सेवा का सबक है बिलकीस 'मां' का किरदार
बिलकीस ने ही पाकिस्ता न में गीता की परवरिश की है. वे एक एनजीओ चलाती हैं, लेकिन अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटतीं. उनकी हर बात में सिर्फ ममता ही दिखाई देती है.
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मन हमेशा उन लोगों को देखकर परेशान हो जाता है जो दूसरों की मदद करते दिखाई देते हैं. परेशानी उनकी सेवा देखकर नहीं बल्कि खुद को धिक्कारते हुए होती है. यहां खुद के रोज-मर्रा के काम पूरे नहीं हो पाते फिर ये लोग कैसे दूसरों के लिए वक्त निकाल लेते हैं. कोई किसी झुग्गी में जाकर लोगों को दवाई बांट रहा है. तो कोई जो स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को फुटपाथ पर या गली-मोहल्लों में पढ़ा रहा है. किसी ने अपने घर में काम करने वाली बाई के बच्चे की पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी उठा रखी है. ऐसे लोगों, खासकर युवाओं के लिए इज्जत बढ़ जाती है. शायद वे ऐसा इसीलिए कर रहे हैं, क्यों कि उन्हें ऐसा करना अच्छाए लगता है. लेकिन वे ऐसा करते हुए दूसरों को जबर्दस्तर ढंग से प्रेरित भी करते हैं.
सामाजिक संस्थाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता लेकिन उनकी विश्वसनीयता पर अब सवाल उठने लगे हैं. वो लोग जो एनजीओ को पैसे देकर समाज सुधार में अपना योगदान दे रहे थे उनका मोह भी एनजीओ और उनमें काम करने वालों की हरकतों से भंग होने लगे है. व्यक्तिगत तौर पर किसी भी नेक काम करने वाले इंसान पर कभी किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया लेकिन संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह अवश्य लगे और आजकल तो कुछ ज्यादा ही लग रहे हैं.
हिन्दुस्तान की बेटी गीता के बारे में जबसे टीवी पर खबरें आनी शुरू हुईं तो गीता के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ती गई. टीवी और अखबारों से गीता के बारे में जानकारी मिलनी शुरू हुई. गीता के साथ एक और नाम पढ़ा, बिलकीस का. गीता जब भारत आई तो पता चला कुछ लोग भी उसके साथ भारत आ रहे हैं, जिन्हें राजकीय मेहमान का दर्जा दिया गया. गीता भारत आ चुकी थीं. दोपहर तीन बजे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को प्रेस कांफ्रेस करनी थी. सभी को इंतजार था कि इस पीसी में वो क्या बताती हैं. क्या जनार्दन महतो ही हैं गीता के पिता. क्या गीता पहचान पाएगी माता-पिता को. पीसी शुरू होते ही सुषमा स्वराज ने निराश करने वाली खबर दी. गीता ने माता-पिता को पहचानने के इंकार कर दिया. खैर सुषमा पत्रकारों के सवलों के जवाब दे रही थीं तभी एक पत्रकार ने बिलकीस से सवाल किया. पाकिस्तान के एक एनजीओ इधी फाउंडेशन की संस्थापक हैं बिलकीस, जिन्होंने अब तक गीता की परवरिश की है. पत्रकारवार्ता में उनसे पूछा गया सवाल महत्वपूर्ण नहीं है और ना ही बिलकीस का जवाब. लेकिन बिलकीस ने जैसे ही बोलना शुरू किया वैसे ही आंख, कान बस बिलकीस पर केन्द्रित हो गए. लगा ही नहीं कि ये विदेश मंत्री की पीसी है. भारत के लगभग हर बड़े अखबार और टीवी न्यूज के संवाददाता यहां मौजूद थे. बिलकीस के पहले शब्द के संबोधन ने इस पीसी को किसी आम हिन्दुस्तानी घर की बातचीत में तब्दील कर दिया. इस बुजुर्ग महिला ने पत्रकार को बेटा कहकर संबोधित किया और उससे इस तरह से बात करने लगीं जैसे अपने घर की मां, दादी या नानी हम लोगों से बात करती हैं, हमें समझाती हैं. बेहद सौम्य बिलकीस के चेहरे पर खुशी भरी मुस्कान के साथ अपार अपनत्व और आत्मीयता झलक रही थी. एक हाई प्रोफाइल पीसी चंद सेकंड में मां बेटे की बातचीत में बदल चुकी थी. बिलकीस के जवाब देने का अंदाज बिलकुल सादा, घरेलू था. बिलकीस और उनकी संस्था के लिए ये मौका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरने का था लेकिन वो तो एक मां की तरह बात कर रही थीं. गीता के बारे में बताते हुए उनकी आंखों में चमक थी. वो गीता की छोटी-छोटी बातें कर रही थीं, जैसे गीता गुस्सा बहुत करती है, मूडी है, इसे समझाना मुश्किल है. जिन वजहों से समाजसेवी संस्थाओं और उनसे जुड़े लोगों को शक की नजर से देखा जाता है बिलकीस उससे एकदम उलट नजर आ रही थीं. वो अपनी संस्था का नाम नहीं ले रही थीं. बड़ी-बड़ी बातें नहीं कर रही थीं. अपने कामों की फेहरिस्त नहीं गिनवा रही थीं. वो तो खुश होकर कह रही थीं कि गीता मेरी बेटी है. मेरी बेटी की घर लौटने की मुराद पूरी हुई है और ये दिन मेरे लिए ईद का दिन है.
आखिर में एक बात और गीता को जब पाकिस्तान में लावारिस हालत में पाया गया तो सबसे पहले उसे लाहौर के अनाथालय में भेज दिया गया. मूक-बधिर इस बच्ची को वहां नाम दिया गया फातिमा. कुछ दिन बाद इस बच्ची को वहां से ईधी फाउंडेशन के सदस्य और बिलकीस के पुत्र फैजल अपने साथ कराची ले आए. पहली बार जब उन्होंने उस बच्ची को अपनी मां बिलकीस से मिलवाया तो बच्ची ने हाथ जोड़े और बिलकीस के पैर छुए. बिलकीस तुरंत बोल पड़ीं कि यह बच्ची तो हिंदू है. और उन्होंने तुरंत उसका नाम फातिमा से बदलकर गीता रख दिया.
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