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Updated: 29 जुलाई, 2015 03:08 PM
पीयूष बबेले
पीयूष बबेले
  @piyush.babele.5
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आज पूरा देश दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति कलाम के बारे में चर्चा कर रहा है. कल पूरा देश गुरदासपुर के आतंकी हमले की चर्चा कर रहा था. सिलसिले को पीछे बढ़ाएं तो व्यापम, वसुंधरा, सुषमा पर सबने एक साथ चर्चा की. बीच-बीच में केजरीवाल-मोदी-जंग के लव ट्राएंगल ने जायका बदला. जो हो चुका होता है, जो दिखाया जा चुका होता है, जो लिखा और बांचा जा चुका होता है, उस पर सब मौलिक जुगाली करते नजर आते हैं. क्या महान आर्यों की संतानें इस तरह अचानक नाजिल हुए या लाद लिए गए एक मुद्दे के भरोसे अपना वक्त काटने का जोखिम उठा सकती हैं.

क्या इसी तरह वह मिशन 20-20 पूरा किया जाएगा, जिसका जिक्र बार-बार कलाम साहब के ताल्लुक से हो रहा है. इस कदर अगंभीर और आभासी देश के नागरिक क्या कभी खुद को महाशक्ति बना पाएंगे.

कुदरत और संविधान दोनों ने इस देश को विविधता और विपुलता से भरा है. हर शय अपने आप में अनन्य है. तो फिर बचपन में ही शेर के दांत गिनने वाले दुष्यंतनंदन भरत के नाम पर भारत कहलाने वाला यह देश स्वयमेय मृगेंद्रता के बजाय भेड़ चाल को अपना रहबर बनाता है. खुद कलाम भी इस तरह की हुआ-हुआ में पड़ जाते तो आज उन्हें कोई नहीं जानता.

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पीयूष बबेले पीयूष बबेले @piyush.babele.5

लेखक इंडिया टुडे में विशेष संवाददाता हैं.

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