स्मार्ट सिटी से पहले इन महानगरों की स्थिति तो सुधरे
बीएमसी हर मानसून से पहले यह दावा करती जरूर नजर आती है इस बार मुंबई वासियों को मानसून से डरने की जरुरत नहीं है. मगर कुछ ही दिनों की बारिश में बीएमसी के दावों की पोल खुल जाती है.
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पिछले तीन दिनों से मुंबई में बारिश आफत बन कर बरस रही है, बारिश के कारण मुंबई का जनजीवन अस्तव्यस्त है. मुंबई की सडकों पर जलजमाव के कारण सडकों पर बाढ़ की स्थिति है, जगह जगह लोगों की गाड़ियां बंद पड़ी है, मुंबई की लाइफलाइन मानी जाने वाली लोकल ट्रेन ठप पड़ी हैं. मुंबई में स्कूलों में छुट्टी कर दी गयी हैं, जबकि कई जगह लोग अपने ऑफिसों में ही फंस गए हैं.
यह स्थिति उस जगह की है जिसे भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाता है और जिसका नगर निगम को एशिया का सबसे अमीर नगर निगम है. बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) का सालाना बजट तो कई राज्यों के बजट के बराबर है. 2017-18 में बीएमसी का बजट 25,141 करोड़ रखा गया है, यह बजट तब है जब पिछले साल की अपेक्षा इसमें 30 फीसदी से अधिक की कटौती की गयी है.
हालांकि यह कोई पहली दफा नहीं है जब बारिश मुंबई के लिए आफत बनी हो, कमोबेश लगभग हर साल ही मानसून में मुंबई का यही हश्र होता है. हालांकि बीएमसी हर मानसून से पहले यह दावा करती जरूर नजर आती है इस बार मुंबई वासियों को मानसून से डरने की जरुरत नहीं है. मगर कुछ ही दिनों की बारिश में बीएमसी के दावों की पोल खुल जाती है. कई सालों के बाद भी और रुपयों की कोई कमी न होने के बावजूद अभी भी बीएमसी पुराने तरीकों से ही मानसून से निपटने के उपाए बनाती है. हाई कोर्ट से फटकार के बावजूद मुंबई के पॉटहोल की समस्या यथावत ही बनी हुई है.
अभी कुछ ही दिनों पहले बारिश के वजह से भारत के इलेक्ट्रॉनिक सिटी बैंगलोर की स्थिति भी बदहाल थी. बारिश के बाद बैंगलोर के बेलंदूर लेक से जहरीला झाग शहर के सडकों पर और लोगों के घरों तक में घुस गया था. यह झाग जहरीला होने के साथ ही कैंसर जैसी बीमारी का भी एक कारण माना जाता है. हालांकि बैंगलोर में ऐसी समस्या पहले भी होती रही है, मगर उसके समाधान का कोई ठोस और कारगर उपाय अभी तक वहां के शासन प्रशासन द्वारा नहीं किया गया है.
वहीं अगर बात करें दिल्ली की तो दिल्ली के ट्रैफिक और बारिश में जलभराव की स्थिति कमोबेश वैसी ही है जैसी मुंबई की, हालांकि दिल्ली के लिए गनीमत की बात यही कही जा सकती है यहां बारिश देवता मुंबई की तरह मेहरबान नहीं होते. हालांकि दिल्ली के प्रदूषण की बात करें तो यहां के बारें में यह कहा जाता है कि यहां रहना गैस चैम्बर में रहने सरीखा है. दिल्ली में सांस लेने वाला न चाहते हुए भी कई सिगरेट के बराबर हानिकारक धुंआ अपने अंदर ले लेता है. हालांकि इस मुद्दे को तो इस तरह नजरअंदाज कर दिया गया जैसे यह कोई महत्वपूर्ण मुद्दा ही नहीं है.
अब बात करें अगर स्मार्ट सिटी मिशन की, तो केंद्र सरकार देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना चाहती है. इन शहरों को बेहतर ढंग से बसाया जायेगा और यह शहर सारी सुख सुविधाओं से लैस होंगे. बेशक इसे एक बेहतर पहल कहा जा सकता है. मगर जब आपके देश के महानगर जिनमें आपके देश की राजधानी और आर्थिक राजधानी तक शामिल हो वहां की स्थिति जब इतनी बुरी हो. और वो भी तब जब इनकी गिनती वर्ल्डक्लास सिटीज में होती हो तो यह वाकई अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती.
ऐसे में तो पहली कोशिश यही होनी चाहिए की भारत के महानगरों की स्थिति वर्ल्डक्लास शहरों की तरह की जाए ताकि यहां रहने वालों को ट्रैफिक, बारिश और प्रदुषण इस तरह से तकलीफ न दें, क्योंकि यह शहर ही विश्वस्तर पर भारत की पहचान बनाते हैं. और ऐसे में कोशिश यही होनी चाहिए कि पहले इन शहरों को स्मार्ट बना दिया जाए.
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