चीन से ज्यादा जानलेवा खतरा देश को मच्छरों से है
गंदगी और उस पर पनपने वाले मच्छरों पर कोई 'सर्जिकल स्ट्राइक' क्यों नहीं हो रही है? यह एक मूल-भूत सवाल देश के सामने है.
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भारत सरकार लगभग 3 साल बड़े जोर-शोर से स्वच्छ भारत अभियान चला रही है. अब सरकार ने 'न्यू इंडिया' की बात करना भी शुरू कर दिया है. यह सब बातें सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं. पर वास्तविकता और सरकारी घोषणाओं में बहुत अंतर है.
देश में 2015 में डेंगू के 99,913 मामले सामने आए थे. जिसमे 220 लोगों की मौत हो गई थी. 2016 में डेंगू के मामलों की संख्या बढ़कर 1,29,166 हो गई. इनमें से 245 लोगों की मृत्यु हो गई. 20 अगस्त 2017 तक 36,635 लोग डेंगू से प्रभावित पाए गए और 58 लोगों की मृत्यु हो गई. 2017 में 2 जुलाई तक देश भर में 10,952 चिकनगुनिया के मामले देखे गए. चिकनगुनिया के सबसे अधिक 4,047 मामले कर्नाटक से सामने आए हैं. डेंगू व चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के बारे में मेडिकल साइन्स को तो कुछ साल पहले ही पता चला है. परंतु मलेरिया तो कई दशकों से भारत में क़हर बरपा रहा है. आज भी भारत में मलेरिया के कारण मौतें हो रही है.
बीमारियों को कब साफ करेंगे
भारत ने जिस प्रकार पोलियो पर रोकथाम पाई है, उसी प्रकार मलेरिया, डेंगू व चिकनगुनिया पर सफलता क्यों नहीं मिली है? गंदगी और उस पर पनपने वाले मच्छरों पर कोई 'सर्जिकल स्ट्राइक' क्यों नहीं हो रही है? यह एक मूल-भूत सवाल देश के सामने है. जैविक और गैर-जैविक कूड़े को अलग-अलग करना हो. कूड़े से खाद और बिजली बनाने की परियोजना हो. महात्मा गाँधी की बातों को स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ना हो. यह सब बातें गोष्ठियों और भाषणों के साथ साथ ज़मीनी स्तर पर भी उतरनी चाहिए.
स्वच्छता और मच्छरों पर रोकथाम के लिए नगर निगमों का महत्वपूर्ण दायित्व होता है, लेकिन देश के लगभग सभी नगर निगम इस परीक्षा में विफल होते नज़र आते हैं. एक तरफ भारत चीन से लोहा लेने को तैयार है, इसरो नए-नए उपग्रह आकाश में भेज रहा है. दूसरी ओर गंदगी और मच्छरों के कारण देश अब भी मलेरिया, डेंगू व चिकनगुनिया से लड़ रहा है. यह एक विडंबना ही है.
सरकारी अव्यवस्थाओं के कारण हम आम नागरिकों को इन बीमारियों से मरने नहीं दे सकते हैं. भारत में स्वास्थ्य सेवाएं कई राज्यों में चरमरा रही है. कारण कुछ भी हो. लेकिन आज जब हम स्वच्छ भारत की बात करते हैं. जब 'न्यू इंडिया' की बात की जा रही है. तब हम ऐसी समस्याओं को और टाल नहीं सकते हैं. आज के भारत को मूल-भूत सुधार से कम कुछ नहीं चाहिए, इस बात को सरकारों को समझ लेना चाहिए.
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