आप मंदिरों में नमाज पढ़वाते रहिए, वो गणेश पंडाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक चले जाएंगे
मंदिर प्रांगण, दुर्गा और गणेश पंडालों में नमाज पढ़वाए जाने की तस्वीरें सामने आती रही हैं. ये तस्वीरें सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बनी हैं. ईदगाह मैदान (Eidgaah Ground) में गणेश पूजा (Ganesh Puja) का आयोजन करवा कर मुस्लिम समुदाय (Muslim) भी अपनी सहिष्णुता का प्रदर्शन कर सकता था. लेकिन ऐसा न हो सका...
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'मुंबई का मूल स्वभाव इस एक फ्रेम में कैद हो गया, गणेश मूर्ति नगर, कफ परेड में. क्या कुछ और कहने की जरूरत है?' सितंबर, 2017 यानी 5 साल पहले मुंबई पुलिस ने ये ट्वीट किया था. जिसमें शेयर की गई तस्वीर में कथित धार्मिक सौहार्द और सांप्रदायिक एकता की मिसाल दिखाई पड़ी थी. दरअसल, इस तस्वीर में गणेश मूर्ति नगर में भगवान गणेश के पंडाल में मुसलमानों को नमाज अदा करते हुए देखा जा सकता है. इस जैसी सैकड़ों तस्वीरें हर साल कहीं न कहीं से सामने आती ही रहती हैं. बस कभी मंदिर की जगह गुरुद्वारा हो जाता है. तो, कभी किसी का खुद का मकान. लेकिन, इस देश का बहुसंख्यक हिंदू खुले मन से अपने मंदिरों और घरों के दरवाजे खोलकर मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की सहूलियत देता रहा है. वहीं, 5 साल बाद यानी वर्तमान में कर्नाटक के दो ईदगाह मैदानों में गणेश चतुर्थी के आयोजन को रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक का रुख कर लिया.
The essence of #Mumbai captured in one frame at Ganesh Murti Nagar, Cuffe Parade! Need we say more? #EidAlAdha #Ganeshotsav pic.twitter.com/MrFpVIE549
— मुंबई पोलीस - Mumbai Police (@MumbaiPolice) September 2, 2017
ईदगाह मैदान में सहिष्णुता का जोर नहीं, हठधर्मिता का बोलबाला
बहुसंख्यक हिंदुओं के धार्मिक सौहार्द और सहिष्णुता की पुरानी मिसालों से इतिहास और वर्तमान की किताबें पटी पड़ी है. वैसे, इस देश के हिंदू समुदाय ने शायद ही कभी मस्जिदों में भजन-कीर्तन-हवन करने की मांग की होगी. लेकिन, अगर ईदगाह मैदान में गणेश पूजा के कार्यक्रम के आयोजन की बात कर दी जाती है. तो, वह भी कट्टरपंथी मुस्लिमों को मंजूर नहीं है. ऐसा तब है, जबकि ईदगाह में साल में सिर्फ दो बार ही नमाज पढ़ी जाती है. बाकी के दिनों में यही ईदगाह बच्चों के खेल का मैदान के तौर पर भी इस्तेमाल होता रहता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो साल के बचे हुए 363 दिन ये ईदगाह केवल एक मैदान की तरह नजर आता है. अब अगर इस खाली मैदान पर दो दिनों के लिए गणेश पूजा का आयोजन करने की अनुमति मांगी जाए. तो, क्या मुस्लिमों को सहिष्णुता और गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत करने वाला उदाहरण नहीं पेश करना चाहिए था.
बेंगलुरु के ईदगाह मैदान में गणेश पूजा के आयोजन की इजाजत देकर मुस्लिम समुदाय खुद के सहिष्णु होने का संदेश दुनियाभर को दे सकता था. लेकिन, ईदगाह मैदान पर सहिष्णुता नहीं हठधर्मिता भारी पड़ गई. और, गणेश पूजा के कार्यक्रम को रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय सुप्रीम कोर्ट तक चला गया. खैर, बेंगलुरु के ईदगाह मैदान में सुप्रीम कोर्ट ने गणेश चतुर्थी के आयोजन की अनुमति नहीं दी. क्योंकि, ईदगाह मैदान के वक्फ बोर्ड की संपत्ति होने का दावा किया गया है. वैसे, ये चौंकाता ही है कि जो मुस्लिम समुदाय अपने लिए इस देश में दूसरे धर्म के लोगों से अपने लिए सर्वधर्म समभाव और सौहार्द जैसी चीजों की उम्मीद रखता है. वह दूसरे धर्मों के लिए अपने नियमों से एक इंच भी हिलने को तैयार नहीं है. जबकि, ईदगाह मैदान को लेकर इस्लाम में कोई बदला ना जा सकने वाला नियम भी नहीं है.
शायद ही कभी हिंदू समुदाय ने मस्जिदों में भजन-कीर्तन की इजाजत मांगी होगी. लेकिन, मैदान तो सबका ही होता है.
दूसरे की जमीन पर भी अपना कब्जा स्थापित करने की अतिवादिता
वैसे, कर्नाटक हाईकोर्ट ने हुबली के ईदगाह मैदान पर गणेश पूजा मनाने की अनुमति दे दी है. अंजुमन-ए-इस्लाम ने इस आयोजन के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन, हाईकोर्ट ने माना कि हुबली के ईदगाह मैदान का मालिकाना हक हुबली-धारवाड़ नगर निगम के पास है. तो, अंजुमन-ए-इस्लाम की याचिका को खारिज कर दिया गया. वैसे तो कर्नाटक हाईकोर्ट ने हुबली के ईदगाह मैदान को लेकर फैसला सुना दिया है. लेकिन, दूसरे की जमीन पर कब्जे की बदनीयती का क्या कीजिएगा?
अगर मान भी लिया जाए कि ये वक्फ की संपत्ति है. तो, वक्फ बोर्ड इस जमीन को आसमान से उतार कर तो नहीं ही लाया होगा. किसी न किसी सरकार की ओर से ही ये जमीन वक्फ बोर्ड को आवंटित की गई होगी. हालांकि, इस संपत्ति पर जब मुस्लिम समुदाय का कोई हक नहीं है. तो, आखिर इस जमीन पर कब्जे की बदनीयती दिखाने की क्या जरूरत है? ये तो वही बात हो गई कि मैदान का नाम ईदगाह पड़ गया है, तो वो जगह वक्फ बोर्ड के नाम चढ़ा दी जाए.
सिर्फ हिंदुओं पर नहीं है सहिष्णुता का बोझ
बीते साल पेरंबलूर जिले के कड़तूर गांव में हुआ एक विवाद भी इसी तरह का था. वहां बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय ने शरिया कानून के हिसाब से हिंदुओं को रथयात्रा निकालने से मना कर दिया था. स्थानीय अदालत ने भी इस रोक को कायम रखा था. जिसके बाद मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. जिस पर मद्रास हाईकोर्ट ने मुस्लिम जमात को फटकार लगाते हुए कहा था कि 'अगर शरिया के तहत हिंदू रथयात्रा और त्योहारों पर पाबंदी लगाई जाने लगी, तो मुस्लिमों को हिंदू बहुल देश की अधिकांश जगहों पर कुछ भी कर पाने की अनुमति नहीं मिलेगी.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो कट्टरपंथी मुस्लिमों को भारत जैसे देश में सहिष्णुता का पालन करना ही होगा, वरना हर साल दिखने वाली सहिष्णुता की तस्वीरें दिखना बंद हो जाएंगी. और, कट्टरपंथी मुस्लिमों के लिए अपनी तंग गलियों से निकलकर बाहर सड़क पर आना तक मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि, सहिष्णुता का सारा बोझ केवल हिंदुओं के सिर पर नहीं लादा जा सकता है.
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