खाना जांचने का सिस्टम ही कमजोर और मिलावटी
मैगी को अन्नापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) देने वाले तत्कालीन अधिकारी और FSSAI के पूर्व निदेशक प्रदीप चक्रबर्ती ने इंडिया टुडे के साथ मैगी विवाद और उससे जुडे कई तकनीकी पहलुओं पर बात-चीत की.
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खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 2013 में मैगी को अन्नापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) देने वाले तत्कालीन अधिकारी और FSSAI के पूर्व निदेशक प्रदीप चक्रबर्ती ने इंडिया टुडे के साथ मैगी विवाद और उससे जुडे कई तकनीकी पहलुओं पर बात-चीत की. इस बातचीत के दौरान कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.
ऐसे मिला था मैगी को अप्रूवल-
- 2011 में वजूद में आए FSSAI ने नियम बनाया कि खाद्य पदार्थ बनाने वाली हर कंपनी को अपने प्रोडक्ट का सालाना अप्रूवल लेना जरूरी होगा.
- मैगी ने 2013 में 'प्रोडक्ट एप्रूवल' के लिए आवेदन किया. आवदेन के साथ कंपनी ने ही एक टेस्ट रिपोर्ट भी दाखिल की. इस आवेदन और रिपोर्ट को FSSAI की प्रोडक्ट एप्रूवल एंड स्क्रीनिंग कमेटी में रखा गया. मैं उस कमेटी का चेयरमैन था. कमेटी ने मैगी के प्रोडक्शन में शामिल मसालों और पदार्थों की गुणवत्ता पर चर्चा करने के बाद अप्रूवल दे दिया था.
- जांच रिपोर्ट में मैगी के सभी 9 वेरिएंट में शामिल सामग्री और अन्य पदार्थों का भी जिक्र किया था. मैगी के सैम्पल में केवल उसे बनाने वाली सामग्री का उल्लेख किया गया था और कुछ नहीं. जो सुरि्षैं त थे. FSSAI के नियमों के मुताबिक इतना ही काफी होता है. और उसी के आधार पर मैगी को अन्नापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया गया.
मसालों की भी जांच होनी चाहिए-
नूडल्स और पास्ता में MSG के इस्तेमाल की इजाजत नहीं है. MSG और लैड कई बार मसालों से भी आता है. इसकी भी जांच की जानी चाहिए. 2013 में तो हमने जांच की थी, तब तो सब ठीक था. तब उसमें कोई गड़बड़ी नहीं थी.
इतने बड़े देश का खाना परखने के लिए सिर्फ 4 लैब-
FSSAI के पास खाद्य पदार्थों की जांच करने के लिए केवल अपनी चार प्रयोगशालाएं हैं. जबकि देशभर में 84 अन्य प्रयोगशालाओं को खाद्य पदार्थों की जांच के लिए अधिकृत किया गया है. पश्चिम बंगाल में 5 अधिकृत प्रयोगशालाएं हैं. नेस्ले ने इन्हीं अधिकृत प्रयोगशालाओं में से किसी एक की जांच रिपोर्ट आवदेन के साथ लगाई थी.
खाद्य पदार्थों के हर बैच की जांच होनी चाहिए
खाद्य सुरक्षा कानून के तहत FSSAI एक फूड सेफ्टी ऑडिट एजेंसी है जो नियमित रूप से खाद्य सामग्री बनाने वाली इकाईयों में जाकर निरीक्षण करती है. सभी तरह की निर्माण सामग्री, इंटरमीडिएट प्रोडक्ट और पूरी तरह बने हुए उत्पादों की बैच के हिसाब से जांच किए जाने का प्रावधान है. इस पर अमल किया जाए तो किसी भी तरह की परेशानी से बचा जा सकता है.
मजबूत नहीं है FSSAI की निगरानी
FSSAI की निगरानी प्रणाली मजबूत नहीं है. अगर उत्पादों को लेकर निगरानी पहले से ही मजबूत होती तो इस तरह की लापरवाही बहुत पहले ही सामने आ जाती. खाद्य पदार्थों का निर्माण करने वाली इकाईयों में स्क्रूटनी का काम सही तरीके से नहीं किया जाता है. इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि मैगी वाली गड़बड़ी अन्य उत्पादों भी हो.
कुछ प्रयोगशालाएं विश्वसनीय नहीं
देशभर में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने के लिए चार अधिकृत और 84 मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं हैं. सभी अधिकृत लैब आधुनिक उपकरणों से लैस हैं. लेकिन इनमें से कुछ मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की विश्वसनियता पर संदेह होता है. क्योंकि इनमें से अधिकांश में आधुनिक उपकरण नहीं हैं. लोह तत्व, विटामिन और अन्य जटिल पदार्थों का पता लगाने के लिए लिक्विड या रंगों की पहचान करने वाली गैस की ज़रूरत होती है. और कुछ प्रयोगशालाओं के पास ही यह सुविधा है. यही सबसे बड़ी वजह है कि हम पेस्टीसाइड और इनसेक्टीसाइड की नियमित जांच में फेल हो जाते हैं.
बंगाल में कानून का पालन नहीं हुआ
कई राज्यों ने FSSAI की जांच रिपोर्ट आने के बाद मैगी पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन पश्चिम बंगाल ने रोक लगाने से इनकार कर दिया. जबकि यह एक केंद्रीय कानून है जो पूरे देशभर में लागू होता है. FSSAI की धारा 86 के तहत केंद्रीय खाद्य सुरक्षा आयुक्त राज्यों के आयुक्तों को सीधे तौर पर दिशा निर्देश दे सकते हैं जिन्हें मानने के लिए राज्य आयुक्त बाध्य हैं. बंगाल सरकार का फैसला गैरकानूनी है.
प्रदीप मानते हैं कि खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता परखने और निगरानी करने वाला सरकारी तंत्र बीमार है. अधिकांश प्रयोगशालाओं के पास उचित प्रकार के यंत्र नहीं है. कुछ ही लैब हैं जहां सभी उत्पादों के जरूरी टेस्ट किए जा सकते हैं. इसी वजह से हमें प्रयोगशालाओं के निर्माण के लिए एक बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है. वरना, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को बनाए रखना नामुमकिन है.
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