New

होम -> समाज

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 जुलाई, 2015 05:10 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

हमें किसी नतीजे पर पहुंचने की कितनी जल्दी होती है. कितनी जल्दी हम इस फैसले पर पहुंच जाते हैं कि गलती फलां की है. लेकिन अपने अंदर झाकने की आदत हमें कब लगेगी. हेमा मालिनी की कार की दुर्घटना क्या हुई सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया. वैसे भी अब हम कलयुग से आगे ट्रेंडयुग में जी रहे हैं. दुर्घटना के बाद हेमा मालिनी की आलोचना की बाढ़ सी आ गई. कई लोग उनके पीछे पड़ गए - उन्होंने उस समय दूसरे घायल परिवार की खबर क्यूं नहीं ली. उन्हें तो आनन-फानन में जयपुर के फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया. दूसरे घायल परिवार को दौसा के ही सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया. बेहतर इलाज के आभाव में उस परिवार की छह साल की नन्हीं परी इस दुनिया को छोड़ गई.

चलिए मान लेते हैं एक तरह से यह आलोचना सही भी है. सेलिब्रिटि और खासकर जनप्रतिनिधि होने के नाते हेमा मालिनी की जिम्मेदारी बनती थी. उन्हें अस्पताल जाने से पहले या जाने के तत्काल बाद ही उस परिवार की सूध लेनी चाहिए थी. लेकिन हम यह क्यों भूल जाते हैं इन सब जिम्मेदारियों से पहले वे एक इंसान है. हम और आप जैसे. एक मिनट के लिए हमें सोचना चाहिए कि हेमा की जगह हम या आप होते और इसी प्रकार किसी भयानक दुर्घटना के शिकार होते तो क्या करते. और हां, दुनिया को न सही, आप खुद को एक ईमानदार जवाब तो दे ही सकते हैं.

हेमा एक दुर्घटना का शिकार हुईं. उन्हें या किसी को भी उस समय तो यह समझ ही नहीं आएगा कि क्या हुआ और क्या करें. जाहिर है, उनके साथ के लोगों ने या वहां पहुंचे मददगारों ने जो कहा, वे करती चली गईं. लोगों ने उनके चोट के प्रति ज्यादा तत्परता दिखाई. हेमा जरूर होश में थीं लेकिन दर्द से परेशान थीं.

तो अब उंगली किस पर उठाना चाहिए. हेमा पर या इस समाज पर जिसे व्यक्ति पूजा में महारत है. दुर्घटना के तत्काल बाद वहां पहुंचे लोगों की क्या यह जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि उस विपरीत परिस्थिति में एक सही फैसला लिया जाए. दुर्घटना के समय ऑल्टो कार चला रहे उस बच्ची के पिता ने कहा, 'अगर हेमा मालिनी के साथ उनकी बेटी को भी फोर्टिस जैसे बड़े अस्पताल में ले जाया जाता तो शायद वो जिंदा होती. जो मददगार थे, उन्होंने भी भेदभाव बरता. हेमा सेलिब्रिटि हैं, इसलिए उनको हर किसी ने संभाला, जयपुर ले गए, हमें सिर्फ पुलिस ने संभाला.'

यही तो विडंबना है. हमें फिल्मों वाली आदत हो गई है. हर कहानी या यूं कहें घटना में हमें एक विलेन चाहिए, जिस पर हम अपना गुस्सा जाहिर कर सकें. गुस्सा निकल जाने के बाद हम अपनी-अपनी दिनचर्या में ऐसे व्यस्त हो जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं. किसी घटना से सीख लेने की जरूरत महसूस क्यों नहीं होती हमें. इस घटना के बाद बहस इस बात पर होनी चाहिए भविष्य में इस प्रकार की अनहोनी के बाद क्या किया जाए. पुलिस और प्रशासन को तो खास तौर पर इस बात की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए कि वह मरीज की हालत के अनुसार तत्काल सही अस्पताल का चुनाव करे.

हर दुर्घटना के बाद मरीज को अक्सर जिला अस्पतालों में भर्ती कराने के बाद प्रशासन अपने काम को खत्म मान लेता है. इन सरकारी अस्पतालों की देश भर में हालत क्या है, यह किसी से छुपी नहीं है. सरकारी अस्पतालों की हालत सुधारने के संबंध में कई बार बहस हो चुकी है और आगे भी होती रहेगी. लेकिन कोई ठोस पहल हो तो बात बनेगी वर्ना ऐसे ही हम रोज सोशल मीडिया पर अपने नैतिक ज्ञान का बखान करते रहेंगे और अगली दुर्घटना के बाद कोई और नन्हीं परी अपने जीवन के लिए संघर्ष करती मिलेगी.

#हेमा मालिनी, #कार दुर्घटना, #दौसा, हेमा मालिनी, कार दुर्घटना, दौसा

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय