नवजात को गोद में लेकर परीक्षा देने वाली छात्रा को जितना आप जानते हैं वह उससे कहीं ज्यादा है
वह अपनी परीक्षा (Bihar Board Exam) के 6 घंटे पहले ही एक बेटी की मां बन गई पर अपने सपने को नहीं भूली और बच्ची को साथ लेकर निकल पड़ी पेपर (BSEB Intermediate Exam) देने.
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हर तरफ इस छात्रा (Girl Student) की चर्चा हो रही है, क्योंकि वह अपनी परीक्षा (Bihar Board Exam) के 6 घंटे पहले ही एक बेटी की मां बन गई पर अपने सपने को नहीं भूली और बच्ची को साथ लेकर निकल पड़ी परीक्षा (BSEB Intermediate Exam) देने. आज के दौर में जहां हम सभी बातों को तो याद रखते हैं लेकिन खुद को ही भूल जाते हैं. लड़कियां हमेशा से एक बेटी, एक बहन, एक प्रेमिका, एक दोस्त, एक पत्नी और मां होती हैं. लेकिन वह भूल जाती हैं कि वह इन सबसे ज्यादा हैं. यानी उनका खुद का भी एक अस्तित्व है. सभी रिश्तों का तो वे बहुत ध्यान रखती हैं, लेकिन खुद का ध्यान रखना और खुद को प्यार करना भूल जाती हैं.
ऐसी लड़कियों के लिए कुसुम ने एक मिसाल पेश की है. कुसुम की शादी पिछले साल मालिक राय से हुई थी. जो तरैया प्रखंड के नारायणपुर का रहने वाले हैं. जब कुसुम की शादी हुई थी तब वह इंटर की छात्रा थी. शादी के बाद उसने घर की जिम्मेदारियों के साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. उसने मायके जाकर डुमरसन स्थित हाई स्कूल से इंटर का फॉर्म भी भर दिया.
नवजात बच्ची को गोद में लेकर पेपर देने पहुंची कुसुम
अब बारी थी 12वीं की परीक्षा देने की. कुसुम का पहला पेपर भूगोल था जो 2 फरवरी को होना था, लेकिन परीक्षा के पहले की उसे प्रसव पीड़ी होने लगी. घरवाले आनन-फानन में सुबह अस्पताल लेकर पहुंचे. जहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया. अब उसे अपनी परीक्षा की चिंता थी.
उसने अपने घरवालों से परीक्षा देने की बात कही. ऐसी हालत में परिजन कुसुम की हेल्थ की चिंता कर रहे थे, लेकिन उन्हें यह भी पता था कि कुसुम के लिए यह पेपर कितना मायने रखता है. नॉर्मल डिलीवरी होने की वजह से अस्पताल ने उसे डिस्चार्ज कर दिया. उसकी स्थिति का ध्यान रखते हुए गाड़ी का इंतजाम किया गया. फिर क्या कुसुम अब अपनी नवजात बच्ची को लेकर पेपर देने छपरा निकल पड़ी. जहां उसने गांधी हाई स्कूल के सेंटर पर अपनी बेटी को गोद में लेकर पेपर दिया.
हर कोई हैरान था क्योंकि मां बनने के 6 घंटे बाद ही कुसुम परीक्षा देने के लिए सेंटर पहुंच गई थी. हर कोई उसके जज्बे को सलाम कर रहा था. कई बार हम छोटी-छोटी बातों को इग्नोर कर देते हैं जो शायद हमारे लिए सबसे ज्यादा मायने रखती हैं.
कुसुम ने याद रखा कि वह एक पत्नी से ज्यादा है, एक मां से ज्यादा है. उसने सारे रिश्तों के साथ खुद को भी और उसके सपने को भी याद रखा. उसने उन लड़कियों को बताया कि, अगर वे अपनी लाइफ में कुछ करना चाहती हैं तो कर सकती हैं. परेशानियां चाहें कितनी भी क्यों ना आएं हार नहीं मानना चाहिए.
कुछ लोग बहुत जल्दी हार मान जाते हैं तो वहीं कुछ लोग बहाने बना लेते हैं, लेकिन कुसुम ने अपने फैसले खुद लिए, उसने तय कर लिया था कि उसे क्या करना है. उसने यह बताया कि अगर लाइफ में आप कुछ करना चाहते हैं तो अभी भी देर नहीं हुई.
जल्दी शादी और फिर एक बच्ची की मां बनी कुसुम ने सिर्फ अपनी परीक्षा ही नहीं दी है बल्कि उसने अपने सपने को जिया है. साथ ही दूसरों को सपने देखने का हौसला भी दिया है. उसने बेटियों के घरवालों और ससुराल वालों को एक संदेश दिया है कि, जिस तरह मेरे परिवार ने मेरा साथ दिया उसी तरह आप भी अपनी बेटियों और बहुओं का साथ दीजिए.
सोचिए जब कुसुम की बेटी बड़ी होगी तो क्या उसे अपने मां पर गर्व नहीं होगा, क्या उसे अपने घरवालों पर गर्व नहीं होगा? क्या ऐसे परिवार की सराहना नहीं की जानी चाहिए? जो लोग महिलाओं पर सवाल खड़ा करते हैं कि ये तो बस रोना-धोना मचाती हैं. वे बताएं कि अगर कुसुम जैसी लड़कियों को उसके जैसा परिवार भी मिल जाए तो? आपके सवाल में ही जवाब मिल जाएगा, क्योंकि कुसुम ने अपने इस कदम से समाज को आईना तो दिखा ही दिया है.
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