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Updated: 29 अगस्त, 2016 02:15 PM
हिमांशु तिवारी'आत्मीय'
हिमांशु तिवारी'आत्मीय'
  @journalistaatmiya
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'भई ये वही है न जिसके साथ गैंगरेप हुआ था. पक्का इसने कपड़े वल्गर पहने होंगे. पहले से चक्कर वगैरह तो नहीं था. देख भाई तेजाब से पूरा चेहरा जला डाला है, ताकि पहचान में न आए. खुद ही लूज करेक्टर की होगी. इसकी भी गलती होगी, वरना कैसे कोई कर सकता था.'

दरअसल ये सारी बातें कथित इज्जत के झंडाबरदारियों की दोगली और खोखली कल्पनाएं हैं. जिसके सहारे वे हर बार नारीत्व को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं. साथ ही बुरी तरह जल चुकी लड़की की उम्मीदों में से, तेजाब की वजह से पड़े छालों में से अपनी सोच के मुताबिक सबूत तलाशते हैं. मांस को चीरते हुए उस तेजाब के दर्द को शायद उस पीड़िता के इतर और कोई समझ सकता है. 

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एसिट अटैक विक्टिम की पीड़ा कोई नहीं समझ सकता

कितने जिम्मेवार हैं हम 

ये कृत्य घृणित हैं न. इस पर आपकी सहमति है न. लेकिन इन मामलों में आप भी और हम भी उतने ही जिम्मेवार हैं. जो सुनते हैं, समझते हैं लेकिन आवाज नहीं उठाते. सारा का सारा बोझ दूसरों के मत्थे धकेलकर खुद को इससे आजाद समझ लेते हैं. फांसी के हकदार हम भी हैं, आप भी. तेजाब की खुलेआम बिक्री से क्या आप मुखातिब नहीं, निश्चित तौर पर होंगे. किराने की दुकान पर सामान खरीदते वक्त यदि कोई दूसरा ग्राहक तेजाब खरीद रहा है तो सवाल भी जहन में आता होगा कि यार गाइडलाइन्स का पालन तो नहीं हो रहा. बस एक सवाल. जिसके बाद उसे आप इस बात के हवाले के तले सुला देते हैं कि क्या करना, जब लोग नहीं सोच रहे तो हम क्यों सोचें भला? हालांकि कोई भी मामला घटित होने के बाद सवाल पल्ला झाड़ने वाले ही उठाते हैं कि शासन और प्रशासन कितना संवेदनहीन है. लगभग हर रोज अपराध हो रहे हैं, लेकिन सब सो रहे हैं. क्यों सही कह रहा हूं न ? हो सकता है आपको गलत लग रहा हो. 

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आंकड़ों की फौज में हाशिए पर नारी 

गृह मंत्रालय के आंकड़े दिखाते हैं कि 2013 में पहले 66 के मुकाबले 2014 में एसिड अटैक के 309 मामले दर्ज किए गए. वहीं यूपी की गर बात की जाए तो साल 2014 में 185 मामले यहीं से ही थे. आपको बताते चलें कि भारत में तकरीबन 500 लोग हर वर्ष एसिड अटैक का शिकार होते हैं. हालांकि इस पर सख्ती बरतते हुए गाइडलाइन्स भी जारी की गईं लेकिन सब व्यर्थ नजर आ रहा है. तेजाब पर गाइडलाइन्स की हकीकत तेजाबकांड की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यन सरकारों को जमकर फटकार लगाई थी. इसके साथ ही यह निर्देशित किया था कि एसिड अटैक से पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास की पूरी जिम्मे दारी राज्य सरकार की होगी.

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 भारत में तकरीबन 500 लोग हर वर्ष एसिड अटैक का शिकार होते हैं

केंद्र सरकार ने भी एसिड अटैक को जघन्य अपराधों की श्रेणी में रखने का फैसला किया है. ऐसे केस में आजीवन कारावास या मौत की सजा दी जा सकती है. इन मामलों की सुनवाई आईपीसी की धारा 376ए के तहत 60 दिनों में पूरी होने की बात कही गई है. तेजाब की बिक्री वेब एप्लीकेशन के जरिए करने की व्यवस्था बनाई गई. वेब एप्लीकेशन पर होलसेलर और रिटेलर के रजिस्ट्रेशन, डीएम द्वारा लाइसेंस जारी करने, आईडी दिखाने के बाद ही किसी व्यक्ति को तेजाब की बिक्री करने देने जैसी व्यवस्था की बात हुई. लेकिन आज भी किराने की दुकानों पर अवैध रूप से चंद पैसों के लालच में धड़ल्ले से तेजाब मानकों की धज्जियां उड़ाते हुए बेचा जा रहा है.

मानसिक अक्षमता को दर्शाते हुए लोग तेजाब उड़ेल देते हैं, कोई एक तरफा प्यार में, तो कोई अपने अपराध को छिपाने के लिए, कोई खुद को दुर्दांत दर्शाने के लिए....कुछ दुश्मनी में भी. इससे पता चलता है कि इंसान किस दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है. और समाज का भविष्य क्या है? 

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बलात्कार पर कितना सजग समाज? 

बलात्कार के मामलों के आंकड़े भी वाकई चौंकाने वाले हैं. दरअसल इसमें चौंकाने का विषय यह है कि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2016 से इस महीने के 18 अगस्त तक सिर्फ उत्तर प्रदेश में रेप के 1,012, महिला उत्पीड़न के 4,520 मामले दर्ज किए गए हैं. इन रेप विक्टिम्स के प्रति झूठी हमदर्दी के इतर लोगों के द्वारा तैयार किए गए अस्तित्व पर ढ़ेर सारे सवाल होंगे. शर्म होगी. संभव है कि सेक्स, संभोग, कंडोम आदि बातों के जोर-जोर से उच्चारण होने के कारण भी कुछ लोग असहज हो जाते हों, पर ये असहजता महिला की इज्जत नीलाम करते वक्त नहीं होती. होती है क्या? शायद नहीं. 

संवेदनशील या संवेदनहीन! 

उत्तर प्रदेश के कानपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक झुग्गी झोपड़ियों में तीन लोगों ने एक महिला के साथ बलात्कार किया और बाद में उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया. जानकारी के मुताबिक महिला की आंख बुरी तरह से जख्मी है. एक स्त्री और उसकी तमाम हत्याएं की गईं. लेकिन फिर से सबकुछ पुरानी कहानी में शामिल हो गया. तेजाब की जलन से बुरी तरह झुलस चुके चेहरे को देखकर कुछ लोगों को अजीब सा लग रहा होगा. पर यदि वास्तव में संवेदनशील होते तो क्या महिला का इतना बुरा हाल करते. 

महफूज क्यों नहीं? 

बहरहाल यह महज किस्सा नहीं, न तो सिर्फ लेख है. ये सवाल है उस वर्ग से जो आज भी नारित्व को खिड़कियों में कैद रखने की उम्मीद करते हैं. पैरों की जूती मानकर चलते हैं. पुरूषों को महिलाओं से ऊपर बताते हैं. ब्रा की स्ट्रेप, शॉर्ट ड्रेस को देखकर उन्हें अश्लील बताने वालों ने गरीबी की वजह से फटे उधड़े कपड़ों में भी तन को झांककर देखा होगा. उस पर कुछ और राय कायम की होगी. जरूरत है मानसिकता बदलने की. क्योंकि हिंदुस्तान की बेटी, मां-बहन, नन्ही चिरैया के मन में इन घटनाओं के बाद ढेर सारे सवाल हैं कि हम महफूज क्यों नहीं ?

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