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Updated: 29 मार्च, 2022 03:36 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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पंडित (Priest) सुनते ही हम पुरुषों के बारे में सोचते हैं, लेकिन मुझे खुशी है कि मैं उस पूर्वाग्रह को तोड़ रही हूं...यह श्रुति शास्त्री का कहना है जो उत्तर प्रदेश के जौनपुर की महिला पुजारी (Female pries) हैं. श्रुति अब तक 75 से अधिक शादियां करवा चुकी हैं. आज वे पूरे भारत में पूजा, हवन और विवाह करवाकर लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ रही हैं.

श्रुति ने अपनी कहानी 'द लॉजिकल इंडियन' पर शेयर की है. किसी महिला का पंडित बनना हमारे समाज में आसान नहीं है. हवन करने पर श्रुति से भी लोगों ने कहा कि अब औरतें हवन करेंगी?

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श्रुति ने बताया है कि 'मैं 6वीं कक्षा में थी तो पापा ने मुझे गुरुकुल भेज दिया. मैंने अपने जीवन के दस वर्ष वहीं बिताए. मैंने अब तक जो कुछ भी सीखा है, वह वहां मिली शिक्षा के कारण है. मेरे पिता हमेशा कहते हैं कि महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं और मैं जीवन भर इसी का पालन करती रही हूं. गुरुकुल की दिनचर्या अन्य स्कूलों से बिल्कुल अलग हैं. हम सुबह 4 बजे उठते, ध्यान करते, अपने मंत्र और संस्कृत भाषा सीखते.

दरअसल, संस्कृत न बोलने पर हमें सजा मिलती थी. मेरे पापा ही थे जिन्होंने मुझे पंडित बनने के लिए प्रोत्साहित किया. मैंने गृह प्रवेश पूजा और हवन करने के साथ शुरुआत की. कुछ अनुभव के बाद, मैंने शादियों करनी शुरु कर दी, लेकिन सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा.

अब औरतें हवन करेंगी?

एक बार एक महिला मेरे पास आई, उसने पुरुष पंडित के लिए पूछा जो वहां मौजूद नहीं था. मैंने उससे कहा कि अगर वो चाहे तो मैं आकर सारी रस्में पूरी कर सकती हूं. इस पर उसने कहा, "अब औरतें हवन करेंगी? पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ लेकिन फिर मुझे इसकी आदत हो गई. मैंने खुद से कहा कि यह वह समाज है जिसमें हम रहते हैं, और लोगों से इस तरह का रिएक्शन सामान्य है. जो समुदाय में आम नहीं है, लोग उसके बारे में सवाल करते हैं. इसलिए मैंने इन चुनौतियों के लिए खुद को तैयार किया.

मैंने उस महिला से कहा कि मैं एक पुरुष पंडित की व्यवस्था कर सकती हूं, लेकिन अगर एक महिला ही सभी पूजा-पाठ करा सकती है तो इसमें क्या गलत है? मेरे लिए यह शुरुआत थी, जिसके बाद मैं आगे बढ़ती गई.

हालांकि अब लोगों ने समर्थन देना शुरू कर दिया है. हाल ही में, एक दूल्हे ने कहा कि वह मुझे गले लगाना चाहता है क्योंकि, मैंने उसकी शादी कितनी खूबसूरती से करवाई. शुक्र है कि जब से मैंने एक पंडित के रूप में अपनी यात्रा शुरु की है, तब से मुझे नकारात्मक से अधिक सकारात्मक टिप्पणियां मिली हैं.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि मैं अपना शत-प्रतिशत देने की कोशिश करती हूं. मैं फालूत के कामों में अपना समय बर्बाद नहीं करती. लोग इसे नोटिस करते हैं और बदले में मुझे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है. इसके अलावा अब लोगों में जागरुकता भी बढ़ी है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.

पुरुष पुजारियों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपनी महिला पुजारियों को प्रोत्साहित करें और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें. मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं जब मैं पुरुष प्रधान क्षेत्रों में मेरे जैसी और महिलाओं को पितृसत्ता को तोड़ते हुए देखूंगी.

अच्छी बात यह है कि अब लोग भी महिला पुजारी को स्वीकार करने लगे हैं. सबसे पहले हमारी नजर दिया मिर्जा की शादी में आई महिला पुजारी पर पड़ी. तब लगा यह बॉलीवुड में संभव है लेकिन अब जौनपुर जैसी जगह की महिला पंडित श्रुति शास्त्री के बारे में जानकर सच में सकारात्म महसूस हो रहा है. धीरे ही सही, बदलाव होते रहना चाहिए, क्यों?

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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