मेदारी उठाने की बात कही तब जाकर वह बच्ची को लेकर घर आ सकी. वह ऐसी मां है जिसकी पहले से ही तीन बेटियां हैं.
रीता का बच्ची का पालन-पोषण खुद करने की बात कहना इस बात का सबूत है कि बेटे के जन्म के लिए पति ने उसपर दवाब बनाया होगा. उसके दिमाग में पति ने डाला होगा कि उसे बेटा चाहिए. ऐसा तो है नहीं कि उन्हें संतान सुख नहीं मिला था. उनकी तो पहले से ही ती-तीन बेटियां हैं. ऐसे में चौथी संतान के लिए प्रयास सिर्फ बेटा पाने की लालच है और कुछ नहीं. होने को तो यह भी हो सकता है बच्ची का पिता बेटे की चाह में फिर से पत्नी पर बच्चा पैदा करने के लिए दबाव बनाए.
बच्ची की दादी
बच्ची के जन्म के बाद जब ये तमाम बातें हो रही थीं तब दादी ने खुद एक महिला होकर भी अपने बेटे का ही साथ दिया बहू का नहीं. दादी शायद अपने बेटे पर ही आश्रित होंगी. वैसे भी जब भी बहू और बेटे में से किसी एक को चुनने की बात होती है तो मां अपनी संतान को ही चुनती है. जबकि दादी एक महिला हैं जिन्हें पता है कि एक बच्चे को जन्म देने पर कितनी पीड़ा होती है और बेटे या बेटी का जन्म मां के हाथ में नहीं होता. एक महिला होकर उन्हें दूसरी महिला का साथ देना चाहिए था लेकिन वह खुद बच्ची को घर नहीं ले जाना चाहती थीं, उन्हें भी पोता ही चाहिए था.
बच्ची की बहनेंबच्ची की तीन बड़ी बहनें खुद अपराधबोध में जी रही होंगी जबकि इन सब में उनकी कोई गलती भी नहीं है. वे घर की इन लड़ाई-झगड़ों के बीच किन हालातों से गुजर रही होगीं? जब उन्हें पता चला होगा कि पिता ने जान देने की कोशिश की, क्योंकि उनका भाई नहीं बहन हुई. उन्हें लगता होगा कि यह हमरी गलती है. उन्हें लगता होगा कि बेटी होकर हमने कोई पाप कर दिया है. उनके मन का यह गिल्ट अब कैसे दूर होगा? उन्हें उस घर में हर रोज इस बात का एहसास दिलवाया जाएगा कि तुम बेटी हो बेटा नहीं.
एक बात और जिस बेटी को लेकर आज उसके पिता इतना नाराज हैं कि उसे जान से मार देना चाहता है, कल को अगर वही बेटी गोल्ड मेडल लेकर आए तो? कौन जानता है कि बच्ची भविष्य में क्या करने वाली है? हो सकता है कि वह बड़ी होकर कुछ ऐसा काम करे जिससे उसके माता-पिता का नाम रोशन हो जाए. तब पिता इस दिन को यादकर खुद को कोसेंगे और कहेंगे कि मैं कितना गलत था. यह समझना इतना मुश्किल तो नहीं है कि खानदान का नाम सिर्फ बेटे नहीं बेटियां भी रोशन करती हैं. बेटियां भी घर का चिराग होती हैं और वे अपने माता-पिता का ख्याल भी रख सकती हैं. इसके बावजूद भी लोग बेटे की चाह में आखिर क्यों मरे जा रहे हैं???
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